मां की ममता में वो ताक़त होती है जो हर तरह के हिंसा से मुक्ति दिला देती है। मां अपने बच्चे के लिए सब कुछ त्याग कर सकती है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण नक्सली कमांडर शंकर की पत्नी और सीएनएम कमांडर कोसी उर्फ सजंती का है। सजंती ने अपने साथ हो रहे अत्याचार के चलते दंतेवाड़ा एसपी के सामने सरेंडर (Surrendered) कर दिया था। सजंती पर प्रशासन की तरफ से पांच लाख का इनाम था।
सजंती सुकमा जिले के किस्टाराम थाना के ग्राम एलमागोंडा की निवासी है और जोगा मंडावी की पुत्री है। साल 2002 में नक्सलियों के संपर्क में आकर सीएनएम सदस्य के रूप में काम करना शुरू किया था। नक्सल संगठन ने सजंती को 2005 में किस्टाराम एरिया कमेटी के पद पर कार्य करने के लिए भेजा। 2009 में ये डिवीजन सीएनएम में कार्य करने लगी थी।
सजंती की ओडिया भाषा में अच्छी खासी पकड़ थी जिसके चलते 2009 में ओडिशा में नक्सलियों की संख्या में कमी के चलते मलकानगिरी भेज दिया गया था। कुछ साल बाद 2014 में कांगेर घाटी एरिया में वापस आ गई। जहां उसकी तैनाती घाटी एरिया कमांडर के पद पर हुई थी। जिस वक़्त दरभा घाटी में सजंती काम कर रही थी उसी वक़्त उसकी मुलाक़ात शंकर से हुई। मेल-मुलाकात का सिलसिला बढ़ा तो बात शादी तक पहुंच गई।
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इन दोनों की शादी की जानकारी मिलते ही बड़े नक्सलियों ने इन पर शादी ना करने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। लाख समझाने और धमकाने के बावजूद जब ये नहीं माने तो उन्हें सशर्त शादी की इजाजत दे दी गई। बात तब बिगड़ी जब शादी के एक साल बाद सजंती गर्भवती हो गई। नक्सली इस बात के लिए राजी ही नहीं थे कि इनका बच्चा हो। लिहाजा, गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया जाने लगा। सारी कोशिशों के बाद जब संजती बच्चा गिराने को राजी नहीं हुई तो उसे उसके पति से अलग एक गोपनीय जगह पर ले जाकर छोड़ दिया गया। कुछ दिनों बाद सजंती ने एक बच्ची को जन्म दिया।
हर कदम पर बंदिशों और अपने साथ लगातार हो रही ज्यादती से संजती अपने साथ हो रहे अत्याचार से टूट चुकी थी। नक्सल संगठनों में महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा एवं भेदभाव को देखकर उसका मन अब इससे दूर होने लगा। वो अब मुख्यधारा में आने का फैसला कर रही थी। इसी दौरान उसका संपर्क सरेंडर (Surrendered) कर चुके कुछ नक्सलियों और पुलिस वालों से हुआ। फिर सजंती ने आगे चलकर दंतेवाड़ा एसपी के सामने सरेंडर कर दिया।