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Lal Bahadur Shastri Death Anniversary: जब एक माली की बात लाल बहादुर शास्त्री के लिए बन गई सीख, पढ़ें उनके बचपन का ये किस्सा

Lal Bahadur Shastri

ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते (Lal Bahadur Shastri) पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी, 1966 की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई।

आज भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) की पुण्यतिथि है। वे अपनी साफ-सुथरी छवि और सादगी के लिए जाने जाते हैं। वह करीब 18 महीने तक देश के प्रधानमंत्री रहे। उनके नेतृत्व में भारत ने साल 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी।

ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी, 1966 की रात में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई। हम आज उनकी पुण्यतिथि पर उनके बचपन से जुड़े एक किस्से को साझा कर रहे हैं-

दरअसल, लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) के बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ चुका था। पिता की मौत के बाद वे मां के अपने नाना के घर आ गए। पढ़ाई-लिखाई के लिए एक स्‍कूल में उनका दाखिला करा दिया गया। शास्‍त्री अपने कुछ दोस्‍तों के साथ आते-जाते थे। रास्‍ते में एक बगीचा पड़ता था। उस वक्‍त लाल बहादुर शास्त्री की उम्र करीब 5-6 साल थी।

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एक दिन बगीचे की रखवाली करने वाला नदारद था। लड़कों को लगा इससे अच्‍छा मौका नहीं मिलेगा। सारे लड़के लपक कर पेड़ों पर चढ़ गए। कुछ फल तोड़े और खूब धमाचौकड़ी मचाई। इतने में माली आ गया। बाकी सब तो भाग गए पर अबोध शास्‍त्री वहीं खड़े रहे। उनके हाथ में कोई फल नहीं, एक गुलाब का फूल था जो उन्‍होंने उसी बाग से तोड़ा था।

माली ने बाग की हालत देखी और फिर नन्‍हें शास्‍त्री को। सबका गुस्‍सा उसी पर उतरा। माली ने एक तमाचा बालक शास्त्री को जड़ दिया। मासूमियत में शास्‍त्री बोले, “तुम नहीं जानते, मेरा बाप मर गया है, फिर भी तुम मुझे मारते हो। दया नहीं करते।” शास्‍त्री को लगा था कि पिता के न होने से लोगों की सहानुभूति मिलेगी, लोग प्‍यार करेंगे।

केवल एक फूल तोड़ने की छोटी की गलती के लिए उसे माफ कर दिया जाएगा, पर ऐसा हुआ नहीं। तमाचे ने उस बच्‍चे की सारी आशाओं को खत्‍म कर दिया था। वह वहीं खड़ा सुबकता रहा। माली ने देखा कि ये बच्‍चा अब भी नहीं भागा, न ही उसकी आंखों में डर है। उसने एक तमाचा और रसीद कर दिया और जो कहा, वह शास्‍त्री के लिए जिंदगी भर की सीख बन गया।

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माली ने नन्हें शास्त्री से कहा था, “जब तुम्‍हारा बाप नहीं है, तब तो तुम्‍हें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। और सावधान रहना चाहिए। तुम्‍हें तो नेकचलन और ईमानदार बनना चाहिए।” लाल बहादुर शास्‍त्री (Lal Bahadur Shastri) के मन में उस दिन यह बात बैठ गई कि जिनके पिता नहीं होते, उन्‍हें सावधान रहना चाहिए। ऐसे निरीह बच्‍चों को किसी और से प्‍यार की आशा नहीं रखनी चाहिए। कुछ पाना हो तो उसके लायक बनना चाहिए और उसके लिए खूब और लगातार मेहनत करनी चाहिए।