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जयंती विशेष: हिंदी सिनेमा का पहला सुपरस्टार, जिनके जन्मदिन के दिन ही दुनिया छोड़ गये भाई किशोर कुमार

Ashok Kumar birth anniversary II अशोक कुमार जयंती

हिंदी फिल्मों के शुरुआती दौर के नायकों में अशोक कुमार (Ashok Kumar) एक ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने प्रचलित पारसी थिएटर के संस्कारों को ताक पर रखते हुए अपने सहज अभिनय के दम पर स्टारडम खड़ा किया और कभी अपने को किसी छवि से बंधने नहीं दिया।दिलचस्प है कि आरंभिक दौर में फिल्म जगत् में मौजूद रहने के बावजूद अशोक कुमार (Ashok Kumar) पर्दे पर अभिनय के पक्ष में नहीं थे। इसीलिए जब उन्हें ‘जीवन नैया’ फिल्म में अभिनय का मौका मिला तो उन्होंने बहुत ही बेमन से इसमें काम शुरू किया। दरअसल अशोक कुमार की रुचि फिल्म के तकनीकी पक्ष में थी और वह इसी में सफलता हासिल करना चाहते थे।

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अशोक कुमार (Ashok Kumar) बॉम्बे स्टूडियो में लेबोरेटरी असिस्टेंट का काम करते थे। सन् 1936 में ‘बॉम्बे टॉकीज’ का हीरो नजाम-उल-हुसैन स्टूडियो की हीरोइन देविका रानी, जो कि बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय की पत्नी थीं, को लेकर भाग गया। दोनों के पकड़े जाने पर हिमांशु राय ने देविका रानी को तो माफ कर दिया पर नजाम-उल हुसैन को नौकरी से निकाल दिया। हिमांशु राय उन दिनों फिल्म ‘जीवन नैया’ बना रहे थे। उन्होंने स्टूडियो के लेबोरेटरी असिस्टेंट कुमुदलाल को अशोक कुमार के नाम से अपनी फिल्म ‘जीवन नैया’ में हीरो के रूप में पेश कर दिया। इस तरह अशोक कुमार के फिल्मी सफर की शुरुआत हो गई। किसी काम को हाथ में लेने के बाद उसे पूरी तल्लीनता से करना अशोक कुमार की फितरत थी। इसी वजह से जब उनपर अभिनय की जिम्मेदारी आई तो उन्होंने इसे भी पूरी गंभीरता से लिया। वह अभिनय में इतनी जल्दी रच-बस गए कि लगा मानो यह उनका जन्मजात पेशा था। इस बात का प्रमाण उनकी शुरुआती फिल्म ‘अछूत कन्या’ थी।

इसमें अशोक कुमार (Ashok Kumar) अपने दौर की प्रख्यात अभिनेत्री देविका रानी के साथ काम कर रहे थे, लेकिन उनके अभिनय को देखकर कहीं भी यह नहीं लगता था कि वह कोई नौसिखिया अभिनेता हो। इसके बाद अशोक कुमार की देविका रानी के साथ ‘इज्जत’, ‘सावित्री’ और ‘निर्मला’ फिल्में आई। बाद में अशोक कुमार की सुपर हिट फिल्म ‘मैं बन का पंछी’ आई, जिसका एक गाना आज भी उनकी आवाज में सुनने पर मधुर लगता है। एक स्टार के रूप में अशोक कुमार की छवि 1943 में आई ‘किस्मत’ फिल्म से बनी। परदे पर सिगरेट का धुआँ उड़ाते अशोक कुमार ने राम की छवि वाले नायक के उस दौर में इस फिल्म के जरिए एंटी हीरो के पात्र को निभाने का जोखिम उठाया। यह जोखिम उनके लिए बेहद फायदेमंद साबित हुआ और इस फिल्म ने सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। इसके बाद 1949 में मधुबाला के साथ आई ‘महल’ भी काफी सफल साबित हुई। अपने दौर की अन्य अभिनेत्रियों के साथ-साथ अशोक कुमार ने मीना कुमारी के साथ भी कई फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें ‘पाकीजा’, ‘बहू बेगम’, ‘एक ही रास्ता’, ‘बंदिश’, ‘आरती’ आदि शामिल हैं।

