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‘उड़न परी’ पीटी उषा का ही कमाल था कि एथलेटिक्ट ने क्रिकेट को भी पछाड़ दिया था

पीटी उषा जन्मदिन

भारत की सफल महिला धावक पीटी उषा, जिन्होंने संघर्ष के पथ पर चल कर न सिर्फ सफलता की बुलंदियों को छुआ, बल्कि इस उक्ति को भी सही साबित कर दिया कि कामयाबी के रास्ते में आने वाली बाधाओं का जो डटकर सामना करता है, मंजिल उसको मिल ही जाती है। पीटी उषा ने जिस तरह से खेल के क्षेत्र में महिलाओं को एक नई पहचान दिलाने का काम किया, वह किसी मिसाल से कम नहीं है। पीटी उषा का जन्म 27 जून, 1964 को केरल राज्य के जिला कोजिकोड के एक छोटे से गांव में हुआ था। पीटी उषा का पूरा नाम पिलावुल्लकंडी थेक्केपराम्बील उषा है। एक साधारण से परिवार में जन्मीं पीटी उषा का जीवन शुरुआत से ही काफी संघर्ष भरा रहा। बचपन से ही उन्हें खेल का शौक था। इसके चलते वह स्कूल में होने वाली खेलकूद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रहीं। वहां प्रदर्शन शानदार रहा तो उन्हें कई बार स्कूल की ओर से अन्य जिलों में जाने का मौका मिलता। लेकिन वह पैसों की कमी के कारण इससे आगे नहीं बढ़ पाती थीं।

खेल में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के चलते उन्हें केरल सरकार से 250 रुपये की स्कॉलरशिप मिली। यह 1979 का दौर था, उस समय इतनी राशि भी मायने रखती थी। इतना ही नहीं सरकार की तरफ से उन्हें एक अच्छे स्पोर्ट्स कॉलेज में दाखिला भी मिल गया। बस फिर क्या था पीटी उषा ने दिन-रात एक कर दिया और नेशनल स्कूल गेम्स में बेहतर प्रदर्शन करने के लिये खूब मेहनत करनी शुरू कर दी। नेशनल गेम्स में पीटी उषा ने अपने स्कूल का नेतृत्व करते हुए शानदार प्रदर्शन किया। इस दौरान उस समय के एथलीट के मशहूर कोच ओएम नांबियार उषा के फुर्तीलेपन और तेज भागने की क्षमता से काफी प्रभावित हुए। पीटी उषा को उनका साथ मिला। कोच ओएम नांबियार से प्रशिक्षण मिलना पीटी उषा के जीवन का सफल मोड़ साबित हुआ। राज्य और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पीटी उषा अपनी गति से सबको अचंभित करती जा रही थीं। वह एक के बाद एक पदक अपने नाम करती जा रही थीं।

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राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन करने का इनाम उन्हें ओलंपिक के टिकट के रूप में मिला। साल 1980 में मॉस्को में हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने भारत का नेतृत्व किया। हालांकि, इस ओलंपिक में उन्हें सौ मीटर की रेस में पांचवां स्थान मिला। साथ ही उन्हें बिना पदक हासिल किए भारत वापस लौटना पड़ा। मॉस्को ओलंपिक में खराब प्रदर्शन को भूल पीटी उषा ने मेहनत कर अगले खेलों की तैयारियां शुरू कर दीं। उन्होंने ट्रैक पर पसीना बहाते हुए अपनी खामियों को दूर किया। 1981 में सीनियर इंटर स्टेट प्रतियोगिता में वापसी करते हुए उन्होंने सबको चौंकाया और सौ मीटर की रेस महज 11.8 सेंकेड में और दो सौ मीटर की रेस 24.6 सेंकेंड में जीतकर एक नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया। यहां से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 1982 में दिल्ली में होने वाले एशियाई खेलों में उन्होंने दमदार प्रदर्शन करते हुए सिल्वर मेडल जीता।

उसके बाद कुवैत सिटी में आयोजित एशियन चैंपियनशिप में उन्होंने गोल्ड मेडल जीतकर सबको अपना मुरीद बना लिया। साल 1985 में जकार्ता में हुए खेलों में उन्होंने बेहतर प्रदर्शन के दम पर भारत का झंडा लहराया। वहां उन्होंने कुल 6 पदक जीते, जिसमें 5 गोल्ड और एक ब्रांज मेडल शामिल है। यह सफर यहीं नहीं थमा और 1983 से 1989 के बीच हुई प्रतियोगिताओं में उन्होंने 13 गोल्ड मेडल अपने नाम किए। उनके प्रशसंक उन्हें ‘क्वीन ऑफ इंडियन ट्रैक’ और ‘पय्योली एक्सप्रेस’ के नाम से पुकारने लगे। पीटी उषा के प्रदर्शन से प्रभावित होकर भारत सरकार द्वारा उन्हें कई बड़े सम्मानों से नवाजा गया।

नेशनल गेम्स में बेहतरीन प्रदर्शन करने पर साल 1984 में पीटी उषा को अर्जुन अवॉर्ड दिया गया। यह साल पीटी उषा के लिए दोहरी खुशी लेकर आया। पीटी उषा को भारतीय लोगों ने तब जाना, जब उन्हें खेल में सराहनीय योगदान देने के लिये देश का चौथा सबसे बड़ा सम्मान पद्म श्री अवार्ड दिया गया। यह महत्वपूर्ण अवॉर्ड अपने नाम करने के बाद पीटी उषा को कई प्रतियोगिताओं में एशिया के सर्वश्रेष्ठ धावक के अवॉर्ड से नवाजा गया। 1986 एशियन गेम्स में बेहतरीन प्रदर्शन करने पर उन्हें ‘एडिडास गोल्डन शू’ अवॉर्ड भी मिला। साल 2000 में उन्होंने खेल से संन्यास ले लिया। एक सफल धावक के रूप में संन्यास लेने के बाद भी पीटी उषा का सफर जारी है। केरल में वह अपना खुद का स्कूल चला रही हैं। पीटी उषा अपने स्कूल ऑफ एथलेटिक में भविष्य के धावक तैयार कर रही हैं।

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