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पुलवामा आतंकी हमलाः शहादतों का सिलसिला अब और नहीं…

पुलवामा में आतंकी हमला

कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों ने कायरतापूर्वक हमला किया। जम्मू कश्मीर में हुए अब तक के इस सबसे बड़े हमले में सीआरपीएफ (CRPF) के 40 जवान शहीद हो गए। दर्जनों जवान गम्भीर अवस्था में घायल हैं जिनका इलाज चल रहा है। हमले की ज़िम्मेदारी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है। आतंकवादियों ने विस्फोटक से भरी गाड़ी से सीआरपीएफ जवानों के काफिले की एक बस को टक्कर मार दिया। काफिले में 78 गाड़ियां थीं, जिसमें 2547 जवान सवार थे। इनमें से एक गाड़ी हमले की चपेट में आ गई। हमला बेहद भयावह था, धमाका इतना जबर्दस्त था कि बस के परखच्चे उड़ गए।

शहीद होने वाले जवानों में अधिकतर जवान छुट्टियां मनाने अपने घर वापस आ रहे थे। लेकिन अमन एवं शांति के दुश्मन इन आतंकवादियों ने उन पर हमला कर दिया। इस हमले से आज सारा देश शोक में है, दुःख की इस घड़ी में समस्त देशवासियों की संवेदनाएं शहीद जवानों के परिजनों से है। देश इनकी शहादत का कर्ज कभी चुका नहीं सकता।

शहादत सिर्फ़ 40 जवानों की नहीं हुई है, बल्कि आज 40 परिवार बेसहारा हो गए हैं। किसी का बेटा अनाथ हुआ है, कोई औरत विधवा हुई है, तो कई मां-बाप दुनिया में अकेले और बेऔलाद हो गए हैं। कोई बेटा इस इंतज़ार में ख़ुशी मना रहा था कि पापा घर आ रहे हैं, तो कोई औरत घर की दहलीज़ पर अपने पति के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। कोई मां अपने बेटे को गले लगाने के लिए महीनों से बेकरार थी। पर आज उन सब के आंखों में आंसुओं का सैलाब बह रहा है।

इस दर्द को महसूस कीजिए और सोचिए कि इस आतंकवाद ने कितने परिवारों की जिंदगियां उजाड़ दीं, कितने परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूटा है। धरती का स्वर्ग कही जाने वाली धरती ख़ून के धब्बों से सन चुकी है, फिज़ाओं में सिर्फ़ बारूद नज़र आ रहा है।

पर सिर्फ आंसुओं का हिसाब नहीं रखना है, ना बारुदों का ब्योरा तैयार करते रहना है। वक्त की मांग है कि नासुर बन चुके इस समस्या का स्थायी हल ढूंढा जाए। फिर चाहे बोली से या गोली से क्योंकि अब दर्द की परवाज़ आसमानी हो चली है।

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