बिहार के भागलपुर में 13 अक्टूबर, 1911 में जन्मे ‘दादा मुनि’ अशोक कुमार (Ashok Kumar) कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से पढ़ाई की थी। उनके पिता कुंजलाल गांगुली मध्य प्रदेश के खंडवा में वकील थे। अशोक कुमार के दो छोटे भाई अनूप कुमार और किशोर कुमार भी बाद में फिल्मों में आए। दरअसल इन दोनों को फिल्मों में आने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से ही मिली।

अशोक, अनूप और किशोर कुमार ने ‘चलती का नाम गाड़ी’ में काम किया। इस कॉमेडी फिल्म में भी अशोक कुमार ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी। फिल्म में मधुबाला ने भी काम किया था। किशोर कुमार ने अपने कई इंटरव्यू में यह बात स्वीकार की थी कि उन्हें न केवल अभिनय बल्कि गाने की प्रेरणा भी अशोक कुमार से मिली थी, क्योंकि अशोक कुमार (Ashok Kumar) ने बचपन में उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डाले थे।

अशोक कुमार (Ashok Kumar) ने बाद के जीवन में चरित्र अभिनेता की भूमिकाएं निभानी शुरू कर दी थीं। इन भूमिकाओं में भी अशोक कुमार ने जीवंत अभिनय किया। अशोक कुमार गंभीर ही नहीं हास्य अभिनय में भी महारथ रखते थे। ‘विक्टोरिया नंबर 203’ फिल्म हो या ‘शौकीन’, अशोक कुमार ने हर रोल में कुछ नया पैदा करने का प्रयास किया। अशोक कुमार ने कुछ फिल्मों में विलेन का रोल भी किया। इनमें देवानंद और वैजयंती माला अभिनीत ‘ज्वेल थीफ’ फिल्म प्रमुख है।

अशोक कुमार (Ashok Kumar) ने टी.वी. में भी काम किया। भारत के पहले सोप ओपेरा ‘हम लोग’ में उन्होंने सूत्रधार की भूमिका निभाई। सूत्रधार के रूप में अशोक कुमार ‘हम लोग’ के एक अभिन्न अंग बन गए। दर्शक आखिर में की जाने वाली उनकी टिप्पणी का इंतजार करते थे, क्योंकि वह टिप्पणी को हर बार अलग तरीके से दोहराते थे। उन्होंने ‘बहादुर शाह जफर’ सीरियल में भी अविस्मरणीय भूमिका निभाई थी। अशोक कुमार के अभिनय की चर्चा उनकी ‘आशीर्वाद’ फिल्म के बिना अधूरी ही रहेगी। इस फिल्म में उन्होंने एकदम नए तरह के पात्र को निभाया। इस फिल्म में उनका गाया गाना ‘रेलगाड़ी रेलगाड़ी…’ काफी लोकप्रिय हुआ था। इस फिल्म के लिए उन्हें सन् 1970 में श्रेष्ठ अभिनेता का ‘फिल्म फेयर पुरस्कार’ मिला था। इसके अलावा उन्हें फिल्म ‘अफसाना’ के लिए सन् 1967 में और फिल्म ‘राखी’ के लिए सन् 1963 में फिल्मफेयर का ‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेता’ का पुरस्कार भी मिला।

एक अच्छे अभिनेता होने के कारण अशोक कुमार (Ashok Kumar) को तमाम पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें भारतीय फिल्म जगत् का शीर्ष अवॉर्ड ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ भी शामिल है। भारत सरकार ने उन्हें सन् 1999 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया था। इस महान अभिनेता का 10 दिसंबर, 2001 को निधन हुआ।