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आखिर किस बात पर गांधीजी से अड़ गए थे अंबेडकर? सुने ये कहानी, संजीव श्रीवास्तव की जुबानी

डॉ भीमराव अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) की आज जयंती (Ambedkar Jayanti) है। भारतीय संविधान के निर्माता, समाज सुधारक और महान नेता डॉक्‍टर भीमराव अंबेडकर की जयंती भारत ही नहीं बल्‍कि दुनिया भर में धूमधाम से मनाई जाती है।

बाबा साहेब के नाम से मशहूर भारत रत्‍न अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) जीवन भर समानता के लिए संघर्ष करते रहे। यही वजह है कि अंबेडकर जयंती को भारत में समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंबेडकर जयंती के मौके पर संजीव श्रीवास्तव सुना रहे हैं, उनकी जिंदगी से जुड़े कई रोचक किस्से।

सुनिए डॉ. अंबेडकर की जिंदगी से जुड़े दिलचस्प किस्सेः

https://www.youtube.com/watch?v=sifU3vg5Tp0&t=173s

भीमराव अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को इंदौर के महू में हुआ था। भीमराव के पिताजी रामजी फौज में सूबेदार थे और मां का नाम था भीमाबाई सखपाल। वे दलित बिरादरी से आते थे, जिन्हें उन दिनों अछूत कहा जाता था। सामाजिक, आर्थिक हर रूप में उनके साथ बहुत भेद-भाव होता था, शोषण होता था। पिता लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करते हुए अपने बच्चों को स्कूल में पढ़ने और कड़ी मेहनत के लिए हमेशा प्रोत्साहित किया करते थे। स्कूली पढ़ाई में सक्षम होने के बावजूद अंबेडकर और उनके दलित बच्चों को विद्यालय में अलग बिठाया जाता था। अध्यापक भी उनकी बातों, उनकी पढ़ाई-लिखाई पर कोई खास ध्यान नहीं देते थे। कई बार तो कक्षा के अंदर तक बैठने की अनुमति नहीं होती थी। प्यास लगती थी तो ऊंची जाति का कोई आता था, ऊंचाई से पानी डालता था, वो हाथों से अंजलि बनाते थे और फिर पानी पीते थे। आमतौर पर उनको पानी पिलाने का काम भी स्कूल के चपरासी का ही होता था और अगर चपरासी अब्सेंट हुआ तो दलित बच्चों को, जिसमें अंबेडकर जी भी शामिल थे, बिना पानी के ही दिन गुजारना पड़ता था।

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गांधीजी जी से मतभेद 

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p style=”text-align: justify;”>आखिर ऐसे क्या कारण उत्पन्न हो गए कि हमारे स्वतंत्रता-संग्राम के दो बड़े दिग्गज महात्मा गांधी और डॉ. अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल कर बैठ गए। बात इतनी बढ़ गई कि महात्मा गांधी को आमरण अनशन पर बैठना पड़ा। हुआ ये कि अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद अंबेडकर पूरी तरह से समाज-सेवा और सार्वजनिक जीवन में आ गए थे। छुआछूत के खिलाफ उन्होंने मुहिम छेड़ दी थी। क्योंकि वो चाहते थे कि इस कुरीति का पूरी तरह से खात्मा हो जाए। दलितों के वो आईकॉन बन गए। दलित हितों के, दलित अधिकारों के सबसे बड़े प्रतिनिधि देश में डॉ. बाबा साहब अंबेडकर बन चुके थे। 1924 में उन्होंने बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की जिसका उद्देश्य था, छुआछूत को दूर करना। फिर उन्हें 1929 में लेजिस्लेटिव काउंसिल में दलितों के हितों का ध्यान रखने के लिए मनोनीत किया गया।