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चीन के बाद सामने आई नेपाल की हरकत, स्कूल की किताब में भारत के खिलाफ पढ़ाया जा रहा प्रोपेगेंडा

भारत (India) और नेपाल (Nepal) के बीच मई में सीमा विवाद पैदा हो गया था, जब भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कैलाश मानसरोवर के लिए लिपुलेख से होते हुए लिंक रोड का उद्घाटन कर दिया था।

नेपाल (Nepal) चीन के बहकावे में आकर भारत के साथ अपना रिश्ता खराब कर चुका है। वह भारत के विरोध में बचकानी हरकतों पर उतर आया है। भारत और नेपाल के बीच मई में सीमा विवाद पैदा हो गया था, जब भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कैलाश मानसरोवर के लिए लिपुलेख से होते हुए लिंक रोड का उद्घाटन कर दिया था।

इसके जवाब में नेपाल ने अपना नया नक्शा जारी कर दिया जिसमें कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा तीनों उसके क्षेत्र बताए गए थे। लिपुलेख भारत-चीन-नेपाल सीमा के ट्राइजंक्शन (India-China-Nepal Tri-Junction) पर है, जो पिछले दिनों से काफी चर्चा में है। लिपुलेख पास (Lipulekh Pass) वही इलाका है जहां से भारत ने मानसरोवर यात्रा के लिए नया रूट बनाया है।

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यह तब चर्चा में आया था जब नेपाल ने यहां भारत की बनाई 80 किलोमीटर की सड़क पर एतराज जताया था। फिर नेपाल ने अपने यहां नया नक्शा पास कर विवाद बढ़ा दिया था। इसमें कालापानी, जिसमें लिपुलेख (Lipulekh Pass) भी शामिल था उसे अपना हिस्सा बताया था। हालांकि, बाद में बातचीत के जरिए इसका समाधान होने का दरवाजा भी दिखने ही लगा था।

लेकिन अब एक नया विवाद खड़ा हो गया है। दरअसल, नेपाल सरकार ने बच्चों की एक किताब में विवादित नक्शा प्रकाशित किया है। यही नहीं, इसमें भारत के साथ सीमा विवाद का भी जिक्र है। इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते और खराब होने की आशंका बढ़ गई है। नेपाल के शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरल के मुताबिक किताब का प्रकाशन भारत की कार्रवाई के जवाब में किया गया है।

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उनका कहना है कि भारत ने पिछले साल कालापानी को अपनी सीमा में दिखाते हुए नक्शा जारी किया था। नेपाल कालापानी को अपना बताता है। नेपाल की नई किताब में बच्चों को नेपाल के क्षेत्र के बारे में पढ़ाया जा रहा है और सीमा विवादों का जिक्र भी किया गया है। किताब में कहा गया है कि 1962 के चीन युद्ध के बाद तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी सेना कुछ वक्त तक नेपाल में रखने की इजाजत मांगी।

इसमें दावा किया गया है कि बाद में सेना हटाने की जगह भारत सरकार ने नक्शा जारी कर क्षेत्र को अपना बता दिया। इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि भारत ने सीमा से लगे जिलों में सोच-समझकर अतिक्रमण किया है। किताब में पोखरल ने खुद लिखा है कि कैसे उन्होंने 24 साल पहले भारतीय सेना को नेपाल से बाहर करने के लिए अभियान चलाया था। नेपाल में एक्सपर्ट्स ने भी इस कदम का विरोध किया है।

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उनका कहना है कि अकैडमिक किताब में मंत्री की भूमिका नहीं होनी चाहिए और पोखरल ने अपनी छवि बनाने के लिए ऐसा किया है। वहीं, सेंटर फॉर नेपाल ऐंड एशियन स्टडीज के असोसिएट प्रोफेसर का कहना है कि ऐसी किताबों से नई पीढ़ी का ज्ञान नहीं बढ़ता है, बल्कि दो देशों में तनावपूर्ण संबंधों के बीच बातचीत का रास्ता भी बंद हो जाता है।