‘परमवीर चक्र’ के डिजाइन की हर वो बात जो आपको पता होनी चाहिए, इस मेडल का वैदिक ऋषि से है कनेक्शन
वीरता पुरस्कारों में सबसे बड़ पुरस्कार 'परमवीर चक्र' होता है। असाधारण बहादुरी के लिए ये पुरस्कार दिया जाता है। अबतक कुल 21 सैनिकों को यह दिया जा चुका है।
सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ की पात्रता की शर्तें, जानें क्या एक सैनिक को यह दो बार मिल सकता है?
'परमवीर चक्र' (Param Vir Chakra) सर्वोच्च सैन्य सम्मान है। इसके लिए सेना ने कुछ शर्तें रखी हैं। जो जवान इन शर्तों को पूरा करता है उसे ही इससे नवाजा जाता है।
Indian Army के वो 21 जवान जिन्हें मिला सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’, देखें पूरी लिस्ट
भारतीय सेना (Indian Army) अपने बलिदान और शौर्य के लिए विख्यात है। सेना के जवान जब जंग के मैदान में होते हैं तो दुश्मनों को भगा-भगाकर मारते हैं। आजादी के बाद अबतक लड़े गए लगभग हर युद्ध में सेना ने अपना पराक्रम दिखाया है।
17 गोलियां खाने के बाद भी मार गिराए थे 70 पाकिस्तानी सैनिक, जानें इस ‘परमवीर चक्र’ विजेता की बहादुरी की कहानी
सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव एकमात्र ऐसे सैनिक हैं, जिन्हें जिंदा रहते सेना के सर्वोच्च सम्मान 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किया गया है।
सीजफायर की घोषणा होने तक अपनी पोस्ट से हटने से कर दिया था इनकार, ऐसे थे ‘परमवीर चक्र’ पाने वाले मेजर होशियार सिंह
15 दिसंबर 1971 के दिन को गोलंदाज फौज की तीसरी बटालियन का नेतृत्व मेजर होशियार कर रहे थे। बटालियन को आदेश दिया गया कि बसंतर नदी के पार तैनाती लें।
1971 की लड़ाई में एयरफोर्स के इस अफसर ने छुड़ाए थे PAK के छक्के, बहादुरी के लिए मिला था ‘परमवीर चक्र’
14 दिसंबर 1971 को श्रीनगर एयरफील्ड पर दुश्मन के 6 सेबर एयरक्राफ्ट ने हमला कर दिया था। सेखों उस समय ड्यूटी के लिए तैयार थे।
हाथ में बम लेकर PAK बंकरों पर कूद पड़े थे एक्का, ‘परमवीर चक्र’ से हुए थे सम्मानित, जानें पूरी कहानी
जंग में वे और उनके 14 गार्ड्स रेजिमेंट के साथियों ने अगरतला को पाक के हमलों से बचाया था। गंगासागर स्टेशन के पास इस जंग में दुश्मनों की कमर तोड़कर रख दी थी।
1971 भारत-पाक युद्ध: इस जवान को जिंदा रहते मिला था परमवीर चक्र, जानें इस सैन्य सम्मान की खासियतें
3 दिसंबर, 1971 को पाक एयर फोर्स ने भारत पर हमला कर दिया था। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के जन्म के साथ युद्ध का समापन हुआ।