चौराहे के चारों तरफ लगा था लाशों का अंबार, रेते हुए गले और गोलियों से छलनी शरीर देखकर कांप उठा था झारखंड

11 September 2005: झारखंड राज्य को बने हुए केवल 5 साल ही हुए थे। गिरिडीह जिले सहित पूरे झारखंड में नक्सलवाद चरम पर था। यहां घने जंगल हैं।

Naxalites

मृतकों के परिजन

भेलवाघाटी में रहने वाले लोग बहादुर और समझदार थे और वह नक्सलियों (Naxalites) को अपने गांव में घुसने नहीं देना चाहते थे। ये लोग जानते थे कि अगर नक्सली उनके इलाके में आए, तो वो उनके बच्चों को भी इसी आतंक के रास्ते पर खींच ले जाएंगे।

11 सितंबर 2005, इस देश के इतिहास की वो तारीख है, जिसे याद करके झारखंड के लोग आज भी कांप उठते हैं। बात 15 साल पुरानी है, जब नक्सलियों (Naxalites) ने दर्जनों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

दरअसल झारखंड राज्य को बने हुए केवल 5 साल ही हुए थे। गिरिडीह जिले सहित पूरे झारखंड में नक्सलवाद चरम पर था। इस दौरान गिरिडीह जिले के भेलवाघाटी थाना क्षेत्र में नक्सली अपना प्रभाव बनाने की कोशिश कर रहे थे। भेलवाघाटी थाना क्षेत्र झारखंड और बिहार की सीमा पर स्थित है। यहां घने जंगल हैं।

भेलवाघाटी में रहने वाले लोग बहादुर और समझदार थे और वह नक्सलियों (Naxalites) को अपने गांव में घुसने नहीं देना चाहते थे। ये लोग जानते थे कि अगर नक्सली उनके इलाके में आए, तो वो उनके बच्चों को भी इसी आतंक के रास्ते पर खींच ले जाएंगे।

ऐसे में भेलवाघाटी क्षेत्र के तमाम गांवों में लोगों ने ‘ग्राम रक्षा दल’ की स्थापना की। ये दल रात में गांव में पहरा देता था और किसी भी असामाजिक तत्व को गांव में घुसने से रोकता था।

नक्सलियों के नापाक मंसूबे पूरे नहीं हो रहे थे, इसलिए उन्होंने ग्राम रक्षा दल के सदस्यों को मारने का प्लान बनाया। 11 सितंबर 2005 को शाम के 7:30 बजे भाकपा माओवादियों के सैकड़ों सदस्यों ने गांव को चारों तरफ से घेर लिया। गांव के घरों को बाहर से बंद कर दिया गया और ग्राम रक्षा दल के सदस्यों को भेलवाघाटी गांव के चौराहे पर लाया गया।

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नक्सलियों ने पहले ग्राम रक्षा दल के सदस्यों को खूब पीटा और फिर जन अदालत लगाकर किसी को गोली मारी, तो किसी की गर्दन रेतकर उसे मौत के घाट उतार दिया।

इस दौरान कई लोगों ने भागने की कोशिश की, लेकिन नक्सलियों ने उनमें से ज्यादातर को मौत के घाट उतार दिया। कुछ लोग मस्जिद में जाकर छिप गए तो नक्सलियों ने मस्जिद का गुंबद उड़ा दिया और लोगों को मस्जिद से बाहर निकालकर मार डाला।

इस घटना को देश की सबसे बड़ी नक्सली नरसंहार की घटनाओं में से एक माना जाता है। इसमें दर्जनों लोगों की मौत हुई थी।

मारे गए लोगों में कई परिवार के मुखिया सदस्य भी शामिल थे, जिसमें रामचंद्र हाजरा, अशोक हाजरा, कलीम अंसारी ,हमीद मियां, युसूफ अंसारी ,चेतन सिंह, दिल मोहम्मद अंसारी ,मजीद अंसारी, मंसूर अंसारी ,रज्जाक अंसारी, सिराज अंसारी ,करीम मियां सहित दर्जनों नाम हैं।

इस घटना से पूरे देश में हड़कंप मच गया और तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, पूर्व उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो सहित सरकार की कैबिनेट के कई मंत्री और सांसद 12 सितंबर 2005 को भेलवाघाटी पहुंचे और नक्सलियों द्वारा की गई कायराना हरकत की निंदा की।

मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की सरकार ने इस नरसंहार में मारे गए मृतक परिजनों को ढाई लाख रुपए मुआवजा, प्रत्येक मृतक के परिजनों में एक को सरकारी नौकरी, मृतकों के माता-पिता को सरकारी पेंशन और मृतकों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा, मृतकों के परिवार को इंदिरा आवास और भेलवाघाटी में 1 पुलिस पिकेट की स्थापना का वादा किया और भेलवाघाटी गांव को एक आदर्श गांव बनाने की घोषणा की।

समय गुजरा और मृतकों के परिजनों को मुआवजे में केवल एक लाख रुपए ही मिले और मृतकों के बच्चों के लिए सरकार अभी तक शिक्षा के मामले में कोई कारगर कदम नहीं उठा सकी।

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