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वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान का साथ छोड़ रहे देश, जर्मनी ने मदद से इनकार करके दिया बड़ा झटका

पाकिस्तान दुनियाभर में आतंकवाद के मुद्दे पर पहले ही कटघरे में खड़ा है। ऐसे में जर्मनी (Germany) का पाक को साफ ना कहना बहुत सारे सवालों को जन्म देता है। लोगों के जेहन में ये बात है कि क्या जर्मनी ने पाक के आतंकी पक्ष को देखते हुए उसे मना किया है!

आतंकवाद फैलाने के लिए दुनियाभर में कुख्यात हो चुके पाकिस्तान को जर्मनी (Germany) ने बड़ा झटका दिया है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जर्मनी (Germany) ने पाकिस्तान को एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन (एआईपी) सिस्टम देने से मना कर दिया है।

दरअसल पाकिस्तान ने अपनी पनडुब्बियों (Submarine) को मजबूत बनाने के लिए जर्मनी के सामने हाथ फैलाए थे। पाकिस्तान ने जर्मनी से एआईपी सिस्टम मांगा था, लेकिन जर्मनी ने पाक को साफ मना कर दिया।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल की अध्यक्षता में एक सिक्योरिटी पैनल ने ये फैसला लिया।

पाकिस्तान अपनी पनडुब्बियों को एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन सिस्टम से अपग्रेड करना चाहता था, इस सिस्टम से पनडुब्बी ज्यादा लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती है। अगर जर्मनी उसे ये सिस्टम दे देता तो निश्चित तौर पर पाक की पनडुब्बियों की शक्ति बढ़ जाती।

लेकिन पाकिस्तान दुनियाभर में आतंकवाद के मुद्दे पर पहले ही कटघरे में खड़ा है। ऐसे में जर्मनी का पाक को साफ ना कहना बहुत सारे सवालों को जन्म देता है। लोगों के जेहन में ये बात है कि क्या जर्मनी ने पाक के आतंकी पक्ष को देखते हुए उसे मना किया है!

एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन सिस्टम से पनडुब्बी डीजल, इंजन और बिना हवा के एक हफ्ते से ज्यादा समय तक चल सकती है। जबकि अगर किसी पनडुब्बी के पास ये सिस्टम नहीं है तो उसे हर दूसरे दिन सतह पर आना ही पड़ेगा।

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इस सिस्टम को विकसित इसलिए किया गया था, जिससे पनडुब्बी लंबे समय तक पानी के अंदर रह सके और उसे जल्दी सतह पर ना आना पड़े। क्योंकि सतह पर आने से पनडुब्बी दुश्मन की नजरों में आ सकती है।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक भारतीय अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तान को अब पनडुब्बी के ऑपरेशन में मुश्किलें आएंगी। जर्मनी का ना कहना, पाक को एक बड़ा झटका है।

वहीं अगर भारत की बात करें तो भारत का रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, ये सिस्टम खुद ही विकसित कर रहा है। इससे भारत किसी दूसरे पर इस सिस्टम के लिए निर्भर नहीं है। बीते साल DRDO ने जमीन आधारित प्रोटोटाइप का सफलता के साथ परीक्षण किया था।

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