Naxalites News: गिरिडीह पुलिस के सामने 5 लाख के इनामी नुनूचंद महतो ने सरेंडर किया था। ये खबर काफी चर्चा में थी। एसपी ने खुद बुके देकर सरेंडर करने वाले नक्सली का उत्साह बढ़ाया था और उसे 5 लाख रुपए का चेक सौंपा था।
रांची: झारखंड में नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ लगातार अभियान जारी है। इसका असर ये हुआ है कि कई नक्सली मारे गए हैं और कई ने सरेंडर किया है। बीते कुछ सालों में सरेंडर करने वाले नक्सलियों की संख्या बढ़ी है।
हालही में गिरिडीह पुलिस के सामने 5 लाख के इनामी नुनूचंद महतो ने सरेंडर किया था। ये खबर काफी चर्चा में थी। एसपी ने खुद बुके देकर सरेंडर करने वाले नक्सली का उत्साह बढ़ाया था और उसे 5 लाख रुपए का चेक सौंपा था।
कुछ महीने पहले 10 लाख के इनामी नक्सली (Naxalites) रघुवंश गंजू ने भी चतरा में सरेंडर किया था। ऐसे में लोगों के मन में एक सवाल आता है कि आखिर सरकार नक्सलियों को सरेंडर करने पर इतना सम्मान क्यों देती है और क्यों इन नक्सलियों को सरेंडर करने पर पैसा, मकान, जमीन जैसी तमाम सुविधाएं मिलती हैं? जबकि सरेंडर करने वाले नक्सलियों के हाथ लोगों के खून से रंगे हैं, यानी उन्होंने हत्या समेत कई अपराध किए हैं।
सरेंडर करने वाले नक्सली किस संगठन से हैं?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में बीते 5 साल में सबसे ज्यादा सरेंडर TSPC के नक्सलियों ने किए हैं। इस संगठन ने 90 के दशक में नक्सल विरोधी अभियान में सुरक्षाबलों का काफी सपोर्ट किया था।
इस संगठन के सदस्य एक बेहतर जिंदगी जीना चाहते थे और इस तलाश में थे कि कोई रास्ता मिले। लेकिन समस्या ये थी कि वे सरकार से बात करने में हिचकिचाते थे।
कैसे सरेंडर करने वाले नक्सलियों की संख्या बढ़ी?
बीते कुछ सालों में सरेंडर करने वाले नक्सलियों की संख्या बढ़ी है, इसकी वजह है CRPF और स्थानीय पुलिस का दोस्ताना व्यवहार। CRPF और स्थानीय पुलिस नक्सलियों के गढ़ में काफी अंदर तक पहुंच चुकी है। ऐसे में जवान सीधे TSPC के नक्सलियों के संपर्क में आ जाते हैं।
जवान, नक्सलियों को समझाते हैं कि अगर वह सरेंडर करेंगे तो उन्हें सरकार की सरेंडर पॉलिसी का फायदा मिलेगा और वह एक बेहतर जीवन जी सकेंगे, जिसमें कोई खतरा भी नहीं होगा।
जब जवानों की तरफ से नक्सलियों को सरकार की सरेंडर पॉलिसी के बारे में समझाया जाता है तो नक्सलियों का विश्वास देश के लोकतंत्र और व्यवस्था में बढ़ता है।
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नक्सलियों से बातचीत के दौरान जवान उन्हें ये भी बताते हैं कि अगर वह सरेंडर करेंगे तो उन पर रखा गया इनाम भी उन्हें ही मिलेगा और सरकार उन्हें रोजगार भी दिलवाएगी। इसके अलावा जो भी मामले उन पर चल रहे हैं, सजा के दौरान उसमें भी सरकार उन्हें रियायत दिलवाएगी।
सरकार की सुविधाओं का लाभ और समाज की मुख्यधारा से जुड़ने की इच्छा, नक्सलियों को सरेंडर करवाती है।
कितना सफल रही है सरकार की सरेंडर पॉलिसी?
झारखंड के चतरा और आसपास के इलाकों में सरकार की ओर से चलाई जा रही योजनाओं का काफी फर्क पड़ा है। मिली जानकारी के मुताबिक, बीते 5 सालों में यहां से 126 नक्सली या तो गिरफ्तार हुए हैं या सरेंडर किया है।
बता दें कि जितने ज्यादा नक्सली मुख्यधारा में वापस आएंगे, समाज उतनी ही जल्दी विकसित होगा। क्योंकि नक्सल प्रभावित इलाकों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि नक्सली वहां विकास नहीं होने देते और हिंसा समेत कई अपराधों को अंजाम देते हैं।