सआदत हसन मंटो को बॉम्बे टाकीज के मालिकों ने दी थी भारत छोड़ने की धमकी

मंटो (Saadat Hasan Manto) ने जो कुछ भी लिखा, जितना भी लिखा, वास्तविकता के बहुत करीब होकर लिखा। मंटो ने सच्चाई से कभी गुरेज नहीं किया। अपनी मौत से एक साल पहले उन्होंने अपनी कब्र पर लिखी जाने लिए जो इबारत लिखी, वह दर्द भरी होते हुए भी बड़ी प्यारी इबारत थी।

Saadat Hasan Manto (सआदत हसन मंटो)

Saadat Hasan Manto

Saadat Hasan Manto: उर्दू के कलमनिगार मंटो अपनी बेबाक लेखनी के लिए विख्‍यात रहे हैं। उनकी लघु कथाएं बूखोल दोठंडा गोश्त,काली सलवार और टोबा टेकसिंह सर्वाधिक चर्चित रहीं हैं। कहानीकार होने के साथ-साथ मंटो फिल्म और रेडिया पटकथा लेखक और पत्रकार भी थे। उनकी जिंदगी मुश्किलों से घिरी रही। उन पर कहानियों में अश्लीलता के आरोप में छह बार मुकदमा चला था। इनमें तीन बार देश विभाजन से पहले और तीन बार बंटवारे के बाद। हालांकि एक बार भी उन पर अपराध साबित नहीं हो पाया। पाकिस्तान में उन पर सिर्फ जुर्माना लगा था। विभाजन की त्रासदी का दंश उन्हें सालता रहा। अफसोस जीवित रहते उनकी लेखनी और उन्हें सम्मान नहीं मिला।

उनका पूरा नाम था सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto), किन्तु मित्रों एवं परिचितों के दायरे में वे मंटो के नाम से मशहूर थे। उनका जन्म हुआ था 11 मई 1912 में अविभाजित पंजाब के समराला (जिला लुधियाना) नामक गांव में। जब उनकी आयु सात वर्ष की थी, उसी दौरान अमृतसर के जलियांवाला बाग में वह सामूहिक बर्बर हत्याकांड हुआ था, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में अन्तिम कील ठोंक दी। मंटो इस अमानवीय घटना से इस कदर प्रभावित हुए कि जब उन्होंने कहानियां लिखना शुरू किया तो पहली कहानी इसी विषय को आधार बनाकर उर्दू में लिखी। कहानी का नाम था-तमाशा। इसी बीच उनकी भेंट हई ईस्ट इंडिया कंपनी से सम्बद्ध इतिहासकार बारी आलिग से, उस भेंट ने मंटो (Saadat Hasan Manto) की दुनिया ही बदल कर रख दी। बारी की प्रेरणा और प्रोत्साहन से उन्होंने रुसी और फ्रेंच साहित्य का गहरा अध्ययन किया तथा विक्टर ह्ययूगो के “द लास्ट डेज ऑफ ए कंडेम्ड मैन” तथा आस्कर वाइल्ड के ‘वेरा’ नामक उपन्यासों का उर्दू में तर्जुमा भी किया। बारी के ही दबाव से मंटों ने उस उर्दू जुबान में मौलिक कहानियां लिखनी शुरू की, जिसमें वह स्कूल में पढ़ते समय प्राय: फेल होते रहे थे।

मंटो (Saadat Hasan Manto) की कहानियां एक अर्थ में मनोवैज्ञानिक सनसनी पैदा करने वाली कहानियां है। उसमें समाज के दलित उत्पीड़ित लोगों की मजबूरियों उनके दु:ख-दर्द को पूरी ईमानदारी से उकेरने की कोशिश की गई है। उनके वर्णनों से जो ध्वनि निकलती है, वह असाधारण रूप से जीने की कला, मरने की कला और इन दोनों के बीच होने की कला से सराबोर रहती है। उनकी कहानियों के मुख्य पात्र वे यातना भोगती आत्माएं हैं जो कमजोर जिस्म लेकर भी अपने फौलादी इरादों के बल-बूते पर कट्टर सम्प्रदायवाद के खिलाफ लड़ती हैं। मजहब के तंग दायरों को तोड़ने के लिए आखिरी दम तक जंग करती हैं, और बड़ी से बड़ी अग्नि परीक्षा में से गुजरते हुए कुंदन बनकर निकलती हैं। अपने कीमती जिस्म बेचने को मजबूर कोठे-वालियों कभी बड़ी एक्सट्राओं और मुल्क के बंटवारे से पैदा हुई फिरका परस्त दरिन्दगी को अपनी अस्मत की भेंट चढ़ाती अमीनाओं-सकीनाओं का जीती-जागती तस्वीरें पेश करती हैं मंटो (Saadat Hasan Manto) की कहानियां।

 

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