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जश्न-ए-आजादी के बीच तमाम विकृतियों की गुलामी की जकड़न में फंसा ये देश, सोचिये कि हम आजाद कहां हैं?

Independence Day 2020 II स्वतंत्रता दिवस

हमारे देश में हमेशा की तरह कैलेंडर की घूमती तारीख ने 15 अगस्त को सामने ला दिया है, जो आज जश्न-ए-आजादी के पर्व के रूप में मनाया जा रहा है। जहां सरेआम लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वाले कुछ जनप्रतिनिधि हर साल स्वतंत्रता के प्रतीक तिरंगे के नीचे खड़े होकर देश की रक्षा व प्रगति का संकल्प लेते हैं। आजादी (Independence) के इन 74 वर्षों में लोकतंत्र के पवित्र स्थल संसद एवं विधानसभाओं के हालात किस कदर बदले हैं, किसी से छिपा नहीं है। इस देश में आज अभद्रता की सीमा पार करते हमारे जनप्रतिनिधि गाली-गलौच, उठापटक से लेकर कुर्ता-फाड़ की राजनीति तक उतर आये हैं। राजनीति की भाषा का स्तर दिन-ब-दिन इतना घिनौना होता जा रहा है, जिसकी बदसूरत तस्वीर पिछले सात दशकों में भी देखने को नहीं मिली।

हालांकि इस बार के स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने से चंद दिनों पहले जिस प्रकार मोदी सरकार ने अयोध्या में भगवान राम को उनका पैतृक घर दिलवाया, वह अपने आप में बेमिसाल कदम है। दशकों से दो समुदायों के बीच चली आ रही राम जन्मभूमि के वजूद की लड़ाई पर अब पुर्ण विराम लग गया है। ये फैसला उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो इसे मुद्दा बनाकर लोगों को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा करते आये हैं।

विदेशी जमीं पर पहली बार भारतीय झंडा फहराने वाली जाबांज महिला थीं मैडम भीकाजी कामा

देश की सूरत और सीरत बदलने के लिए आज ऐसे ही कठोर कदमों और दृढ़ संकल्पों की जरूरत है और साथ ही जरूरत है ऐसे लोगों पर नकेल कसने की, जो किसी भी रूप में देश का माहौल बिगाड़ते हैं और विकास की गति को बाधित करने में सहायक बनते हैं। आतंक के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक हो या जम्मू-कश्मीर के मसले पर उठाया गया दिलेरी भरा कदम, कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं को राष्ट्र की अस्मिता तथा एकता और अखण्डता से जुड़े ऐसे तमाम मसलों पर भी जब घृणित राजनीति करते देखा जाता है, तो उनकी ऐसी हरकतों पर सिर शर्म से झुक जाता है।

दरअसल आज देश के हालात कुछ ऐसे हैं, जहां कमोबेश हर राजनीतिक दल में ऐसे नेताओं की भरमार है, जिनकी भूमिका अक्सर राजनीति के नाम पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकने तक ही सीमित रहती है। वर्षों की गुलामी के बाद मिली आजादी (Independence) को हम किस रूप में संजोकर रख पाए हैं, सभी के सामने है। आजादी के दीवानों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस देश को आजाद कराने हेतु वे इतनी कुर्बानियां दे रहे हैं, उसकी यह दुर्दशा होगी और आजादी की तस्वीर ऐसी होगी।

 आजादी (Independence) का मौजूदा स्वरूप

अपराधों की बढ़ती सीमा को देख बुजुर्ग तो अब कहने भी लगे हैं कि गुलामी के दिन तो आज की आजादी (Independence) से कहीं बेहतर थे, जहां अपराधों को लेकर मन में भय व्याप्त रहता था किन्तु कड़े कानून बना दिए जाने के बावजूद अब अपराधियों के मन में किसी तरह का भय नहीं दिखता। देश के कोने-कोने से सामने आते बच्चियों व महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों के बढ़ते मामले, आजादी की बड़ी शर्मनाक तस्वीर पेश कर रहे हैं। महंगाई सुरसा की तरह बढ़ती जा रही है, आतंकवाद की घटनाएं पसार रही हैं, आरक्षण की आग देश को जला रही है। इस तरह के हालात निश्चित तौर पर देश के विकास के मार्ग में बाधक बने हैं।

