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दुश्मन से लड़ते हुए दी शहादत, बीवी लगा रही सरकारी दफ्तरों के चक्कर

सीताराम उपाध्याय ने साल 2011 में मातृभूमि की सेवा के लिए सीमा सुरक्षा बल ज्वाइन किया।

मासूम बच्चे यह आस लगाए बैठे थे कि जब पिताजी घर आएंगे तो वो उन्हें ढेर सारा प्यार करेंगे और अपने साथ घुमाने ले जाएंगे। मां-बाप और पत्नी ने भी आस लगा रखी थी कि देश की सेवा कर लौटने के बाद सब एक साथ बैठकर ढेर सारी बातें करेंगे और गांव के बगीचे में लगे आम और अमरुद के पेड़ों पर पके फलों को जी भर कर खाएंगे। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था जिसका अंदाजा इस जवान के घरवालों को जरा भी नहीं था। हम बात कर रहे हैं 18 मई, 2018 को जम्मू-कश्मीर के आरएस पुरा सेक्टर में पाक रेंजर्स की गोलीबारी में शहीद हुए देश के वीर जवान सीताराम उपाध्याय की।

झारखंड के गिरीडीह जिले के नक्सल प्रभावित पीरटांड थाना क्षेत्र स्थित पालगंज के रहने वाले सीताराम उपाध्याय ने साल 2011 में मातृभूमि की सेवा के लिए सीमा सुरक्षा बल (BSF) ज्वाइन किया। उस वक्त भारत मां के लिए बेटे के जुनून को देख मां-बाप का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। साल 2014 में माता-पिता ने अपने लाडले की शादी करा दी। शादी के बाद सीतराम उपाध्याय दो बच्चों के पिता भी बने। यह परिवार बेहद खुश था लेकिन साल 2018 में अचानक इस परिवार की खुशियों को किसी की नजर लग गई और देश की रक्षा करते हुए बहादुर बेटे ने अपनी जान न्योछावर कर दी। उस वक्त देश के लिए मर मिटने वाले इस जवान को सभी ने नम आंखों से विदाई दी थी और हमेशा के लिए सीताराम उपाध्याय को अमर कर दिया।

अधूरा रह गया सरकारी वादा

लेकिन अभी शहीद के परिवार की समस्या खत्म नहीं हुई थी। सरकार ने शहीद के परिवार को मुआवजे का ऐलान किया और अन्य सुविधाएं भी परिवार को देने की बात कही गई। सीताराम उपाध्याय की शहादत के बाद उनके गृहराज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने परिवार को दस लाख रुपए का मुआवजा दिया। लेकिन परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा अब भी अधूरा है। शहीद के नाम पर अब तक ना तो तोरण द्वार बन सका और ना ही उनकी याद में स्टैच्यू का निर्माण हो सका।

परिवार पर रोजी-रोटी का संकट

घर में कमाने वाले एकमात्र सदस्य के चले जाने के बाद माता-पिता और दो बच्चों का भरण-पोषण सीताराम उपाध्याय की पत्नी रेश्मा के लिए अभी भी गहरी चिंता का कारण बना हुआ है। वीर सपूत सीताराम के जाने के बाद परिवार के लिए हुए सरकारी ऐलानों के इतर उनकी पत्नी ने सरकारी दफ्तरों के कई चक्कर काटे लेकिन उनकी फरियाद अभी भी पूरी नहीं हो सकी है। हालांकि, जिला प्रशासन ने शहीद सीताराम उपाध्याय चिल्ड्रेन पार्क जरूर बनवाया है, लेकिन परिवार के लिए अब भी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। पत्नी रेश्मा सरकारी नौकरी पाने के लिए अफसरों के कार्यालय के कई चक्कर लगा चुकी हैं लेकिन अब तक नतीजा सिफर ही रहा है।

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