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क्रांति के नाम हत्यारा बना डाला, अक्ल ठिकाने आई तो डाल दिया हथियार

समाज में क्रांति लाने के इरादे से बना था नक्सली।

उसे लगता था कि गरीब और सताए हुए लोगों की जिंदगी बदलने के लिए वह संघर्ष कर रहा है। पर, उसके संघर्ष से कुछ भी नहीं बदला। उल्टा उसे एहसास हो गया कि वह जो तथाकथित संघर्ष कर रहा था, वह दरअसल एक ऐसा रास्ता है, जिस पर सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा है। जिनकी भलाई के लिए वह इस रास्ते पर चल पड़ा था, उनकी जिंदगी में वह कुछ नहीं बदल सका। उसकी करतूतों से वे उल्टा और सताए जा रहे हैं। अपनी गलतियों का एहसास होने पर उसने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यह घटना है महाराष्ट्र के गोंडिया जिले की। जहां 27 मई को जगदीप ऊर्फ महेश ऊर्फ विजय अंगु गावडे ने गोंडिया की एसपी विनीता साहू के सामने सरेंडर कर दिया।

जगदीप धुर नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली के कोरची का रहने वाला है। आठवीं तक पढ़ा है, 27 साल का है, नई ऊर्जा और नए जोश वाला युवा। गरीबों के लिए कुछ करने, उनकी जिंदगी बदलने की चाहत थी। लोगों की मदद करने के लिए संघर्ष के नाम पर वह रास्ता भटक गया। उसने 2012 में नक्सली संगठन ज्वाइन किया था। जो नक्सली उसके गांव आते थे, वह उनके साथ चला गया। 15 दिनों तक उनके साथ रहने के बाद, वे जगदीप को डराने धमकाने लगे कि वह अगर उनकी कंपनी छोड़ कर जाएगा तो, पुलिस उसके खिलाफ कार्रवाई करेगी। पुलिस के नाम से वह डर गया और नक्सलियों के केकेडी (कोरची कुरखेड़ा दलम) के साथ काम करने लगा।

यह संगठन महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में काम करता है। वहां उसे मओवादियों की सेंट्रल कमिटी के मेंबर मिलिंद तेलतुंबड़े के पर्सनल गार्ड के रूप में नियुक्त कर दिया गया। बाद में उसका ट्रांसफर पीएल-3 दलम में कर दिया गया। उसने कई नक्सल वारदातों को अंजाम दिया। उसने 3 पुलिस वालों की हत्या भी की थी। सरेंडर करने के बाद जगदीप ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘नक्सल संगठनों के इस लड़ाई से किसी का भला नहीं हो रहा। केवल निर्दोष लोगों की जान जा रही है। नक्सली नेता अब सिर्फ पैसों के भूखे हो गए हैं। इतने साल नक्सल संगठन में बिताने के बाद मुझे यह एहसास हो गया कि गरीबों के लिए लड़ाई के उनके दावे में कोई सच्चाई नहीं है।’

न जाने कितने आदिवासी और निर्दोष उनकी वजह से मारे जा रहे हैं। आम लोगों और गरीब आदिवासियों की जिंदगी में कुछ भी नहीं बदल रहा। वह सरेंडर कर मुख्यधारा में लौट कर शांतिपूर्ण जीवन बिताना चाहता था। सरेंडर करने के बाद सरकार की नीतियों के तहत प्रशासन की तरफ से उसे 5 लाख रूपए दिए गए। महाराष्ट्र सरकार ने नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए 2005 में पुनर्वास योजना शुरू किया था। जिसके तहत गोंडिया जिले में अब तक 19 नक्सलियों ने सरेंडर किया है।

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