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पुलिन बिहारी दास पुण्यतिथि विशेष: अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय नौजवानों को दी ट्रेनिंग, डाका डालने में भी थे उस्ताद

Pulin Behari Das Death Anniversary

भारत के महान क्रांतिकारी पुलिन बिहारी दास (Pulin Behari Das) का जन्म 28 जनवरी, 1877 ई. को ढाका ( अब बंगला देश) में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनके पिताजी नबा कुमार दास मदारीपुर के सब-डिविजनल कोर्ट में अधिवक्ता थे। उनके एक चाचा डिप्टी मजिस्ट्रेट और दूसरे चाचा मुंसिफ थे। उन्होंने फरीदपुर जिला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और हॉयर एजुकेशन के लिए ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज की पढाई के समय ही वह लेबोरेट्री असिस्टेंट बन गए थे। उन्हें बचपन से ही बॉडी बिल्डिंग का बहुत शौक था और वो कलकत्ता में सरला देवी के अखाड़े से बहुत प्रेरित थे। इसी प्रेरणा ने उन्हें लाठी-भाला चलाने की विद्या सिखने के लिए आकर्षित किया।  

समाचार पत्रों के माध्यम से उनकी राजनीतिक शिक्षा हुई। शीघ्र ही वे अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और सशस्त्र क्रांति के द्वारा विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने के समर्थक बन गए। उनकी गिनती पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) के प्रमुख क्रांतिकारियों में होने लगी। पुलिन ने पूर्वी बंगाल में क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति की 500 शाखाएं स्थापित कर ली थीं। राजनीतिक स्वाधीनता प्राप्ति के लिए उनका हिंसा में विश्वास था। इसके लिए वे शिवाजी आदि को अपना आदर्श मानते थे।

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पुलिन बिहारी दास (Pulin Behari Das) लाठी, भाला, चाकू, छुरी, तलवार आदि चलाने में पारंगत थे। वह ‘ढाका अनुशीलन समिति’ के प्रधान सेनापति थे। एक बार ढाका के नवाब के उकसाने पर पुलिन बिहारी दास के शागिर्दों पर 500 आदमियों ने एक साथ आक्रमण किया, परिणामस्वरूप नवाब के 50 आदमी मार दिए गए और पुलिन के आदमी सुरक्षित बच निकले। इस लड़ाई के बाद पुलिन बिहारी दास गिरफ्तार किए गए, उन पर मुकदमा चला और अदालत ने 3 वर्ष का कारावास दिया। अपील करने पर कारावास का दण्ड माफ कर दिया गया और 1500 रुपये जुर्माना अदा करने का आदेश हुआ।

आजादी के लिए पुलिन बिहारी (Pulin Behari Das) ने डाला था  डाका 

पुलिन बिहारी (Pulin Behari Das)  राजनीतिक कार्यों के लिए धन एकत्र करने हेतु डाके डालने में भी उस्ताद थे। लेकिन उनकी गतिविधियां बहुत दिनों तक छिपी न रह सकीं। 1908 ई. में गिरफ्तार करके उन्हें पंजाब के मांटगुमरी जेल में बंद कर दिया गया लेकिन सबुतों के अभाव में कुछ ही महीनों में वे रिहा कर दिए गए। लेकिन यह रिहाई अस्थायी थी। शीघ्र ही एक षड्यंत्र के मुकदमे में उन्हें आजीवन कारावास की सजा दे दी गई, जिसे हाईकोर्ट ने घटा कर 7 वर्ष कर दिया। यह सजा पुलिन बिहारी ने अंडमान में बंद रहकर काटी।

अंडमान से आने के बाद अपने विचारों के प्रचार के लिए उन्होंने ‘स्वराज्य और शंख’ नाम के पत्र निकाले। पुलिन बिहारी (Pulin Behari Das) अपने समय के प्रसिद्ध व्यक्तियों जगदीश चंद्र बोस, प्रफुल्ल चंद राय, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि के निकट संपर्क में रहते थे। समाजसेवा के कार्यों में उनकी बड़ी रुचि थी। 17 अगस्त, 1949 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में उनका निधन हो गया।