इस महीने पेरिस में होने जा रही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की मीटिंग में पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करने वाले मलेशिया और तुर्की की भूमिका अहम हो सकती है। मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली इस वैश्विक संस्था की 13 से 18 अक्टूबर के बीच होने वाली बैठक में यह तय होगा कि पाकिस्तान इसकी ‘ग्रे लिस्ट’ में बना रहेगा या फिर डाउनग्रेड होकर ‘ब्लैकलिस्ट’ हो जाएगा। पाकिस्तान पिछले साल जून से FATF की ग्रे लिस्ट में है, जिससे बाहर निकलने के लिए कुल 36 में से 15 वोट हासिल करना होगा। विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के लिए अपने साथ इतने देशों को लाना टेढ़ी खीर साबित होगा।
इसी साल जून में हुई FATF की मीटिंग में पाकिस्तान के दोस्त चीन, पारंपरिक समर्थक तुर्की और मलेशिया किसी तरह ब्लैकलिस्ट से बाहर बने रहने में कामयाब रहा था। पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट होने से फिर बचने के लिए FATF के तीन मेंबर्स के सपॉर्ट की जरूरत होगी, जिसके लिए वह चीन के अलावा मलेशिया और तुर्की भरोसा कर रहा है। इमरान खान FATF की मीटिंग में पाकिस्तान को मलेशिया और खास तौर पर तुर्की का साथ मिलने पर दांव लगा रहे हैं। उन्होंने अपनी इसी कोशिश के तहत उन्हें इस्लाम के बारे में फैली गलत धारणाओं को दूर करने के लिए तीन देशों का इस्लामी टेलिविजन चैनल शुरू करने का आइडिया दिया।
भारत के साथ मलेशिया के कभी बहुत अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। वहां की सरकार कश्मीर पर टिप्पणियों से कट्टरपंथी लोगों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही है। इसी तरह तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन ने भी मुल्क में कट्टरपंथियों के बीच अपना स्थान बनाए रखने के लिए कश्मीर पर भारत के कदम को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी। न्यूयॉर्क में लीडर्स डायलॉग ऑन स्ट्रैटेजिक रिस्पॉन्सेज टु टेररिज्म ऐंड वायलेंट एस्क्ट्रीमिस्ट नैरेटिव्स में इमरान खान को घेरने के लिए FATF की प्रक्रिया के राजनीतिकरण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से दिए गए बयान का मकसद पाकिस्तान को बेनकाब करना था।