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Kartar Singh Sarabha Birth Anniversary: वह क्रांतिकारी जिसे शहीद भगत सिंह अपना गुरु मानते थे, अंग्रेज़ मानते थे सबसे बड़ा खतरा

करतार सिंह कोब्रिटिश मानते थे ‘अंग्रेजी राज के लिए सबसे बड़ा खतरा’।

Kartar Singh Sarabha Birth Anniversary: करतार सिंह सराभा का आज जन्मदिन है,  ऐसे क्रान्तिकारी जिसने मात्र 19 साल की उम्र में फांसी के फंदे को चूम लिया। ऐसा क्रांतिकारी जिसे शहीद-ए-आज़म भगत सिंह अपना गुरु मानते थे और जिसकी तस्वीर हमेशा अपने पास रखते थे। 24 मई, 1896 को लुधियाना के सराभा गांव में जन्मे करतार सिंह सराभा उन हजारों क्रांतिकारियों में से एक हैं जो भारत के आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। इतिहास के पन्नो में गुम सराभा ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन को नया मोड़ दिया।

स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए। यहां इन्हें मालूम हुआ कि एक पराधीन देश का नागरिक होना क्या होता है और इस अनुभव ने करतार सिंह की सोच और जीने का मकसद पूरी तरह से बदल दिया। अमेरिका में लाल हरदयाल और सोहन सिंह भाखना ने गदर पार्टी की स्थापना की थी। वहीं करतार सिंह इनसे मिले और गदर पार्टी से जुड़ गए। इस समय उनकी उम्र मात्र 17 साल थी। गदर पार्टी एक पत्रिका ‘गदर’ अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशित करती थी। इसके पंजाबी भाषा के संस्करण का संपादन करतार सिंह करने लगे। इस पत्रिका के जरिये वो नौजवानों में क्रांति की चेतना जगाने लगे।

नवंबर, 1914 वो कलकत्ता आए, जहां उनकी मुलाकात रास बिहारी बोस से हुई। रास बिहारी ने उन्हें पंजाब जा कर क्रांतिकारियों का संगठन तैयार करने को कहा। पंजाब पहुंच कर करतार सिंह क्रांति की अलख जगाने में जुट गए। जनवरी 1915 में रास बिहारी बोस अमृतसर आए। करतार सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के बीच अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की सहमति बनी। इसके लिए 21 फरवरी, 1915 का दिन पूरे भारत मे एक साथ क्रांति के लिए तय हुआ। करतार सिंह ने लाहौर छावनी के शस्त्र भंडार पर कब्जा करने का जिम्मा लिया। सारी तैयारियां मुकम्मल थीं। लेकिन अपने ही एक साथी की गद्दारी के कारण पुलिस को सारी योजना की जानकारी मिल गई। गदर पार्टी के जितने भी नेता जहां मिले, गिरफ्तार कर लिए गए। अंग्रेजों ने इसे लाहौर षड्यंत्र का नाम दिया।

आंदोलन की असफलता के बावजूद करतार सिंह ने 2 मार्च, 1915 को लायलपुर पहुंच कर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। जिसके बाद करतार सिंह को उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। 13 सितंबर, 1915 को करतार सिंह को साथियों समेत लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। वहां उन पर मुकदमा चला और कोर्ट ने 24 लोगों को फांसी की सजा सुनाई। करतार सिंह को सबसे खतरनाक ठहराया गया। 16 नवंबर, 1915 को मात्र 19 वर्ष की आयु में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। अपने मादरे वतन को स्वाधीन देखने का सपना लिए ये रण बांकुरा शहीद हो गया। उनकी जयंती के मौक पर शत्-शत् नमन।