अगर कभी आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाने की पहल होती है, तो उन कदमों का सत्ता के ही गलियारों में कुछ लोगों द्वारा पुरजोर विरोध किया जाने लगता है। हर कोई सत्ता के इर्द-गिर्द राजनीतिक रोटियां सेंकता नजर आ रहा है।

देशभर में कोई सत्ता बचाने में लगा है तो कोई गिराने में ऐसे बदरंग हालातों में यह सवाल रह-रहकर सिर उठाने लगता है कि आखिर कैसी है ये आजादी (Independence) ? आखिर आजादी का अर्थ क्या है? इस प्रश्न का उत्तर तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक कि यह न जान लिया जाए कि स्वतंत्र होना किसे कहते हैं? यह जान लेना अत्यंत जरूरी है कि क्या कुछ बुनियादी मानवाधिकारों से वंचित व्यक्ति, समाज या देश को स्वतंत्र कहा जा सकता है? क्या भोजन, कपड़ा व रहने की व्यवस्था, बीमारी से बचाव, भय-आतंक, शोषण असुरक्षा से छुटकारा, साक्षर एवं शिक्षित होने के पर्याप्त अवसर मिलना और अन्य ऐसी ही कई बातें मानव के बुनियादी अधिकार नहीं हैं? क्या शोषण व उत्पीड़न से मुक्ति के संघर्ष को मानव का बुनियादी अधिकार नहीं माना जाना चाहिए?  

आजादी (Independence) के सात दशकों बाद भी भ्रष्टाचार व अपराधों का आलम यह है कि आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। बगैर लेन-देन के आज भी कोई काम सम्पन्न नहीं होता। आजादी के बाद लोकतंत्र के इस बदलते स्वरूप ने आजादी की मूल भावना को बुरी तरह तहस-नहस कर डाला है। यह आजादी का एक शर्मनाक पहलू ही है कि हत्या, भ्रष्टाचार, बलात्कार जैसे संगीन अपराधों से विभूषित जनप्रतिनिधि अक्सर सम्मानित जिंदगी जीते रहते हैं। देश के ये बदले हालात आजादी के कौन-से स्वरूप को उजागर कर रहे हैं, विचारणीय मुद्दा है।

लोकतंत्र के हाशिये पर खड़ी देश की जनता को इस दिशा में फिर से मंथन करना आवश्यक हो गया है कि वह किस तरह की आजादी (Independence) की पक्षधर है? आज की आजादी, जहां तन के साथ-साथ मन भी आजाद है, सब कुछ करने के लिए, चाहे वह वतन के लिए अहितकारी ही क्यों न हो, या उस तरह की आजादी, जहां वतन के लिए अहितकारी हर कदम पर बंदिश हो? आज की आजादी, जहां स्वहित राष्ट्रहित से सर्वोपरि होकर देशप्रेम की भावना को लीलता जा रहा है या वह आजादी, जहां राष्ट्रहित की भावना सर्वोपरि स्वरूप धारण करते हुए देश को आजाद कराने में गुमनाम लाखों शहीदों के मन में उपजे देशप्रेम का जज्बा सभी में फिर से जागृत कर सके?

आजादी (Independence) के इस पावन पर्व पर सभी देशवासियों को इस तरह के परिवेश पर सच्चे मन से मंथन कर सही दिशा में संकल्प लेने की भावना जागृत करनी होगी, तभी आजादी के वास्तविक स्वरूप को परिलक्षित किया जा सकेगा। सरकार द्वारा राम मंदिर, आर्टिकल 370, तीन तलाक, आरक्षण जैसे विवादित मामले में उठाए गए साहसिक कदमों की भांति अगर राष्ट्र की बेहतरी के लिए भविष्य में भी ऐसे ही कुछ कड़े कदम उठाए जाते हैं, तो हमें उनमें मीन-मेख निकालने के बजाय खुले दिल से उनका स्वागत करना चाहिए। हमें अब आजादी (Independence) की मूल भावना को समझते हुए स्वयं ही यह तय करना होगा कि हम आखिर किस प्रकार की आजादी के पक्षधर हैं? आजादी के नाम पर उद्दंडता या मनमर्जी चलाते रहने की स्वतंत्रता या कुछ कड़े कदमों के सहारे ही सही, आने वाले समय में देश की मूल समस्याओं से आजादी?