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प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘स्वीटी’ बुलाने वाले सैम मानेकशॉ से जुड़े 9 किस्से

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ सैम मानेक शॉ।

भारत के पहले फाइव-स्टार रैंक वाले फील्ड मार्शल, सबसे ज्यादा चर्चित सैनिक, जिन्होंने न सिर्फ सेकेंड वर्ल्ड वॉर में अपनी दिलेरी के झंडे गाड़े, बल्कि चीन और पाकिस्तान के साथ हुए तीनों युद्धों में उनके योगदान को देश कभी भुला नहीं सकता। हम बात कर रहे हैं भारत के पूर्व थल-सेनाध्यक्ष की, फाइव-स्टार रैंक के फील्ड मार्शल की, सैम होरमूजजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ यानी सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) की, जिन्हें उनके दोस्त और चाहने वाले आज भी सैम बहादुर के नाम से याद करते हैं। अदम्य साहस और युद्धकौशल के लिए मशहूर फील्ड मार्शल मानेकशॉ के नेतृत्व में भारत ने सन 1971 में पाकिस्तान को धूल चटाई थी और बांग्लादेश के रूप में एक नया देश अस्तित्व में आया था। जिनकी बहादुरी और बेबाकी के किस्से आज भी भारतीय सेना में मशहूर हैं, आज उस महान योद्धा की पुण्यतिथि है।

सैम बहादुर (Sam Manekshaw) का जन्म 3 अप्रैल, 1914 में पंजाब के अमृतसर के एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक डॉक्टर थे और गुजरात के वलसाड़ शहर से पंजाब आकर बस गए थे। सैम मानेकशॉ ने पढ़ाई शेरवुड कॉलेज नैनीताल से की। बचपन में उनका मन था कि वो गायनोकोलॉजिस्ट यानी स्त्री रोग विशेषज्ञ बनें। लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था। 1 अक्टूबर, 1932 को वो इंडियन मिलिट्री अकेडमी (IMA) में भर्ती हुए और 4 फरवरी, 1934 को इंडियन मिलिट्री अकेडमी देहरादून से जो पहला बैच कमिशन्ड ऑफिसर्स का पास-आउट हुआ उन 40 स्टूडेंट्स में सैम मानेकशॉ भी एक थे। उनको कमिशन मिला, सेकेंड लेफ्टिनेंट की रैंक दी गई और उनकी पहली पोस्टिंग लाहौर में हुई। हालंकि पिता के इच्छा के विरूद्ध जाकर उन्होंने सेना ज्वॉइन किया था।

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की पुण्यतिथि पर उनकी जिंदगी से जुड़े 9 दिलचस्प किस्से-

पहला किस्सा- जब सैम मानेकशॉ ने डॉक्टर से कहा ‘आई वाज किक्ड बाई अ ब्लडी म्यूल’

किस्सा तब का है जब 17वीं इंफैन्ट्री डिविजन में तैनात सेना के अधिकारी सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) ने पहली बार जंग का अनुभव किया सेकेंड वर्ल्ड-वॉर में। बर्मा अभियान के दौरान सेतांग नदी के तट पर उन्हें जापानियों से लोहा लेना था। सैम मैनेकशॉ अपनी सैन्य टुकड़ी को एक अच्छे आर्मी ऑफिसर की तरह सामने से लीड कर रहे थे। दूसरी तरफ से जापानीज धड़ा-धड़ गोलियां चला रहे थे। इसमें सैम मानेकशॉ के पेट में कई गोलियां लगीं लेकिन फिर भी वो आगे बढ़ते गए, तब तक, जब तक कि बिल्कुल निढाल हो के बेहोशी में जमीन पर नहीं गिर गए। उन्हें गंभीर अवस्था में रंगून के सैनिक अस्पताल ले जाया गया। जब उनका ऑपरेशन करने के लिए एक सर्जन वहां पहुंचे तो उस समय सैम बहादुर थोड़े से होश में थे। सर्जन ने पूछा, व्हाट हैपेन्ड टू यू, क्या हुआ तुम्हारे साथ? तो हंसते हुए सैम बहादुर बोलते हैं, आई वाज किक्ड बाई अ ब्लडी म्यूल। मतलब, मुझे एक खच्चर ने दुलत्ती मारी है। सर्जन उनकी दिलेरी और हाजिर जवाबी से इतने प्रभावित हुए कि बोले, गिवेन योर सेंस ऑफ ह्यूमर, इट विल बी वर्थ सेविंग यू। यानी, जो तुम्हारा ये हंसमुख अंदाज है, सेंस ऑफ ह्यूमर है, उसकी वजह से तुम्हारे जैसे व्यक्ति की जान बचाना अत्यंत अवश्यक है।

