भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर एक बार फिर से तनातनी का माहौल है। ताजा विवाद लद्दाख के पैगोंग सो इलाके में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प से शुरू हुआ। चीनी सेना ने गलवान घाटी में भारतीय क्षेत्र में बार-बार घुसपैठ कर इस विवाद को हवा दी। हालात अब ऐसे हैं कि एलएसी पर लद्दाख से लेकर उत्तरी सिक्किम तक दोनों ओर भारी संख्या में सैनिक तैनात हैं। यह हाल के समय में एलएसी पर दोनों ओर से सबसे बड़ा जमावड़ा है।
वैसे अब तक दोनों देश स्थिति को नियंत्रण में बता रहे हैं और राजनयिक स्तर पर इस विवाद को सुलझाने में जुटे हुए हैं। सेना के शीर्ष कमांडरों की मुलाकात का सिलसिला जारी है। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मध्यस्थता की पेशकश कर दी है। उनकी यह पेशकश तो खैर भारत और चीन दोनों ही ठुकरा देंगे लेकिन इससे साफ है कि दुनिया की नजर इस विवाद पर बनी हुई है।
चीन से सीमा का विवाद नया नहीं है। अक्साई चिन से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारत और चीन के बीच कई मामले हैं। दोनों देशों के बीच 3500 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल फिलहाल अंतरराष्ट्रीय सीमा का काम करती है, लेकिन कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां दोनों देश अपना दावा रखते हैं। गाहे-बगाहे चीनी सेना पैट्रोलिंग के नाम पर भारतीय इलाके में घुसपैठ करती रहती है। डोकलाम एक ऐसा ही मामला था जहां 70 दिन से ज्यादा समय तक विवाद हुआ था। हालांकि, वहां कहीं न कहीं चीन को कूटनीतिक और रणनीतिक हार का सामना करना पड़ा था।
भारत-चीन विवाद के पीछे क्या?
ऐसे में सवाल है कि आखिर पैंगोंग सो और गलवान घाटी में फिर से बढ़ी तनातनी के पीछे चीन की क्या मंशा है। एक्सपर्ट्स की मानें तो चीन की इस हरकत के पीछे एलएसी के पास भारत के ओर से किए जा रहे विकास के काम हैं। एमआईटी में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर टेलर फ्रैवल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि चीन एलएसी के पास भारत की गतिविधियों को लेकर काफी अलर्ट रहता है। वह शायद लद्दाख में सीमाई इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने के भारतीय प्रयासों के जवाब में ऐसा कर रहा है। सीमा सड़क संगठन ने हाल में ही गलवान इलाके में एक सड़क पूरी की है।
भारत ने यह साफ कर दिया है कि यह निर्माण उसके इलाके में हो रहा है। साथ ही यह लोगों की सुविधा के लिए है और इसका कोई रणनीतिक मकसद नहीं है। चीन की कोशिश हो सकती है कि वह लद्दाख में तनाव बढ़ाकर भारत पर दबाव बढ़ा सके।
लद्दाख से चीन के उइगर और तिब्बत जैसे संवेदनशील इलाकों के रास्ता खुलता है। ऐसे में लद्दाख चीन के लिए काफी अहम है। श्याम शरण कमिटी की 2013 में आई रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कई वर्षों के दौरान चीनी सेना ने धीरे-धीरे लद्दाख में भारतीय हिस्से की काफी जमीन हथिया ली है। हालांकि, भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया था।
चीन इस इलाके में वर्षों से निर्माण करता रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में लद्दाख में इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में काफी तेजी से काम किया है। ऐसे में चीनी सेना का व्यवहार और आक्रामक हुआ है। जब पिछले साल अगस्त में भारत ने लद्दाख को एक अलग केंद्र-शासित क्षेत्र बनाया तो चीन ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसको लेकर पर अपनी आपत्ति जताई थी। जाहिर है यह भारत के अंदरुनी मामले में दखल देकर उस पर दबाव बनाने की पड़ोसी देश की नीति थी।
यह हालिया तनातनी भी कहीं न कहीं ऐसी ही रणनीति का हिस्सा लग रही है। कोरोनावायरस के कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़े चीन के लिए जरूरी है कि वह दुनिया को अपना दमखम दिखा सके। लद्दाख उसके लिए ऐसा ही एक मौका हो सकता है। चीन आखिरकार इस विवाद से क्या हासिल कर पाएगा यह कहना तो मुश्किल है लेकिन एशिया को सबसे बड़ी शक्तियों के बीच का यह तनाव विश्व के लिए सच में चिंता का मामला है।