सरायकेला-खरसावां में 14 जून को हुए नक्सली हमले में झारखंड के देवघर जिले के मनोधन हांसदा शहीद हो गए। वे पालाजोरी के डोमनाडीह गांव के रहने वाले थे। उनके पिता का नाम रावण हांसदा था। शहीद के माता और पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी है। मनोधन हांसदा बतौर एएसआई सरायकेला में पदस्थापित थे। रावण हांसदा के 4 संतानों में सबसे छोटे मनोधन हांसदा की शहादत की खबर जैसे ही उनके पैतृक गांव पहुंची, परिवारजनों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। गांव में सन्नाटा पसर गया। गांव में रहने वाले लोगों को यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सबों का चहेता मनोधन अब उनके बीच नहीं रहा।
मनोधन का परिवार गांव में नहीं रहता है। गांववालों ने बताया कि मनोधन अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ दुमका के डंगालपाड़ा मोहल्ले में घर बनाकर रह रहे थे। गांव का घर और खेतीबाड़ी मनोधन और उसके बड़े भाई सोनाधन हांसदा ने अपनी बहन सकोदी हांसदा और बहनोई नुनूलाल मुर्मू को सौंप दी थी। बहनोई नुनूलाल को यकीन नहीं हो रहा कि छोटा साला शहीद हो गया। बहनोई नुनूलाल ने बताया कि मनोधन जिंदादिल इंसान थे। वह उनके हर सुख-दु:ख में शामिल होते थे। हमेशा मदद को तैयार रहते थे। मनोधन अपनी बहनों सकोदी हांसदा और सनोदी हांसदा से काफी लगाव रखते थे। दोनों बहनों को यकीन ही नहीं हो रहा है कि उनका प्यारा भाई मनोधन अब उनके बीच नहीं रहा।
मनोधन के मृदुल स्वभाव को याद कर घरवालों खासकर बहनों के आंसू नहीं थम रहे थे। तिरुलडीह थाना क्षेत्र के कुकुड़ु में हुए नक्सली हमले में शहीद मनोधन हांसदा का पार्थिव शरीर 15 जून की शाम उनके पैतृक गांव डोमनाडीह पहुंचा। जहां शहीद के अंतिम दर्शन को लेकर डोमनाडीह, पिंडरा, भोंराडीह, पालोजोरी, सगराजोर, दसियोडीह सहित अगल-बगल कई गांव के लोग शहीद के घर पहुंचे हुए थे। इधर जैसे ही शहीद का पार्थिव शरीर गांव पहुंचा, शहीद के परिजनों समेत पूरे गांव में लोग रोने लगे। वहीं पार्थिव शरीर को लेकर आ रहे पुलिस कर्मियों व पदाधिकारियों ने एम्बुलेंस से शहीद मनोधन को सम्मान पूर्वक घर तक पहुंचाया और पुष्प चढ़ाकर श्रद्धांजलि दी। शहीद मनोधन के पार्थिव शरीर को देखते ही उनकी पत्नी बेसुध हो गईं और दोनों बच्चे जोर-जोर से रोने लगे।
शहीद मनोधन हांसदा 45 साल के थे। नक्सली हमले में शहीद हुए एएसआई मनोधन हांसदा की शादी करीब 10 साल पहले दुमका की रहने वाली मार्था के साथ हुई थी। शादी के बाद उन्हें दो बच्चे हुए। उनका बड़ा बेटा सुरेश हांसदा 8 साल का जबकि छोटा बेटा नरेश हांसदा 4 साल का है। उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ दुमका में रहती हैं। वह जब छुट्टी पर दुमका आते थे तो पैतृक गांव डोमनाडीह भी जरूर जाते थे। गांव के लोगों की वह हरसंभव मदद भी करते थे। उनकी नौकरी आरक्षी के रूप में 2005 में हुई थी। हजारीबाग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उनकी पहली पोस्टिंग भी दुमका जिले में हुई थी। लगभग 10 सालों तक वे आरक्षी के पद पर दुमका में पदस्थापित थे।
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