लाल आतंक का दंश झेल चुके युवाओं ने अब इससे निपटने की ठान ली है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मैनपाट स्थित पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में धुर नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके के युवा पुलिस बल में शामिल हो गए। इन्होंने खुद नक्सलियों (Naxalites) के आतंक को अपनी आंखें से देखा है। इसमें से कइ लोगों के परिवार के सदस्यों की नक्सलियों ने हत्या कर दी है।
लाल आतंक का दंश झेल चुके युवाओं ने अब इससे निपटने की ठान ली है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मैनपाट स्थित पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में धुर नक्सल प्रभावित बस्तर इलाके के युवा पुलिस बल में शामिल हो गए। इन्होंने खुद नक्सलियों (Naxalites) के आतंक को अपनी आंखें से देखा है। इसमें से कइ लोगों के परिवार के सदस्यों की नक्सलियों ने हत्या कर दी है। इसके अलावा इनमें कई आत्मसमर्पित नक्सली भी शामिल हैं। अब ये जवान नक्सलवाद (Naxalism) का खात्मा करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
संविधान की रक्षा के लिए करेंगे काम
पुलिस प्रशिक्षण पूरा होने के बाद आयोजित दीक्षांत समारोह में आईजी रतन लाल डांगी ने इन युवा पुलिसकर्मियों से आव्हान किया है कि वे नक्सल प्रभावित इलाकों में जाएं और लोगों को बताएं कि हिंसा से किसी का भला नहीं होने वाला। वहीं, जो आत्मसमर्पित नक्सली (Naxalites) एसपीओ बनने के बाद पुलिस बल में शामिल हुए हैं, उनसे आईजी ने कहा कि अब तक वे संविधान के खिलाफ काम करते थे, लेकिन अब वे उसकी रक्षा के लिए काम करेंगे।
इंसानियत को न भूलें
मैनपाट में आयोजित पांचवें दीक्षांत समारोह में 140 युवाओं को 18 फरवरी को पुलिस की वर्दी मिल गई। इस मौके पर आईजी रतन लाल डांगी ने जवानों को संबोधित करते हुए कहा कि पुलिस के जवान और अधिकारी बाद में है, इससे पहले वे इंसान हैं। जब आम आदमी के बीच में जाएं तो अपनी इंसानियत को न भूलें। अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करें। उनकी ताकत देश और विभाग हित में हो। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पुलिस की छवि अगर खराब होती है तो इससे पुलिसकर्मी की छवि खराब होती है। पुलिस होने के साथ इस बात को न भूले कि एक इंसान भी हैं और इसका ख्याल रखते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करें।
लोगों को जागरूक करें- आईजी
आईजी डांगी ने कहा कि बस्तर इलाके से भी कई युवा आज पुलिस बन रहे हैं। बस्तर वह इलाका है जहां नक्सलियों (Naxalites) का आतंक है। यहां कई युवा नक्सलियों से प्रेरित होकर अपने राह से भटक गए थे, लेकिन सरकार की पुनर्वास नीति के माध्यम से वे वापस लौट गए और यहां पुलिस का प्रशिक्षण लेकर अब देश के संविधान की रक्षा करेंगे। अब उनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है, वे अपनी ड्यूटी के दौरान ऐसे युवाओं और लोगों को जागरूक करें। इसके साथ ही सरकार की पुनर्वास नीति के बारे में बताएं ताकि वे जंगल से बाहर आएं और अच्छा जीवन जी सकें।
नक्सलियों ने कलमू के भांजे की कर दी थी हत्या
सुकमा इलाके के पोलमपल्ली इलाके के इतागुडा निवासी कलमू लक्ष्मणे अब तक एसपीओ थे। लेकिन इस दीक्षांत समारोह के बाद अब वे डीआरजी में शामिल हो गए। साल 2006 में वे गांव में ही रहकर सरकारी निर्माण कार्यों से गांव के विकास के लिए सरपंच सचिव के साथ मिलकर काम करते थे। लेकिन नक्सलियों (Naxalites) ने उनसे 60 हजार रुपए लेवी मांगी, जिसके लिए उन्होंने इंकार कर दिया। इस पर नक्सलियों ने उन्हें पीटा। वह पत्नी के साथ जगलदपुर आए थे, तभी नक्सलियों (Naxalites) ने गांव में उनकी हत्या का प्लान बना लिया। 2006 में वह सलवा जुडूम कैंप में आए और रहने लगे। जब उसकी दीदी के साथ उसका भांजा गांव गया तो नक्सलियों ने भांजे की हत्या कर दी थी।
पढ़ें: सैन्य सम्मान के साथ राजस्थान के शहीद को दी गई अंतिम विदाई