देश के सुरक्षाबल और सेना किस की रक्षा के लिए होते हैं? देश के संविधान और उसमें समाहित मूल्यों की या फिर नेताओं और शासकों की? यदि संविधान और क़ायदे-कानून को ताक पर रखते हुए देश का शासक सेना को विरोध के अधिकार का प्रयोग करने वाली जनता पर हमला करने का आदेश दे तो क्या उसे अपने ही देशवासियों पर चढ़ जाना चाहिए? लोकतंत्र में सेना और सुरक्षा बलों का कर्तव्य केवल ऊपर से मिलने वाले हुक्म को बजाना है या फिर केवल संविधान सम्मत हुक्म को मानना है? ऊपर से मिलने वाला हुक्म संविधान सम्मत है या नहीं इसका फ़ैसला कौन करेगा?
ये सवाल पिछले सोमवार को दुनिया के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र अमेरिका की सेना के सामने अचानक उठ खड़े हुए. सवाल उठाने वाला और कोई नहीं बल्कि देश की सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की एक चौंका देने वाली हरकत थी। मिनियापोलिस में 46 वर्षीय अफ़्रीकावंशी काले नागरिक जॉर्ज फ़्लोएड की निर्मम हत्या के कारण समूचे देश और दुनिया भर में काले और आदिवासी लोगों के साथ होने वाले भेदभाव के विरोध में Black Lives Matter या संक्षेप में BLM प्रदर्शन हो रहे थे। आम तौर पर शांतिपूर्ण तरीके से हो रहे प्रदर्शनों के शुरुआती दिनों में आगज़नी और लूटपात की घटनाएं भी हुई थीं।