नवंबर, 2018 में छत्तीसगढ़ के नक्सल-प्रभावित इलाकों में मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा ज्यादा मतदान हुआ। दंतेवाड़ा में एक भी पोलिंग बूथ ऐसा नहीं था जहां जीरो वोटिंग दर्ज की गई हो। तुमरीगुंडा, पाडमेटा, और पौरनार जैसे बेहद संवेदनशील गांवों के वोटर्स इंद्रावती नदी को पारकर वोट डालने आए। दंतेवाड़ा के एक पोलिंग बूथ जहां साल 2013 में जीरो वोटिंग दर्ज की गई थी इस बार 55 फीसदी मतदान हुआ। दक्षिणी छत्तीसगढ़ के 18 विधानसभा सीटों पर हुए मतदान में 76.28 फीसदी वोटिंग दर्ज की गई थी।
कुख्यात नक्सली हिडमा के प्रभाव वाले गांव में भी इस बार सभी ने मतदान किया। अतिसंवेदनशील इलाका मुकरम गांव कुख्यात नक्सली कमांडर हिड़मा का क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ का सबसे अधिक नक्सलग्रस्त इलाका सुकमा जिले का मुकरम गांव है। ग्रामीण बताते हैं कि यहां कोई प्रत्याशी नहीं आया था और न ही किसी ने बताया था कि किसे और कैसे वोट देना है। पर फिर भी ग्रामीणों ने गांव के विकास को ध्यान में रखकर वोट दिया। इस गांव में न बिजली है, न सड़क।
विकास से कोसों दूर यह गांव राजधानी रायपुर से लगभग 500 किलोमीटर दूर है। इस इलाके में खूंखार नक्सल हिडमा का राज चलता है। इस गांव की जनसंख्या लगभग 600 है। इनमें 306 पुरुष, 213 महिलाएं हैं। यहां के लगभग सभी घर बांस के छप्पर से ढंके हुए हैं। गांव में बिजली नहीं है। लालटेन या टॉर्च जलाकर ही रात गुजारा करते हैं। पीने का पानी तो है, लेकिन खेती के लिए पानी ऊपर वाले के भरोसे है। उनके गांव में बिजली आये खेती के लिए पानी मिले, बीमारों को इलाज मिले और बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले। गांव के लोगों का कहना है कि वो लोकसभा चुनाव में भी अपने मताधिकार का उपयोग जरूर करेंगे।