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बिहार: राज्य में टूट चुकी है नक्सलियों की कमर, एलडब्ल्यूई लिस्ट से बाहर हुए 6 जिले

सांकेतिक तस्वीर

अब माओवादी विचारधारा नहीं रही। इसके बजाय, नक्सलियों (Naxalites) की गतिविधियां लेवी या जबरन वसूली जैसे अपराध तक ही सीमित रह गई हैं।

बिहार (Bihar) में नक्सलियों (Naxalites) की कमर टूट चुकी है। राज्य के छह जिलों को वामपंथी चरमपंथी (एलडब्ल्यूई) उग्रवाद सूची से हटा दिया गया है। गृह मंत्रालय ने हाल ही में यह लिस्ट जारी की थी, जिसमें बिहार के 6 जिले वामपंथी चरमपंथी (एलडब्ल्यूई) उग्रवाद सूची से हटा दिए गए। अब यहां केवल 10 जिले नक्सल प्रभावित रह गए हैं। इसकी जानकारी बिहार के एडीजी (ऑपरेशन) सुशील मानसिंह खोपड़े ने दी है।

सुशील मानसिंह खोपड़े ने बताता कि यह झारखंड सहित अन्य राज्यों की तुलना में अधिक शांतिपूर्ण है। माओवादी हिंसा (Naxal Violence) की घटनाएं इस बात को साबित करती हैं। इस साल 23 जुलाई तक सिर्फ पांच ऐसी घटनाएं हुई हैं। अब केवल 10 बिहार जिले ही वामपंथी उग्रवाद प्रभावित सूची में हैं। हमने 2015, 2019 और 2020 में तीन सफल ‘रक्तहीन’ चुनाव कराए।

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उन्होंने बताया कि सशस्त्र माओवादी कैडर केवल झारखंड के पास गया-औरंगाबाद सीमा पर चकरबंधा की पहाड़ियों और जमुई और लखीसराय-मुंगेर के पहाड़ी इलाकों में केंद्रित हैं। इनकी ताकत 100 के आसपास ही है। केंद्रीय बलों और स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) की टीमों ने उन्हें वहीं सीमित कर दिया है। इससे पहले बगहा में एक सशस्त्र कैडर था, जिसे पिछले साल जुलाई में खत्म कर दिया गया था।

अधिकारी के अनुसार, अब माओवादी विचारधारा नहीं रही। इसके बजाय, नक्सलियों (Naxalites) की गतिविधियां लेवी/जबरन वसूली जैसे अपराध तक ही सीमित हैं। यह बात अब गांव वाले भी जान गए हैं। हमें उनकी गतिविधियों के बारे में 80% जानकारी ग्रामीणों से मिलती है। प्रवर्तन निदेशालय ने इनके कमांडरों का पर्दाफाश किया है। एजेंसी ने कई माओवादी नेताओं की संपत्ति जब्त की है।

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ADG ने यह भी बताया कि केंद्र और राज्य स्तर पर जल्द ही सरेंडर पॉलिसी को अपग्रेड किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा माओवादी मुख्यधारा में शामिल हों। हम उम्मीद करते हैं कि शीर्ष माओवादी नेता भविष्य में बड़े नकद पुरस्कारों के साथ आत्मसमर्पण करेंगे।

ADG (ऑपरेशन) के मुताबिक, अब लगभग हर जगह बिजली और सड़कें हैं। कुछ सड़कों का निर्माण माओवादी प्रभावित क्षेत्रों के अंदर किया गया है, जिससे बलों की आवाजाही आसान हो गई है। जिला मुख्यालय में 24 घंटे बिजली की आपूर्ति है। एक उदाहरण गया जिले के सलैया का है, जहां सरकार ने अंदर एक सड़क का निर्माण किया है जहां सुरक्षाबलों ने शिविर लगाए हैं।

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ADG सुशील मानसिंह खोपड़े ने कहा कि वंचित वर्गों के लिए आरक्षित सीटों वाले पंचायत चुनाव ने परिदृश्य बदल दिया है। गरीब बच्चों को शिक्षित करने के लिए जल्द ही उन क्षेत्रों में कुछ विशेष शैक्षणिक संस्थान जैसे ‘एकलव्य स्कूल’ की स्थापना की जाएगी। ऐसे क्षेत्रों में केंद्र और राज्य की कल्याणकारी योजनाएं लगातार चलती रहती हैं। पहले ग्रामीण किसी भी तरह की मदद के लिए माओवादियों से संपर्क करते थे। पर अब ऐसा नहीं है।