Garhwal Rifles

चाहे वह 1948 का युद्ध हो या फिर 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 और 71 में पाकिस्तानी सेना के साथ लोहा लेना हो। Garhwal Rifles के जवानों ने हमेशा अपनी छाप छोड़ी है।

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