शंकर का नाम और काम दोनों जयकिशन के बिना अधूरा सा है। महान संगीतकार शंकर यानी शंकर सिंह रघुवंशी जो पंजाब से आए थे। बचपन के दिनों से ही शंकर संगीतकार बनना चाहते थे और उनकी रुचि तबला बजाने में थी। बचपन के दिनों से ही जयकिशन का रुझान भी संगीत की ओर था और उनकी रुचि हारमोनियम बजाने में थी।
जय किशन ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा वेद लालजी से हासिल की। इसके अलावा उन्होंने प्रेम शंकर नायक से भी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी। साल 1946 में अपने सपनों को नया रूप देने के लिए जयकिशन मुंबई आ गए, जहां उनकी मुलाकात शंकर से हुई। उसी दौरान शंकर भी बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। शंकर और जयकिशन (Shankar Jaikishan)दोनों ही संगीत निर्देशक बनना चाहते थे।
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शंकर की सिफारिश पर जयकिशन को पृथ्वी थिएटर में हारमोनियम बजाने के लिए नियुक्त कर लिया गया। इस बीच शंकर और जयकिशन ने संगीतकार हुस्नलाल भगतराम की शागिर्दी में संगीत सीखना शुरू किया। शंकर और जयकिशन (Shankar Jaikishan) की प्रतिभा से प्रभावित होकर हुस्नलाल भगतराम ने उन्हें अपना सहायक बना लिया।
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