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दो दिन में उत्तराखंड की माटी ने खोए अपने दो वीर सपूत

martyr major vibhuti shankar dhaundiyal

अभी देहरादून की मिट्टी के एक लाल की चिता बुझी भी नहीं थी कि दूसरे के शहादत की खबर आ गई। 16 फरवरी को शहीद हुए मेजर चित्रेश सिंह बिष्ट की अंतिम विदाई हो ही रही थी कि 18 फरवरी को दूसरे मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल के शहीद होने की खबर से ऐसा लगा मानो आसमान भी रो पड़ा। जम्मू-कश्मीर के पुलवामा के पिंगलिना 18 फरवरी की सुबह सुरक्षाबल और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में देहरादून के मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल शहीद हो गए। पुलवामा में हमारे वीर जवानों ने 2 आतंकियों को मौत के घाट उतारा। एनकाउंटर के दौरान वो आतंकियों को घेरे हुए थे, उसी दौरान गोली लगने से उनकी मौत हो गई।

मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल का घर उत्तराखंड के देहरादून के नेश्विवला रोड के 36 डंगवाल मार्ग पर है। मेजर ढौंडियाल सेना के 55 आरआर (राष्‍ट्रीय राइफल) में तैनात थे। पिताजी स्व. ओमप्रकाश ढौंडियाल कंट्रोलर डिफेंस एकाउंट आफिस में थे। 2012 में उनका निधन हो गया था। मेजर ढौंडियाल की मां दिल की मरीज हैं। इसलिए उन्हें इस बारे में नहीं बताया गया था। बस इतना कहा गया कि विभूति घायल हैं। सबसे आखिर में उन्हें बेटे की शहादत की सूचना दी गई। अब शहीद के परिवार में बूढ़ी दादी, मां, तीन बहनें और पत्नी हैं। वो तीनों बहनों के इकलौते भाई थे और घर में सबसे छोटे थे। मेजर विभूति परिवार में सबके लाडले थे। मेजर का परिवार मूल रूप से पौड़ी जिले के बैजरो ढौंड गांव का रहने वाला है।

मेजर ढौंडियाल ने आठ साल पहले 2011 में आर्मी जॉइन की थी। पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आतंकी हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद के खिलाफ मेजर ऑपरेशन में वह आतंकियों का सामना करते हुए शहीद हो गए। सोमवार को जैश के टॉप कमांडर कामरान के पिंगलिना में छिपे होने की सूचना पर वह 55 राष्ट्रीय राइफल्स की यूनिट के साथ आतंकियों का सामना करने निकल पड़े, लेकिन आतंकियों की गोली ने देश का सपूत छीन लिया। आतंकियों के साथ इस एनकाउंटर में मेजर ढौंडियाल समेत 4 जवान शहीद हो गए थे।

मेजर विभूति ने एक साल पहले ही फरीदाबाद की निकिता कौल से शादी की थी, जो कश्मीर के विस्थापित परिवार से ताल्लुक रखती हैं। मेजर विभूति और निकिता में प्रेम था और दोनों ने लव मैरिज की थी। वह दिल्ली में काम करती हैं।निकिता हर वीकेंड पर ससुराल आती थीं। 18 फरवरी की सुबह वह दिल्ली से मायके के लिए निकली थीं। वह जब ट्रेन में थीं तब उन्‍हें इसकी जानकारी मिली।

शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल अप्रैल में दून आने का वादा कर ड्यूटी पर लौटे थे। किसे पता था कि जो वादा उन्होंने अपने दोस्तों के साथ किया था, उसे पूरा करने से पहले वह देश के साथ किया वादा निभाकर हमेशा के लिए उनसे दूर चले जाएंगे। जनवरी में जब वह ड्यूटी पर लौटे तो जाते-जाते यह कह गए थे कि उनकी शादी की सालगिरह आने वाली है। वह छुट्टी लेकर दून आएंगे और गढ़ी कैंट स्थित डिफेंस सर्विसेज ऑफिसर्स इंस्टीट्यूट (डीएसओआई) में सभी दोस्तों के साथ डिनर करेंगे। मगर, शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक ओर विभूति के जाने का गम सभी के चेहरों पर साफ नजर आ रहा है और दूसरी तरफ गर्व भी है कि उनका चहेता देश के लिए ऐसा काम कर गया है, जिसके लिए सदियां उसे याद रखेंगी।

‘हां पापा, निकिता से बात कर रहा था। मैं अप्रैल में आ रहा हूं न, पिछली बार भागम-भाग में तो रुक नहीं पाया। अब की बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा।’ 17 फरवरी सुबह अपने ससुर एम.एल.कौल से बात करते हुए मेजर ढौंडियाल ने वादा किया था कि इस बार लंबी छुट्टी पर आएंगे। पर अब यह वादा कभी पूरा नहीं हो पाएगा। एम.एल.कौल ग्रेटर फरीदाबाद के सेक्टर-82 स्थित एसपीआर सोसायटी में रहते हैं।