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किसी एक्शन फिल्म से कम नहीं है इस लड़के की कहानी, बदले की आग ने कहां से कहां पहुंचा दिया

मिथुन का मानना था कि सैनिक बनकर ही नक्सलियों से लोहा लिया जा सकता है और अब मिथुन ने सीआरपीएफ ज्वॉइन कर लिया है।

यह कहानी बिल्कुल किसी फिल्म की तरह है। बचपन में हीरो अपने परिवार के लोगों को आतंक का शिकार होते हुए देखता है। उसके पिता को बंधक बनाया जाता है और उसके दादा की हत्या कर दी जाती है। बचपन से ही बदले की आग में जलता हुआ और मन में अन्याय के खिलाफ लड़ाई का जज्बा लिए हीरो बड़ा होता है। फिर शुरू होती है असली जंग। यह किसी बॉलीवुड एक्शन फिल्म की कहानी नहीं बल्कि हकीकत है।

बिहार के बांका जिले के बेलहर प्रखंड का मटियाकुर गांव एक वक्त लाल आतंक के कहर से थर्राता था। इसी गांव के अर्जुन दास को नक्सलियों ने बंधक बना लिया था। उन्हें घने जंगल में 24 घंटे तक भूखे-प्यासे रखने के बाद नक्सलियों ने किसी तरह उन्हें मुक्त किया था। पर, बेरहमों ने उनके चाचा भीम दास की हत्या कर दी थी। उसी समय असुरक्षा और प्रतिशोध की आग में जलते अर्जुन के बेटे मिथुन कुमार दास ने सेना में जाकर नक्सलियों से बदला लेने की कसम खाई थी। मिथुन का मानना था कि सैनिक बनकर ही नक्सलियों से लोहा लिया जा सकता है और अब मिथुन ने सीआरपीएफ (CRPF) ज्वॉइन कर लिया है।

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लाल आतंक के खिलाफ लड़ने के लिए सैनिक बनने में मिथुन की मां अशोगा देवी ने पूरा साथ दिया। बड़े भाई मिंटू दास ने कोलकाता जाकर चप्पल बनाने का कारोबार शुरू किया। लेकिन मिथुन अपनी जिद पर अड़ा रहा। उसने प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर जिले के संग्रामपुर से पूरी की। इंटर की पढ़ाई उसने जमुई और बांका से पूरी की। तभी से मिथुन ने सेना में भर्ती होने के लिए दौड़ लगाना शुरू कर दिया था। बहुत ही कम संसाधनों में भी वह प्रतिदिन दौड़ता था। कड़ी मेहनत और जज्बे की वजह से ढाई साल पहले मिथुन का चयन (CRPF) में हो गया।

प्रशिक्षण पूरी करने के बाद अभी वह उत्तराखंड के सीआरपीएफ (CRPF)  कैंप में तैनात हैं। वह अब नक्सलियों से दो-दो हाथ करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। अपने परिवार वालों के ऊपर नक्सलियों द्वारा किए गए जुल्म को याद कर आज भी मिथुन की रूह कांप उठती है। फिलहाल, मिथुन के माता-पिता सैनिक पुत्र के कहने पर मटियोकुर लौट चुके हैं। वहां वे अपनी पैतृक संपत्ति की देखभाल कर रहे हैं। बता दें कि मटियोकुर हार्डकोर नक्सली बीरबल मुर्मू और रीना दी का गांव है।

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