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मध्य प्रदेश: सिंधिया के ‘हाथ’ में ‘कमल’ से “कमल राज” को खतरा! अब क्या होगा नाथ का?

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में पिछले कुछ दिनों से जारी राजनीतिक उठापटक के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने बीजेपी (BJP) का दामन थाम लिया है। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दिल्ली पार्टी मुख्यालय में सिंधिया को पार्टी की सदस्यता दिलायी। सिंधिया ने प्रधानमंत्री मोदी के नतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि वह आहत थे क्योंकि वह कांग्रेस में रहकर लोगों की सेवा का काम नहीं कर पा रहे थे। सिंधिया ने कहा कि अभी जो कांग्रेस पार्टी (Congress) है, वह नहीं है , जो पहले थी।

मंगलवार को जब पूरा देश होली मना रहा था, तभी सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) से मुलाकात कर रहे थे। इसके बाद उन्होंने पीएम मोदी से उनके 7, लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास पर मुलाकात की। मोदी के साथ सिंधिया की बैठक लगभग एक घंटे तक चली। इसके बाद सिंधिया ने अपने ट्विटर पर अपना इस्तीफा पोस्ट किया था। सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस ने कहा है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को निष्कासित किया गया है।

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बीजेपी ने राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों में 8 राज्यों से 11 उम्मीदवारों को घोषणा की। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को मध्य प्रदेश से बीजेपी का उम्मीदवार बनाया गया है।

मध्य प्रदेश में विधानसभा की प्रभावी संख्या अब 228 है। मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को 4 निर्दलिय विधायकों, 2 बसपा विधायकों और एक सपा विधायक का भी समर्थन हासिल है, लेकिन अब उनमें से कुछ बीजेपी की और पल्ला बदल सकते हैं। यदि 22 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिये जाते हैं तो विधानसभा की प्रभावी संख्या कम होकर 206 हो जाएगी। कांग्रेस के पास अपने दम पर 92 सीटें रह जाएगी जबकि बीजेपी के पास 107 सीटें हैं और बहुमत के लिए जादुई आंकड़ा 104 होगा।

यदि स्पीकर एन जी प्रजापति सभी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं तब भी कमलनाथ सरकार खुद-ब-खुद नहीं गिरेगी। सरकार गिराने के लिए कमलनाथ या तो खुद इस्तीफा दें या फिर फ्लोर टेस्ट में वह बहुमत साबित करने में नाकाम रह जाएं। ऐसे में अब विधानसभा स्पीकर की भूमिका बेहद अहम हो गई है, क्योंकि आर्टिकल 190 में इस्तीफों को मंजूरी देने या नहीं देने का अधिकार स्पीकर का ही होगा।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक स्पीकर को 7 दिन में फैसला लेना अनिवार्य है, परंतु वे 7 दिन विधायकों की अपने सामने कराई जाने वाली परेड से शुरू होंगे या इस्तीफे की तारीख से शुरू माने जाएंगे, यह तय करने का हक भी स्पीकर को ही है।