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15 अगस्त विशेष: भारत का वीर पुत्र ऊधम सिंह, जिसने 21 साल बाद लिया जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

Independence Day 2020 II वीर क्रांतिकारी ऊधम सिंह

उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली। अपने बयान में ऊधम सिंह (Udham Singh) ने कहा- ‘मैंने डायर को मारा, क्योंकि वह इसी के लायक था। मैंने ब्रिटिश राज्य में अपने देशवासियों की दुर्दशा देखी है।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में सन् 1919 का 13 अप्रैल का दिन आंसुओं में डूबा हुआ है, जब अंग्रेजों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निहत्थे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलायीं और सैकड़ों बेगुनाह लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना से पूरे भारतीयों का खून खौल गया। इनमें से ही एक थे अमर शहीद ऊधम सिंह (Udham Singh)।

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इस घटना ने ऊधम सिंह (Udham Singh) को हिलाकर रख दिया और उन्होंने अंग्रेजों से इसका बदला लेने की ठान ली। इस घटना के लिए जनरल माइकल ओ’डायर को जिम्मेदार माना जो उस समय पंजाब प्रांत का गवर्नर था। गवर्नर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजीनल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने 90 सैनिकों को लेकर जलियांवाला बाग को चारों तरफ से घेर कर मशीनगन से गोलियां चलवाईं।

लंदन में ऊधम सिंह (Udham Singh) ने लिया जलियांवाला का बदला

सन् 1934 में ऊधम सिंह (Udham Singh) लंदन गये और वहां 9 एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड़ पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ’डायर को ठिकाने लगाने के लिए सही समय का इंतजार करने लगा।  जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को ‘रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी’ की लंदन के ‘कॉक्सटन हॉल’ में बैठक थी जहां माइकल ओ’डायर भी वक्ताओं में से एक था।

ऊधम सिंह (Udham Singh) उस दिन समय से पहले ही बैठक स्थल पर पहुंच गए। उन्होंने अपनी रिवाल्वर एक मोटी सी किताब में छिपा ली। उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवाल्वर के आकार में इस तरह से काट लिया, जिसमें डायर की जान लेने वाले हथियार को आसानी से छिपाया जा सके। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए ऊधम सिंह (Udham Singh) ने माइकल ओ’डायर पर गोलियां चला दीं। दो गोलियां डायर को लगीं, जिससे उसकी तुरन्त मौत हो गई। गोलीबारी में डायर के दो अन्य साथी भी घायल हो गए।

ऊधम सिंह (Udham Singh) ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और स्वयं को गिरफ्तार करा दिया। उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे सवाल किया गया कि ‘वह डायर के साथियों को भी मार सकते थे, किन्तु उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया।’ इस पर ऊधम सिंह (Udham Singh) ने उत्तर दिया कि, वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।  

अपने बयान में ऊधम सिंह (Udham Singh) ने कहा- ‘मैंने डायर को मारा, क्योंकि वह इसी के लायक था। मैंने ब्रिटिश राज्य में अपने देशवासियों की दुर्दशा देखी है। मेरा कर्तव्य था कि मैं देश के लिए कुछ करूं। मुझे मरने का डर नहीं है। देश के लिए कुछ करके जवानी में मरना चाहिए।’

4 जून 1940 को ऊधम सिंह (Udham Singh) को डायर की हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें ‘पेंटनविले जेल’ में फांसी दे दी गयी। इस प्रकार यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए थे। ऊधम सिंह की अस्थियां सम्मान सहित भारत लायी गईं। उनके गांव में उनकी समाधि बनी हुई है।