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किसान आंदोलन: किसानों ने एक बार फिर सरकार के सुझाव को ठुकराया, कहा- “बातचीत कैसी, हमें तो कानून ही नहीं चाहिये”

Farmers Protest against Farm Acts

सरकार ने एक बार फिर कृषि कानून (Farm Acts) रद्द करने के बजाय किसानों (Farmers) को आंदोलन छोड़कर बातचीत जारी रखने का प्रस्ताव दिया। किसान संगठनों (Farmers Groups) ने इसे यह कहकर खारिज कर दिया कि बातचीत पहले ही काफी हो चुकी हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जारी रहने का सरकार का लिखित वादा तो राज्य सरकारों और किसान संगठनों से करेगी लेकिन उसका भी अलग से कानून नहीं बनाएगी।

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दरअसल, सरकार ने फिर स्पष्ट कर दिया है कि वह कृषि कानूनों (Farm Acts) में सुधार और संशोधन तो जितने किसान चाहेंगे उतने करेगी लेकिन कृषि कानूनों को वापस लेने का उसका अभी कोई इरादा नहीं है। वहीं किसान संगठनों (Farmers Groups) ने भी साफ कर दिया है कि वह कृषि कानूनों में संशोधन भर से संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उन्हें ये कानून ही नहीं चाहिए।

किसान नेताओं ने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि वह दूसरे राज्यों से किसानों (Farmers) को दिल्ली नहीं पहुंचने दे रही है। यह संतोष की बात है कि किसान नेता दर्शन पाल ने कहा है कि किसानों का रेल की पटरियों पर धरना देने का अभी कोई कार्यक्रम नहीं है। उनका जोर अपने आंदोलन को तेज करने और पूरे देश में प्रदर्शनों की संख्या बढ़ाने पर है।

गौरतलब है कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने स्पष्ट किया कि कृषि कानून (Farm Acts) किसानों को ध्यान में रखकर जीडीपी में भी कृषि की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए लाए गए हैं। कोई भी कानून पूरी तरह खराब नहीं हो सकता। इसी प्रकार से कृषि कानून में जो प्रावधान किसानों को प्रतिकूल लगते हैं‚ उनका समाधान निकालने के लिए सरकार बातचीत के लिए तैयार है।

कृषि मंत्री ने बताया कि किसान संगठनों (Farmers Groups) से सुझाव नहीं मिलने पर सरकार ने उन बिंदुओं पर जवाब प्रस्ताव के रूप में किसानों के पास भेजे हैं जो बातचीत के दौरान उभरे थे। इन प्रस्तावों पर विचार करके किसान संगठनों को सरकार को जवाब देना चाहिए और तब तक अपने आंदोलन के आगामी कार्यक्रम स्थगित रखने चाहिए क्योंकि अभी बातचीत बंद नहीं हुई है।