Naxal

गिरफ्तार नक्सली पुलिस मुठभेड़ में मारे गए हार्डकोर नक्सली मंटू खैरा का सहयोगी बताया जा रहा है। वह नक्सलियों के साथ लेवी वसूली का काम करता था। पुलिस के अनुसार, गिरफ्तार नक्सली हथियार छुपाकर भी रखता था।

नक्सलियों ने इलाके के एक ईंट भट्ठा पर 06 जून को हमला कर ट्रैक्टर फूंक दिया था।

सोनू ने अपने ही गांव की एक लड़की को दिल्ली में ले जाकर बेच दिया, शिकायत के बाद पुलिस सक्रिय हुई और लड़की को बरामद किया गया।

नक्सलियों ने ब्रजेश को अगवा किया था और फिर उसकी हत्या कर दी।

छह बाइक से आये 10-12 की संख्या में नक्सलियों ने पुलिसकर्मियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी।

जल्द ही जवानों को अत्याधुनिक एके-203 राइफल जवानों को उपलब्ध कराए जाएंगे। इससे एक मिनट में 600 गोलियां दागी जा सकती हैं।

अनमोल दा नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का स्पेशल एरिया कमेटी सदस्य है। इस इनामी नक्सली के खिलाफ चक्रधरपुर रेल थाना में हत्या और लूट के मामले दर्ज हैं।

पुलिस के जवानों ने तेतर टोली के समीप घेराबंदी कर रखी थी, इसी बीच नक्सलियों का दस्ता मौके पर पहुंच गया।

हजारीबाग में इचाक के फूरका जंगल से टीएसपीसी (तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी) के तीन हार्डकोर नक्सली दो देसी कार्बाइन के साथ गिरफ्तार किए गए।

छत्तीसगढ़ के बस्तर सहित अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय युवाओं को रोजगार देने के लिए सरकार ने एक नई पहल की है।

लगभग एक दर्जन हथियारबंद नक्सली नवामुड़ा गांव में स्थित तेंदूपत्ता गोदाम पहुंचे थे। नक्सलियों के इस दल में महिला नक्सली भी शामिल थीं।

मृत किसान देवेंद्र कुमार कटेंद्र लखनपुरी इलाके के चिनौरी गांव का रहने वाला था। नक्सलियों ने पिता-पुत्र दोनों को अगवा कर लिया था।

चंदौती थाना क्षेत्र के इंग्लिश गांव से हार्डकोर नक्सली शकर यादव को पकड़ा गया। उस वक्त शंकर अपने घर पर ही था। पुलिस के अनुसार, शंकर यादव नक्सली जयराम यादव के समूह का सदस्य है।

पामेड़ थाना से एरिया डॉमिनेशन के लिए निकली हुई सुरक्षाबलों की संयुक्त टीम ने मिलिशिया कमांडर अर्जुन कुंजाम को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार नक्सली एक दर्जन से भी अधिक जवानों की हत्या का आरोपी है।

नक्सली दंपति वेट्टी हुर्रा और कलमु हुये ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है। वेट्टी हुर्रा ‘‘मिलिशिया कमांडर’’ था, जबकि उसकी पत्नी कलमु हुये माओवादी मोर्चा संगठन क्रांतिकारी आदिवासी महिला संगठन (काम्स) की कार्यकर्ता थी।

अब सवाल यह है कि नक्सलियों को आखिर नक्सली पुनर्वास नीति लाने की जरूरत क्यों पड़ी? दरअसल बीहड़ों और पहाड़ों में छिपे रहने वाले नक्सली अब पूरी तरह कमजोर पड़ चुके हैं।

एक समय वह खूंखार नक्सली था। 18 सालों तक बीहड़ों में रह कर उसने सिर्फ खून-खराबा किया। लेकिन कहते हैं न, जब जागो, तभी सवेरा...। तो आज वह उस अंधेरी दुनिया से निकल आया है।

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