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‘करम ही धरम’, बिहार रेजीमेंट ने अब तक कई बार दुश्मनों के दांत किए खट्टे

सन् 1758 में मीर कासिम ने पटना (वर्तमान में बिहार की राजधानी) पर हमला बोल दिया। उस वक्त बिहार के लड़ाकुओं ने मीर कासिम की सेना से जबदस्त तरीके से लोहा लिया और उन्हें नाको चना चबाने पर मजबूर कर दिया। हालांकि अंग्रेजों ने उस वक्त इन बहादुर रणबांकुरों की मदद नहीं कि और घनघोर लड़ाई के बाद मीर कासिम की सेना जीत गई।

Bihar Regiment के जवान

इस युद्ध से ठीक एक साल पहले ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लॉर्ड क्लाइव ने बिहार में ‘सिपाही बटालियन’ की नींव रखी थी। खास बात यह भी थी कि उस वक्त इस ‘सिपाही बटालियन’ में सिर्फ बिहार के भोजपुर क्षेत्र के रहने वाले पुरुषों को ही भर्ती किया जाता था। आज हम बात कर रहे हैं ‘बिहार रेजीमेंट’ (Bihar Regiment) की। Bihar Regiment के पराक्रम और शौर्य का इतिहास काफी पुराना है और सभी जानते हैं कि यहां के योद्धा अपनी जान से ज्यादा अपने देश के लिए ही जीते हैं तथा देश सेवा में ही शहीद हो जाते हैं। जब कहीं शहीद जवानों की चर्चा होती है तो वहां ‘बिहार रेजीमेंट’ के शहादत की चर्चा जरुर होती है।

आजादी से पहले 5 सितंबर, सन् 1941 को 11वीं व 19वीं हैदराबाद रेजीमेंट को मिलाकर जमशेदपुर में ‘Bihar Regiment’ की पहली बटालियन बनाई गई। आगरा में 1 दिसंबर, सन् 1942 को दूसरी बटालियन का गठन हुआ। 2 मार्च, 1949 को बिहार रेजिमेंटल सेंटर को दानापुर में स्थानांतरित किया गया। दानापुर देश का दूसरा सबसे पुराना छावनी स्थल है वर्तमान में इसकी 20 बटालियन हैं। बिहार रेजीमेंट का आदर्श वाक्य ‘करम ही धरम’ है। युद्ध के मैदान में जब इस रेजीमेंट के सैनिक ‘जय बजरंग बली’ का नारा बुलंद कर दुश्मनों पर टूट पड़ते हैं तो उनकी शामत आ जाती है। वर्ष 1965 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ा तो बिहार रेजीमेंट की वीरता ने सभी को प्रभावित किया।

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Bihar Regiment के रणबांकुरे जवान उसी प्राचीन मगध साम्राज्य से संबंधित है, जिनका नाम सुनकर महान से महान योद्धा भी थरथरा उठते थे। बिहारियों ने हमेशा ही जननी जन्मभूमि कि बलि वेदी पर अपने सीस देश को अर्पण किया। मातृभूमि को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वालों में इन्होंने अपना नाम अपने रक्त से लिखा है। कारगिल युद्ध में भारत विजय की कहानी लिखने में बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं का बड़ा योगदान रहा है। 6 जुलाई, 1999 को बटालिक सेंटर में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने पॉइंट 4268 और जुबर रिच पर हमला करने की कोशिश की थी। लेकिन पाकिस्तान की जीत 24 घंटे भी नहीं टिक पाई।

9 जुलाई को ही Bihar Regiment के योद्धाओं ने पाकिस्तानियों को खदेड़ कर जीत का परचम लहराया। आपको बता दें 26/11 को हुए आतंकी हमले में सेना के मेजर संजीप उन्नीकृष्णन ने आतंकवादियों के दांत खट्टे करते हुए अपनी शहादत दी थी। संदीप उन्नीकृष्णन को 12 जुलाई, 1999 को बिहार रेजीमेंट की 7 वीं बटालियन का लेफ्टिनेंट आयुक्त किया गया था। श्रीनगर से 100 किलोमीटर दूर जम्मू-कश्मीर के उरी में ब्रिगेड के हेड क्वार्टर पर हुए आतंकी हमले में भी 17 जवान शहीद हुए थे। उन 17 जवानों में से 15 जवान Bihar Regiment के थे।

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Bihar Regiment को अब तक 3 अशोक चक्र, 7 परमवीर वीर विशिष्ट सेवा मेडल, 7 महावीर चक्र, 14 कीर्ति चक्र, 8 अति विशिष्ट सेवा मेडल, 15 वीर चक्र, 41 शौर्य चक्र, पांच युद्ध सेवा मेडल, 153 सेवा मेडल, 3 जीवन रक्षक मेडल, 31 विशिष्ट सेवा मेडल, 68 मेंशन इन डिस्पेच मेडल मिल चुका है। बिहार की राजधानी पटना के पास दानापुर में Bihar Regiment का मुख्यालय है। दानापुर के आर्मी कैंटोनमेंट को देश का दूसरा सबसे बड़ा कैंटोनमेंट होने का गर्व हासिल है। बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं ने दूसरे विश्व युद्ध की लड़ाई भी लड़ी थी। द्वितीय विश्व युद्ध् के दौरान रेजिमेंट के प्रथम बिहार बटालियन के जवानों ने वर्मा की लड़ाई में सक्रिय रूप से भाग लिया और उन्होंने हाका और गैंगा नामक स्थानों पर विजय प्राप्त किया था।

इस साहसपूर्ण कामयाबी पर यूनिट को बैटल ऑनर हाका और गैंगा से सम्मानित किया गया है। आजादी के समय से रेजिमेंट ने हैदराबाद पुलिस कार्यवाही बड़े जोरदार ढंग से किया था। गुजरात की कार्यवाही जिसमें पश्चिमी पाकिस्तान से शारणर्थियों को बाहर निकाल गया था और गोवा की मुक्ति ऑपरेशन में भी रेजिमेंट के जवानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। रेजिमेंट के जवानों ने चीन का 1962 का आक्रमण, भारत-पाक की 1965 का युद्ध्, 1971 का भारत -पाक युद्ध् के दौरान रेजिमेंट के 10 बिहार बटालियन के जवानों ने साहसपू्र्ण कार्य पर यूनिट को थिएटर ऑनर अखौड़ा से सम्मानित किया गया है।

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इतना ही नहीं, ऑपरेशन विजय में प्रथम बिहार बटालियन ने पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ाते हुए जुबार हिल व थारू पर कब्जा किया। 1971 में बांग्लादेश की आजादी के लिए पाकिस्तान से टकराए। करगिल युद्ध से लेकर पाकिस्तान को सबक सिखाया। कभी जान की परवाह नहीं की सिर्फ देश की शान के लिए सोचा। इस साहसिक कामयाबी पर यूनिट को बैटल ऑनर बटालिक व थिएटर ऑनर कारगिल से सम्मानित किया गया है और श्रीलंका में ऑपरेशन में वीरतापूर्व क दुश्मनों से लड़ाई लड़ी थी। रेजिमेंट ने देश के उत्तरी-पूर्वी भाग और जम्मू-कश्मीर में आंतकवाद से लड़ाई लड़ने में सक्रिय रूप से भाग लिया है।

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