मुठभेड़ के बाद खुलासा: जंगल में मंगल करते हैं बड़े नेता, निचले कैडरों को गुमराह कर चला रहे हैं साम्यवाद की अपनी दुकान

संगठन में स्थानीय आदिवासी नौजवान कभी भी एरिया कमेटी से ऊपर प्रमोट नहीं किए जाते। केंद्रीय नेतृत्व में केवल आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व केरल जैसे राज्यों के ही नक्सलियों (Naxalites) का बोल-बाला है।

Naxalites

नक्सल संगठन के बड़े नेता समाज के हर तबके में बराबरी की बनावटी बात करने वाले खुद ही जंगल में मंगल करते हैं। इन बड़े नेताओं की ठाठ किसी अमीरजादे से कम नहीं होती। भले ही निचले कैडर के नक्सल सदस्यों को इस्तेमाल के लिए सस्से जूते और घटिया सामान देते हों, लेकिन खुद के लिए ये महंगे जूते और ब्रांडेड सामानों का ही इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि कोरोनाकाल में बड़े कैडर के नेताओं का इलाज आंध्र प्रदेश के बड़े अस्पतालों में किया गया, जबकि स्थानीय नक्सलियों (Naxalites) को मरने के लिए उनके ही हाल पर छोड़ दिया गया।

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नक्सल संगठन के इस काले सच की परत तब खुली जब पिछले शुक्रवार को ओडिशा सीमा से सटे चांदामेटा में हुई मुठभेड़ के बाद बरामद सामानों का मुआयना किया गया। पुलिस को यहां महंगे जूते, फिल्टर वाटर, हर्बल साबुन व अन्य सामान मिले हैं। जो कि साम्यवाद के नाम पर भोग-विलास करने वाले नक्सलियों (Naxalites) के दोहरे चरित्र को साफ दर्शाते हैं।

गौरतलब है कि शुक्रवार को तुलसीडोंगरी से पहले चांदामेटा के जंगल में नक्सलियों (Naxalites) के साथ हुई मुठभेड़ में एक महिला नक्सली मारी गई थी। इस दौरान मौके की सर्चिंग में पुलिस ने एके-47, इंसास, पिस्टल समेत ब्रांडेड हर्बल उत्पाद, साबुन, टूथपेस्ट, शैम्पो, ब्रांडेड मिनरल वाटर, जूते आदि बरामद किए हैं।

नक्सल मामलों के जानकारों के मुताबिक, पूंजीवाद की मुखालफत व साम्यवाद की वकालत करने वाले बड़े नक्सली नेता भोली आदिवासी जनता को महज क्रांति की घुट्टी पिलाने का काम कर रहे हैं।

जबकि सच्चाई ये है कि शीर्ष के नक्सली नेता किसी अमीरजादे की तरह ही भौतिक सुख-सुविधाओं का आनंद उठाते हैं। बावजूद इसके बस्तर के स्थानीय लड़ाकों को निम्न स्तर की सुविधाएं ही दी जाती हैं।

गौरतलब है कि नक्सल संगठन में स्थानीय आदिवासी नौजवान कभी भी एरिया कमेटी से ऊपर प्रमोट नहीं किए जाते। केंद्रीय नेतृत्व में केवल आंध्र प्रदेश, तेलंगाना व केरल जैसे राज्यों के ही नक्सलियों (Naxalites) का बोल-बाला है।

अकसर ये देखने को मिलता है कि देश के तमाम राज्यों में हो रहे पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में स्थानीय नक्सल सदस्यों को ही मरने के लिए फ्रंट पर रखा जाता है। जबकि बड़े नेता कभी भी घटनास्थल पर नहीं होते। ये नेता स्थानीय नक्सलियों (Naxalites) के हाथों गांवों के स्कूल-विद्यालय के प्रांगढ़ को ध्वस्त करवाते हैं, तो वहीं इनके बच्चे उच्च शिक्षा के लिए देश-विदेश में जाते हैं। जाहिर है कि धीरे-धीरे ही सही स्थानीय नक्सलियों (Naxalites) को भी बड़े नक्सली नेताओं की कथनी और करनी में अंतर समझ में आ रहा है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में प्रशासन द्वारा चलाये जा रहे लोन वर्राटू अभियान के तहत भारी तादाद में नक्सली अपराध का दामन छोड़ मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं।

 

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