Remembering Ustad Bismillah Khan: वर्ष 1947 के अगस्त महीने की बात है। देश आजाद होनेवाला था 15 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को लाल किले से तिरंगा फहराना था। लाखों हिंदुस्तानियों के लिए यह गर्व का लम्हा था आजादी के इस पल को देखने के लिए कितनी क्रांतियां हुई थीं, कितने आंदोलन हुए थे। कितने शहीदों ने अपने प्राणों की बलि दी थी। कितने जेल गए थे। कितनों को लाठियां खानी पड़ी थीं। काफी संघर्ष और बलिदान के बाद यह घड़ी आने वाली थी।
15 अगस्त, 1947 के कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थीं। इससे ठीक पहले पंडित नेहरू के दिमाग में एक विचार आया। तय किया गया कि लाल किले से उनके झंडा फहराने के बाद संगीत का एक कार्यक्रम होगा। इसके लिए उन्होंने उस कलाकार के बारे में भी सोच लिया, जिसे कार्यक्रम पेश करना था। उस कलाकार के पास प्रधानमंत्री का न्योता भेज दिया गया। न्योते में कहा गया कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि आजाद भारत के पहले सूरज का स्वागत शहनाई से किया जाए। यह कलाकार कोई और नहीं बल्कि ‘भारत रत्न’ से सम्मानित शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान (Bismillah Khan) थे। प्रधानमंत्री ने इतने बड़े ऐतिहासिक लम्हे पर कार्यक्रम पेश करने की रजामंदी दे दी।