…और जिंदगी लेने वाले बन गए जीवन रक्षक, लोगों के लिए मास्क सिल रहे हैं पूर्व नक्सली

पूरी दुनिया में लोग कोरोना वायरस के खौफ से दहशत में हैं और सभी (Naxals) लोगों से अपील की जा रही है कि वो जरुरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकले तथा मास्क का इस्तेमाल जरुर करें। कभी खूंखार नक्सलियों  में शुमार रहे मड़कम और रीना की जिंदगी कब और कैसे बदली?

Naxalites Surrender

सांकेतिक तस्वीर।

जो हाथ कभी समाज में नक्सलवाद (Naxalism) फैलाने और लोगों की हत्या करने के लिए उठते थे वो अब आम इंसान की जिंदगियां बचा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के सुकमा में मास्क बनाने वाले 31 साल के मड़कम लख्खा और 30 साल की रीना वेक्को की। पूरी दुनिया में लोग कोरोना वायरस के खौफ से दहशत में हैं और सभी (Naxals) लोगों से अपील की जा रही है कि वो जरुरत पड़ने पर ही घर से बाहर निकले तथा मास्क का इस्तेमाल जरुर करें। कभी खूंखार नक्सलियों  में शुमार रहे मड़कम और रीना की जिंदगी कब और कैसे बदली? इस पर हम आगे बात करेंगे।

Naxals
सांकेतिक तस्वीर।

सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि मुख्यधारा में लौटने के बाद यह पूर्व नक्सली (Naxali) कैसे काम कर रहे हैं? दरअसल इस इलाके में सुरक्षा बल के जवान आम लोगों के लिए मास्क सिलने का काम कर रहे हैं। लिहाजा यह दोनों अब सुरक्षा बलों का हाथ बटा रहे हैं। अभी तक इन दोनों ने जवानों के साथ मिलकर 1000 से ज्यादा मास्क सिल दिये हैं। इस मास्क का इस्तेमाल आम आदमी के साथ-साथ सुरक्षा बल के जवान भी कर रहे हैं।

आज यह दोनों मिलकर हर रोज करीब 200 मास्क सिल लेते हैं। जाहिर है यह मास्क आज कई जिंदगानियां बचा रही हैं। रीना अपने इस काम से आज बेहद खुश भी हैं। लेकिन लोगों की जिंदगी लेने वाले 2 युवा नक्सलियों (Naxals) की जिंदगी कैसे बदल गई और कैसे वो जीवन रक्षक बन गए? इसके पीछे भी कहानी बेहद दिलचस्प है।

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साल 2008 में मड़कम नक्सली संगठन (Naxal Organization) में शामिल हुआ था। पिछले ही साल अगस्त महीने में मड़कम ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था। वह नक्सली संगठन में मिलिशिया कमांडर इन चीफ समेत कई पदों पर रहा है। इसके साथ ही वह नक्सलियों के टेलर टीम का भी मुखिया था जो दक्षिण बस्तर और पड़ोसी राज्य तेलंगाना में नक्सलियों के नेताओं के लिए वर्दी सिलने का काम करता है। नक्सली संगठन में रहते हुए मड़कम ने कई नक्सली वारदातों को भई अंजाम दिया।

मड़कम ने बताया कि इस लॉकडाउन के दौरान पुलिस के जवान दिन रात मेहनत कर रहे हैं और मास्क सिल रहे हैं। ऐसे में उसने पूर्व में किए गए काम की मदद लेना शुरू किया और इस पुराने कौशल की मदद से पुलिस कर्मियों का हाथ बटाने लगा। उसने कहा,‘‘ हांलकि यह एक बड़ा योगदान नहीं है लेकिन मुझे खुशी है कि मैं समाज के लिए किसी भी तरह से काम आ रहा हूं।’’

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मास्क सिलने के अलावा मड़कम स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर माओवादियों के संदेशों का हिंदी में अनुवाद भी करता है। दरअसल, माओवादी इस क्षेत्र में ज्यादातर स्थानीय बोलियों का उपयोग करते हैं, ऐसे में उनके द्वारा कही गई बातों का हिंदी अनुवाद सुरक्षा बलों के खुफिया तंत्र के लिए महत्वपूर्ण साबित होता है।

रीना साल 2018 में नक्सली संगठन (Naxal Organization) छोड़ कर मुख्यधारा में लौटी। रीना ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में काफी सक्रिय थी और कई नक्सली (Naxali) घटनाओं में शामिल रही। एक दिलचस्प बात यह भी है कि संगठन में रहते हुए रीना बंदूक चलाने में माहिर थी और उसे उस वक्त सिलाई का काम भी नहीं आता था। हथियार छोड़ते ही रीना सिलाई के काम में भी माहिर चुकी है।

आपको बता दें कि मास्क सिलने के लिए कच्चा माल इन्हें पुलिस द्वारा ही उपलब्ध कराया जाता है। सुरक्षा बलों तथा पूर्व नक्सलियों (Naxals) द्वारा बनाए गए मास्क को लोगों के बीच मुफ्त में बांटा जाता है।

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