दूसरा किस्सा- जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कहा- स्वीटी

अपनी साफगोई और खरी-खरी सुनाने से सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) कभी बाज नहीं आते थे। चाहे फिर सामने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ही क्यों न हों। किस्सा यह है कि जब 1971 में पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान यानी ईस्ट पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है, वहां पर दमन करना शुरू किया, जिससे लाखों की संख्या में रेफ्यूजीज बांग्लादेश से भारत के बंगाल, असम और त्रिपुरा स्टेट्स में आकर रहने लगे। भारतीय सरकार इससे बहुत परेशान थी। श्रीमति इंदिरा गांधी ने एक दिन इसी संदर्भ में बैठक बुलाई जिसमें विदेश मंत्री, सरदार स्वर्ण सिंह, कृषि मंत्री फखरूद्दीन अली अहमद, रक्षा-मंत्री बाबू जगजीवन राम और वित्त मंत्री यशवंत राव चव्हाण मौजूद थे। उस बैठक में सैम भी आमंत्रित थे। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम को कहा कि कुछ करना होगा। उनके पूछने पर इंदिरा गांधी ने असमय पूर्वी पाकिस्तान पर हमले के लिए कहा। सैम ने इसका विरोध किया। उन्होंने जवाब दिया कि इस स्थिति में हार तय है। इससे इंदिरा गांधी को गुस्सा आ गया। उनके गुस्से की परवाह किए बगैर मानेकशॉ ने कहा, ‘प्रधानमंत्री, क्या आप चाहती हैं कि आपके मुंह खोलने से पहले मैं कोई बहाना बनाकर अपना इस्तीफा सौंप दूं।’

उन्होंने कहा कि अभी वह इसके लिए तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री को यह नागवार गुजरा और उन्होंने इसकी वजह भी पूछी। सैम ने बताया कि हमारे पास अभी न फौज एकत्रित है न ही जवानों को उस हालात में लड़ने का प्रशिक्षण है, जिसमें हम जंग को कम नुकसान के साथ जीत सकें। उन्होंने कहा कि जंग के लिए अभी माकूल समय नहीं है लिहाजा अभी जंग नहीं होगी। इंदिरा गांधी के सामने बैठकर यह उनकी जिद की इंतेहां थी। उन्होंने कहा कि अभी उन्हें जवानों को एकत्रित करने और उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए समय चाहिए और जब जंग का समय आएगा तो वह उन्हें दिखा देंगे। इसके लगभग 7 महीने बाद उन्होंने तैयारी पूरी करके बांग्लादेश का युद्ध लड़ा और उस युद्ध में क्या हुआ वो सब जानते हैं। इस युद्ध से पहले जब इंदिरा गांधी ने उनसे भारतीय सेना की तैयारी के बारे में पूछा था तो उन्होंने जवाब दिया, ‘आई एम ऑलवेज रेडी, स्वीटी।’ इंदिरा गांधी को ‘स्वीटी’ करने का साहस सिर्फ सैम मानेकशॉ में ही था।

तीसरा किस्सा- मोटरबाइक के बदले ले लिया आधा मुल्क

1971 के युद्ध से जुड़ा एक और किस्सा बहुत मशहूर है। मानेकशॉ (Sam Manekshaw) और याहया खान, जो 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख थे, दोनों ने अविभाजित भारत में एक साथ काम किया था। याहया खान को मानेकशॉ की लाल जेम्स मोटरसाइकिल बहुत पसंद थी। याहया विभाजन के दौरान मोटरबाइक पाकिस्तान ले गए और वादा कर गए कि जल्द ही पैसे भिजवा देंगे। सालों बीत गए लेकिन सैम के पास वह चेक कभी नहीं आया। युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटाने के बाद मानेकशॉ ने जनरल याहया खान पर चुटकी लेते हुए कहा, ‘उसने मेरी बाइक के लिए 1000 रुपए कभी नहीं दिए, अब देखो आधा देश देकर उसे वह कीमत चुकानी पड़ी है।’

चौथा किस्सा- ‘मैं दूसरों के मामलों में नाक नहीं घुसाता हूं’

1971 की जंग के बीच में ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि कहीं सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) आर्मी की मदद से उनका तख्तापलट न कर दें। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें फोन किया। उन दोनों के बीच हुई बातचीत कुछ इस तरह थी-

