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Today History (11 May): सच लिखने वाले ‘बदनाम’ लेखक सआदत हसन मंटो

Today in History

आज का इतिहास (Today History):  11 मई को देश और दुनिया में हुई कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं में से कुछ हैं, सआदत हसन मंटो की गिनती ऐसे साहित्यकारों में की जाती है जिनकी कलम ने अपने वक़्त से आगे की ऐसी रचनाएं लिख डालीं जिनकी गहराई को समझने की दुनिया आज भी कोशिश कर रही है। प्रसिद्ध कहानीकार मंटो का जन्म 11 मई 1912 को पुश्तैनी बैरिस्टरों के परिवार में हुआ था। उनके पिता ग़ुलाम हसन नामी बैरिस्टर और सेशन जज थे। उनकी माता का नाम सरदार बेगम था, और मंटो उन्हें बीबीजान कहते थे। मंटो बचपन से ही बहुत होशियार और शरारती थे। मंटो ने एंट्रेंस इम्तहान दो बार फेल होने के बाद पास किया। इसकी एक वजह उनका उर्दू में कमज़ोर होना था। मंटो का विवाह सफ़िया से हुआ था। जिनसे मंटो की तीन पुत्री हुई। मंटो की कहानियों की बीते दशक में जितनी चर्चा हुई है उतनी शायद उर्दू और हिन्दी और शायद दुनिया के दूसरी भाषाओं के कहानीकारों की कम ही हुई है। आंतोन चेखव के बाद मंटो ही थे जिन्होंने अपनी कहानियों के दम पर अपनी जगह बना ली। उन्होंने जीवन में कोई उपन्यास नहीं लिखा। 1948 के बाद मंटो पाकिस्तान चले गए। पाकिस्तान में उनके 14 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें 161 कहानियाँ संग्रहित हैं। इन कहानियों में सियाह हाशिए, नंगी आवाज़ें, लाइसेंस, खोल दो, टेटवाल का कुत्ता, मम्मी, टोबा टेक सिंह, फुंदने, बिजली पहलवान, बू, ठंडा गोश्त, काली शलवार और हतक जैसी चर्चित कहानियाँ शामिल हैं। जिनमें कहानी बू, काली शलवार, ऊपर-नीचे, दरमियां, ठंडा गोश्त, धुआं पर लंबे मुक़दमे चले। हालांकि इन मुक़दमों से मंटो मानसिक रूप से परेशान ज़रूर हुए लेकिन उनके तेवर ज्यों के त्यों थे। मंटो के 19 साल के साहित्यिक जीवन से 230 कहानियां, 67 रेडियो नाटक, 22 शब्द चित्र और 70 लेख मिले। तमाम ज़िल्लतें और परेशानियां उठाने के बाद 18 जनवरी, 1955 में मंटो ने अपने उन्हीं तेवरों के साथ, इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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