इस साल महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2021) का त्योहार विशेष योग में मनाया जा रहा है। इस दिन शिव योग लगा रहेगा और साथ ही नक्षत्र घनिष्ठा रहेगा और चंद्रमा मकर राशि में रहेगा।
आज महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2021) है। वैसे तो मासिक शिवरात्रि हर महीने मनाई जाती है। लेकिन, इस महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के दिन का खास महत्व होता है। भगवान शिव की अराधना का सबसे बड़ा त्योहार महाशिवरात्रि है।
क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि
माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। शास्त्रों की माने तों महाशिवरात्रि की रात ही भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसके बाद से हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।
यह भी कहा जाता है कि मां पार्वती सती का पुनर्जन्म है। मां पार्वती शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने शिवजी को अपना बनाने के लिए कई प्रयत्न किए थे, लेकिन भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए। इसके बाद मां पार्वती ने त्रियुगी नारायण से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में कठिन साधना की थी और शिवजी को मोह लिया था और इसी दिन शिवजी और मां पार्वती का विवाह हुआ था।
इस बार महाशिवरात्रि है खास
इस साल महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2021) का त्योहार विशेष योग में मनाया जा रहा है। इस दिन शिव योग लगा रहेगा और साथ ही नक्षत्र घनिष्ठा रहेगा और चंद्रमा मकर राशि में रहेगा।
इसलिए इस बार की महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2021) बेहद खास मानी जा रही है। इस बार महाशिवरात्रि की पूजा संपूर्ण विधि विधान के साथ करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
इस दिन शिवभक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना के साथ उपवास भी रखते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव को पूजा के दौरान पुष्प, बेलपत्र, भांग, बेर, गाय का कच्चा दूध, दही, चंदन, देशी घी, गंगा जल आदि अर्पित करना शुभ होता है। ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
चार पहर की पूजा का खास महत्व
इसके अलावा, शिवरात्रि पर रात्रि की पूजा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण होती है चार पहर की पूजा। यह पूजा संध्या से शुरू करके ब्रह्ममुहूर्त तक की जाती है। यह पूजा मुख्यतः जीवन के चारों अंगों को नियंत्रित करती है। इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सब प्राप्त हो जाते हैं।
पूजा में बेलपत्र का महत्व-
लेकिन जब बात भगवान शिव (Lord Shiva) की सबसे प्रिय चीजों की आती है तो उसमें सबसे पहले (Bel Patra) का नाम आता है। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि बेलपत्र भगवान शिव को बेहद प्रिय है और शिवलिंग (Shivlinga) पर बेलपत्र चढ़ाए बिना पूजा को पूर्ण नहीं माना जाता। ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करने से महादेव प्रसन्न होते हैं और श्रद्धालु को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं जिसको लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। तीन पत्तों को कहीं त्रिदेव (सृजन, पालन और विनाश के देव ब्रह्मा, विष्णु और शिव) तो कहीं तीन गुणों (सत्व, रज और तम) तो कहीं तीन आदि ध्वनियों (जिनकी सम्मिलित गूंज से ऊं बनता है) का प्रतीक माना जाता है। बेलपत्र की इन तीन पत्तियों को महादेव की तीन आंखें या उनके शस्त्र त्रिशूल का भी प्रतीक माना जाता है।
पौराणिक कथा-
कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के बाद विष निकला तो भगवान शिव ने पूरी सृष्टि को बचाने के लिए ही इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और उनका पूरा शरीर अत्यधिक गरम हो गया जिसकी वजह से आसपास का वातावरण भी जलने लगा।
चूंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है इसलिए सभी देवी देवताओं ने बेलपत्र शिवजी को खिलाना शुरू कर दिया। बेलपत्र के साथ साथ शिव को शीतल रखने के लिए उन पर जल भी अर्पित किया गया। बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी।
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शिव की पूजा में ये चीजें हैं वर्जित-
जहां, महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर कई प्रकार की चीजें अर्पित की जाती हैं वहीं, कुछ चीजों को शिवलिंग पर नहीं चढ़ाया जाता। जानते हैं ये चीजें कौन सी हैं और इन्हें शिवलिंग पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता है।
तुलसी: वैसे तो हिंदू धर्म में तुलसी का विशेष महत्व है लेकिन इसे भगवान शिव पर चढ़ाना मना है।
तिल: शिवलिंग पर तिल भी नहीं चढ़ाया जाता है। मान्याता है कि तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे भगवान शिव को अर्पित नहीं किया जाता।
टूटे हुए चावल: टूटे हुए चावल भी भगवान शिव को अर्पित नहीं किए जाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक, टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है।
कुमकुम: भगवान शिव को कुमकुम और हल्दी चढ़ाना भी शुभ नहीं माना गया है।
नारियल: शिवलिंग पर नारियल का पानी भी नहीं चढ़ाया जाता। नारियल को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। देवी लक्ष्मी का संबंध भगवान विष्णु से है इसलिए नारियल शिव को नहीं चढ़ता।
शंख: भगवान शिव की पूजा में कभी शंख का प्रयोग नहीं किया जाता। शंखचूड़ नाम का एक असुर भगवान विष्णु का भक्त था जिसका वध भगवान शिव ने किया है। शंख को शंखचूड़ का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि शिव उपासना में शंख का इस्तेमाल नहीं होता।
केतकी का फूल: भगवान शिव की पूजा में केतकी के फूल को अर्पित करना वर्जित माना जाता है।