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पुण्यतिथि विशेष: महान शिक्षाविद और दार्शनिक थे पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

भारत के एक विख्यात दार्शनिक और शिक्षक, भारत के पूर्व राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) की आज पुण्यतिथि है। राधाकृष्णन के अनुसार, हमारे देश में गुरु शिष्य की महान परंपरा रही है। शिक्षक अपना ज्ञान विद्यार्थियों को देकर उन्हें सशक्त बनाते हैं। वे बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाते हैं। इसलिए समाज शिक्षकों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करता है। शिक्षक एक आदर्श हैं जो बच्चों में जिज्ञासा और सीखने की भावना पैदा करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाया। उनका कार्यकाल 13 मई, 1962 से 13 मई, 1967 तक रहा। उनका नाम भारत के महान् राष्ट्रपतियों की प्रथम पंक्ति में सम्मिलित है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र इनका सदैव ऋणी रहेगा।

स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan)  का जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के एक पवित्र तीर्थ स्थल तिरुतनी ग्राम में हुआ था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शुरुआती जीवन तिरुतनी और तिरुपति स्थलों पर बीता। इनके पिता राधाकृष्णन को पढ़ने के लिए क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में दाखिल कराया। इसके बाद उन्होंने वेल्लूर और मद्रास कॉलेजों में शिक्षा प्राप्त की।

 

वह शुरू से ही एक मेधावी छात्र थे।  सन 1902 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों में उत्तीर्ण की जिसके लिए उन्हें छात्रवृत्ति प्रदान की गई। स्नातक की परीक्षा में वह प्रथम आए। इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र (Philosophy) में स्नातकोत्तर (M।A।) किया और जल्द ही मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए।

उन्होंने भारतीय संस्कृति का गहन अध्ययन किया। डॉ राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया। राधाकृष्णन ने जल्द ही वेदों और उपनिषदों का भी गहन अध्ययन कर लिया।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) ने कोलकाता के किंग जॉर्ज पंचम विश्वविद्यालय में 1921 से 1931 तक समय व्यतीत किया। इस विश्वविद्यालय में मानसिक एवं नैतिक दर्शन शास्त्र का प्रोफेसर पद उन्होंने संभाला।

वह 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। इसके बाद 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर रहे और 1939 से 1948 तक वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर आसीन रहे।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan)  को स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्यता मिली। वह 1947 से 1949 तक इसके सदस्य रहे। इस समय वे  विश्वविद्यालयों के चेयरमैन भी नियुक्त किए गए। राधाकृष्णन को उनके विशिष्ट कार्यों के लिए 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिकता सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan)  ने लम्बी बीमारी के बाद 17 अप्रैल, 1975 को प्रातःकाल अन्तिम सांस ली। वह अपने समय के एक महान् दार्शनिक थे। देश के लिए यह अपूर्णीय क्षति थी।