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दिल्ली की पहली महिला मेयर अरुणा आसफ अली, अंग्रेजों ने इनके सिर पर रखा था 5 हजार का इनाम

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ग्रैंड ओल्ड लेडी अरुणा आसफ अली। फाइल फोटो।

अरुणा आसफ अली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थीं। भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाली अरुणा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी लम्बे समय तक राजनीति में सक्रिय रहीं। वर्ष 1942 की क्रांति में जिन महिलाओं ने अपने शौर्य और साहस का परिचय दिया, उनमें अरुणा आसफ अली का नाम सबसे आगे लिया जाता है। अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई, 1909 को तत्कालीन पंजाब प्रांत के कालका में हुआ था। अरुणा आसफ अली का मूल नाम अरुणा गांगुली था। इनके पिता का नाम डॉ. उपेन्द्रनाथ गांगुली था। अरुणा आसफ अली की शिक्षा-दीक्षा लाहौर और नैनीताल में हुई थी। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद अरुणा आसफ अली गोखले मेमोरियल स्कूल, कलकत्ता में शिक्षक के तौर पर कार्य करने लगीं।

अरुणा ने परिवार वालों की मर्जी के खिलाफ अपने से 23 वर्ष बड़े और गैर ब्राह्मण समुदाय से संबंधित आसफ अली से प्रेम विवाह किया। आसफ अली इलाहाबाद में कांग्रेस पार्टी के नेता थे। शादी के बाद अरुणा पति के साथ स्वतंत्रता संग्राम में जुट गईं। नमक सत्याग्रह के दौरान अरुणा सार्वजनिक सभाओं में सक्रिय रहीं और जुलूस निकाले। इस पर उन्हें एक साल की जेल भी हुई। यह 1930 की बात है। जब गांधी- इरविन समझौते के तहत सभी राजनीतिक बंदियों को जेल रिहा किया जा रहा था उस वक्त अरुणा जेल में ही थीं। ब्रिटिश सरकार उन्हें जेल से रिहा नहीं करना चाहती थी। लेकिन जब उनके समर्थन में आंदोलन हुआ तो अंग्रेजों को मजबूरन उन्हें जेल से रिहा करना पड़ा। 1932 में ब्रिटिश सरकार ने अरुणा को फिर से बंदी बना लिया और तिहाड़ जेल भेज दिया।

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भूख हड़ताल करने पर अरुणा को अंबाला में एकांत कारावास में डाल दिया गया। इस तरह अंग्रेजों ने उन्हें काफी वक्त तक भारत के स्वतंत्रता संग्राम से दूर रखा। उनकी पहचान 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से हुई। उन्होंने गौलिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन के आगाज की सूचना दी। ऐसा करके वो उन हजारों युवाओं के लिए एक मिसाल बन गईं जो उनका अनुसरण कर देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरना चाहते थे। भारत छोड़ो आंदोलन में इनकी अहम भूमिका रही। हालांकि ब्रिटिश हुकुमत की गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्हें भूमिगत होना पड़ा था। उनकी संपत्ति को सरकार द्वारा जब्त करके बेच दिया गया। सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए 5000 रुपए के इनाम की घोषणा भी की। इस बीच वह बीमार पड़ गईं और यह सुनकर गांधी जी ने उन्हें समर्पण करने की सलाह दी।

26 जनवरी, 1946 को जब उन्हें गिरफ्तार करने का वारंट रद्द किया गया तब अरुणा आसफ अली ने स्वयं आत्मसमर्पण किया। आजादी के बाद वर्ष 1958 में वह दिल्ली की प्रथम महापौर चुनी गईं। राष्ट्र निर्माण में जीवन पर्यन्त योगदान के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 1964 में उन्हें अंतरराष्ट्रीय लेनिन शांति पुरस्कार मिला। 1991 में अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 29 जुलाई, 1996 को अरुणा आसफ अली का देहांत हो गया। अरुणा आसफ अली की याद में उन्हें 1998 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से नवाजा गया। भारतीय डाक सेवा ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया। उनके साहसी व्यक्तित्व के लिए ही उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ कहा जाता है।

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