अरुणाचल प्रदेश के जिला अनजॉ का गांव मालोगम, जो चीन की सरहद से सटा हुआ है। वहां तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है। ख़तरनाक पहाड़ी और जंगल के रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। वहां आप सिर्फ़ पैदल ही जा सकते हैं। इस गांव में सिर्फ़ एक मतदाता है। चुनाव के वक़्त पोलिंग टीम को वहां तक जाने के लिए पूरा एक दिन का समय लग जाता है। पोलिंग टीम को यह पूरा सफ़र पैदल ही तय करना पड़ता है। इस गांव में ना स्कूल है, ना मोबाइल नेटवर्क और ना ही कोई बुनियादी सुविधा मौजूद है।
फिर भी चुनाव आयोग अपनी पूरी ज़िम्मेदारी निभाते हुए उस एक मतदाता का मतदान सुनिश्चित कराता है। मतदान की पूरी प्रक्रिया में दो दिन का वक्त लगता है। जिसमें चुनाव आयोग की तरफ से पांच कर्मचारी ड्यूटी में लगते हैं। ये सभी कर्मचारी दुर्गम रास्तों पर पैदल चलकर अपनी जिम्मेदारी निभाने जाते हैं। इस गांव में रहने वाली उस एक अकेली मतदाता का नाम सोकेला टयांग है।
सोकेला के अलावा कुछ और लोग भी इस गांव में रहते हैं। पर बाक़ी सभी लोगों ने अपना नाम दूसरे पोलिंग बूथ पर रजिस्टर करवा लिया है। सोकेला के पति ने भी कुछ साल पहले अपना नाम दूसरे बूथ पर रजिस्टर करा लिया था। अब यहां मात्र सोकेला बची हैं। ऐसे में चुनाव आयोग उनके मताधिकार को ध्यान में रखते हुए उन तक पोलिंग पार्टी भेजने का काम करता है। चुनाव आयोग का यह कदम भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती को दर्शाता है। साथ ही इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में एक नागरिक के अधिकारों को भी सुनिश्चित करता है।
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