इंदिरा गांधी : ‘सैम, व्यस्त हो?’
सैम मानेकशॉ : ‘देश का जनरल हमेशा व्यस्त होता है, पर इतना भी नहीं कि प्राइम मिनिस्टर से बात न कर सके।’
इंदिरा गांधी : ‘क्या कर रहे हो?’
सैम मानेकशॉ : ‘फिलहाल चाय पी रहा हूं।’
इंदिरा गांधी : मिलने आ सकते हो? चाय मेरे दफ्तर में पीते हैं।’
सैम मानेकशॉ : ‘आता हूं।’
मानेकशॉ ने फिर फोन रखकर अपने एडीसी से कहा, ‘गर्ल’ वांट्स टू मीट मी।’
सैम कुछ देर में प्रधानमंत्री कार्यालय पंहुच गए। इंदिरा गांधी सिर पकड़ कर बैठी हुई थीं।
सैम मानेकशॉ : ‘क्या हुआ मैडम प्राइम मिनिस्टर?’
इंदिरा गांधी : ‘मैं ये क्या सुन रही हूं?’
सैम मानेकशॉ : ‘मुझे क्या मालूम आप क्या सुन रही हैं? और अगर मेरे मुत्तालिक है तो अब क्या कर दिया मैंने जिसने आपकी पेशानी पर बल डाल दिए हैं?’
इंदिरा गांधी : ‘सुना है तुम तख्तापलट करने वाले हो। बोलो क्या ये सच है?’
सैम मानेकशॉ : ‘आपको क्या लगता है?’
इंदिरा गांधी : ‘तुम ऐसा नहीं करोगे सैम।’
सैम मानेकशॉ : ‘आप मुझे इतना नाकाबिल समझती हैं कि मैं ये काम (तख्तापलट) भी नहीं कर सकता!’
फिर रुक कर वे बोले,’ देखिये प्राइम मिनिस्टर, हम दोनों में कुछ समानताएं है। मसलन, आपकी नाक लंबी है। मेरी नाक भी लंबी है, लेकिन मैं दूसरों के मामलों में नाक नहीं घुसाता हूं।’ ऐसे बेबाक सिपाही थे सैम बहादुर।

पांचवां किस्सा- पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष को सिखाई अंग्रेजी

पाकिस्तान के साथ लड़ाई के बाद सीमा के कुछ इलाकों की अदलाबदली के बारे में बात करने सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) पाकिस्तान गए। उस समय जनरल टिक्का खां पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे। पाकिस्तान के कब्जे में भारतीय कश्मीर की चौकी थाकोचक थी जिसे छोड़ने के लिए वह तैयार नहीं था। टिक्का खां सैम से आठ साल जूनियर थे और उनकी अंग्रेजी पर पकड़ थोड़ी कमजोर थी क्योंकि वो सूबेदार के पद से शुरुआत करते हुए इस पद पर पहुंचे थे। उन्होंने पहले से तैयार किया हुआ वक्तव्य पढ़ना शुरू किया, “देयर आर थ्री ऑलटरनेटिव्स टू दिस।” इस पर मानेकशॉ ने उन्हें तुरंत टोका, “जिस स्टाफ ऑफिसर की लिखी ब्रीफ आप पढ़ रहे हैं उसे अंग्रेजी लिखनी नहीं आती है। ऑल्टरनेटिव्स हमेशा दो होते हैं, तीन नहीं। हां संभावनाएं या पॉसिबिलिटीज दो से ज्यादा हो सकती हैं।” सैम की बात सुन कर टिक्का इतने नर्वस हो गए कि हकलाने लगे और थोड़ी देर में वो थाकोचक को वापस भारत को देने को तैयार हो गए।

छठां किस्सा- जवान के लिए रक्षा सचिव से भिड़ गए सैम बहादुर

जब अनुशासन या सैनिक नेतृत्व और नौकरशाही के बीच संबंधों की बात आती थी तो सैम कोई समझौता नहीं करते थे। एक बार सेना मुख्यालय में एक बैठक हो रही थी। रक्षा सचिव हरीश सरीन भी वहां मौजूद थे। उन्होंने वहां बैठे एक कर्नल से कहा, यू देयर, ओपन द विंडो। वह कर्नल उठने लगा। तभी सैम ने कमरे में प्रवेश किया। रक्षा सचिव की तरफ मुड़े और बोले, सचिव महोदय, आइंदा से आप मेरे किसी अफसर से इस टोन में बात नहीं करेंगे। यह अफसर कर्नल है। यू देयर नहीं।” उस जमाने के बहुत शक्तिशाली आईसीएस अफसर हरीश सरीन को उनसे माफी मांगनी पड़ी।

सातवां किस्सा- आधी रात को खुलवा दी दर्जी की दुकान

एक बार युगांडा के सेनाध्यक्ष इदी अमीन भारत के दौरे पर आए हुए थे। उनकी यात्रा के आखिरी दिन अशोक होटल में सैम मानेकशॉ ने उनके सम्मान में भोज दिया। डिनर पार्टी में इदी ने कहा कि उन्हें भारतीय सेना की वर्दी बहुत पसंद आई है। उन्होंने कहा कि वो अपने साथ अपने नाप की 12 वर्दियां युगांडा ले जाना चाहेंगे। सैम ने कह कर रातों-रात कनॉट प्लेस की मशहूर दर्जी की दुकान एडीज खुलवाई और करीब बारह दर्जियों ने रात भर जाग कर इदी अमीन के लिए वर्दियां सिलीं।

आठवां किस्सा- जब सैम मानेकशॉ की पत्नी ने रूसी जनरल से मांगा अलग कमरा

सैम को खर्राटे लेने की आदत थी। खर्राटे के चलते उनकी पत्नी सीलू और सैम (Sam Manekshaw) कभी भी एक कमरे में नहीं सोते थे। एक बार जब वह रूस गए तो उनके लाइजन ऑफिसर जनरल कुप्रियानो उन्हें उनके होटल छोड़ने गए। जब वह विदा लेने लगे तो सीलू ने कहा, “मेरा कमरा कहां है?” रूसी अफसर परेशान हो गए। सैम ने स्थिति संभाली, असल में मैं खर्राटे लेता हूं और मेरी बीवी को नींद न आने की बीमारी है। इसलिए हम लोग अलग-अलग कमरों में सोते हैं। यहां भी सैम की मजाक करने की आदत नहीं गई। वे रूसी जनरल के कंधे पर हाथ रखते हुए उनके कान में फुसफुसा कर बोले, “आज तक जितनी भी औरतों को मैं जानता हूं, किसी ने मेरे खर्राटे लेने की शिकायत नहीं की है सिवाय इनके!”

नौवां किस्सा- कपड़ों के शौकीन थे सैम मानेकशॉ

मानेकशॉ (Sam Manekshaw) को अच्छे कपड़े पहनने का शौक था। अगर उन्हें कोई निमंत्रण मिलता था जिसमें लिखा हो कि अनौपचारिक कपड़ों में आना है तो वह निमंत्रण अस्वीकार कर देते थे। सैम के मिलिट्री असिस्टेंट जनरल दीपेंदर सिंह एक बार यह सोच कर सैम के घर सफारी सूट पहन कर चले गए कि वह घर पर नहीं हैं और वे थोड़ी देर में श्रीमती मानेकशॉ से मिल कर वापस आ जाएंगे। लेकिन वहां अचानक सैम पहुंच गए। दीपेंदर की पत्नी की तरफ देख कर बोले, ‘तुम तो हमेशा की तरह अच्छी लग रही हो। लेकिन तुम इस “जंगली” के साथ बाहर आने के लिए तैयार कैसे हुई, जिसने इतने बेतरतीब कपड़े पहन रखे हैं?’

सैम (Sam Manekshaw) चाहते थे कि उनके एडीसी भी उसी तरह के कपड़े पहनें जैसे वह पहनते हैं, लेकिन ब्रिगेडियर बहराम पंताखी के पास सिर्फ एक सूट होता था। जब सैम पूर्वी कमान के प्रमुख थे, तो एक बार उन्होंने अपनी कार मंगाई और एडीसी बहराम को अपने साथ बैठा कर पार्क स्ट्रीट के बॉम्बे डाइंग शो रूम चलने के लिए कहा। वहां ब्रिगेडियर बहराम ने उन्हें एक ब्लेजर और ट्वीड का कपड़ा खरीदने में मदद की। सैम ने बिल दिया और घर पहुंचते ही कपड़ों का वह पैकेट एडीसी बहराम को पकड़ा कर कहा, “इनसे अपने लिए दो कोट सिलवा लो।”

सैम मानेकशॉ (Sam Manekshaw) एक ऐसे अफसर थे जो अपने फौजियों को बेहद प्यार किया करते थे और उनकी हर खुशी और गम में शरीक होते थे। फिर चाहे वह मोर्चे पर हों या कहीं और, उन्हें किसी से मिलने में उन्हें कोई परहेज नहीं था। इसी दम पर वह अपनी फौज में सबके चहेते थे। सैम मानेकशॉ गोरखा सिपाहियों की बहादुरी के कायल थे। वे हमेशा यह कहते थे, ‘जिसे मौत से डर नहीं लगता है वह या तो झूठा होता है या वह गोरखा होता है।’ 27 जून, 2008 को यह दिलेर हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गया।