…जब नक्सलियों ने कर लिया था जिलाधिकारी एलेक्स पॉल मेनन को अगवा, ऐसे हुए रिहा

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर-सुकमा बॉर्डर पर 3 अप्रैल को हुए नक्सली हमले (Naxal Attack) में हमारे 22 जनाव शहीद हो गए और 31 जवान घायल हो गए थे। इसके अलावा, नक्सलियों (Naxalites) ने इस दौरान CRPF के एक जवान को अगवा कर लिया था।

Alex Paul Menon

Alex Paul Menon

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के सुकमा (Sukma) में विकास अभियान के लिए काम कर रहे जिलाधिकारी एलेक्स पॉल मेनन (Alex Paul Menon) को नक्सलियों (Naxalites) ने अगवा कर लिया था।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर-सुकमा बॉर्डर पर 3 अप्रैल को हुए नक्सली हमले (Naxal Attack) में हमारे 22 जनाव शहीद हो गए और 31 जवान घायल हो गए थे। इसके अलावा, नक्सलियों (Naxalites) ने इस दौरान CRPF के एक जवान को अगवा कर लिया था। सरकार, प्रशासन और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की कोशिश के बाद नक्सलियों ने जवान को 5 दिन बाद रिहा कर दिया। यह पहली बार नहीं है जब नक्सलियों ने इस तरह की कायराना हरकत की है।

इतिहास में नक्सलियों (Naxals) के काले कारनामें कम नहीं हैं। 2010 में सीआरपीएफ (CRPF) के जवानों पर हमला हो या 2013 में कांग्रेस नेताओं की हत्या, नक्सलियों ने कई बार इस तरह का खूनी खेल खेला है। नक्सली हमेशा से ही नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों को निशाना बनाते रहे हैं। दरअसल, नक्सली हमेशा से ही विकास से खौफ खाते रहे हैं।

मध्य प्रदेश के मंत्री का अपहरण कर नक्सलियों ने कर दी थी हत्या

राजनीतिक रूप से सबसे बड़ी घटना उस समय हुई थी, जब मध्य प्रदेश में नक्सलियों (Naxalites) ने वहां के परिवहन मंत्री लिखिमराम कावड़े का 16 दिसंबर, 1999 को अपहरण करने के बाद उनकी हत्या कर दी थी। इसके बाद साल 2008 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्या के ऊपर भी नक्सली हमले हुए थे। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पर भी नक्सलियों ने हमले किए थे।

मलकानगिरी के जिलाधिकारी को भी किया था अगवा

साल 2011 में नक्सलियों ने ओडिशा में मलकानगिरी के जिलाधिकारी आरवी कृष्णा का अपहरण कर लिया था। 2005 बैच के आईएएस अधिकारी आरवी कृष्णा का अपहरण फरवरी, 2011 में उस समय किया गया था, जब वे विकास कार्यों की समीक्षा के लिए धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में गए थे। उनके साथ कनिष्ठ अभियंता पवित्र मांझी को भी नक्सलियों ने अगवा कर लिया था।

इसके बाद नक्सलियों द्वारा चुने गए दो मध्यस्थों आंध्रप्रदेश के प्रो. सोमेश्वर राव और प्रो. हरगोपाल से संपर्क किया गया। सरकार और प्रशासन की कोशिशें जारी थीं, इस बीच नक्सलियों ने माझी को तो अपने कब्जे से मुक्त कर दिया, लेकिन कृष्णा को छोड़ने के लिए उन्होंने अब नई शर्तें रखीं। नक्सलियों ने माझी के हाथ भेजे पत्र में कृष्णा को छोड़ने के लिए नई शर्तें रखीं थीं। नक्सलियों की शर्तों के लिए अभी अगले दौर की बातचीत होनी थी कि अचानक उन्होंने जिलाधिकारी को भी रिहा कर दिया।

नक्सलियों ने कर लिया था जिलाधिकारी एलेक्स पॉल मेनन को अगवा

छत्तीसगढ़ के सुकमा में ऐसे ही विकास अभियान के लिए काम कर रहे एक और जिलाधिकारी को नक्सलियों (Naxalites) ने अगवा कर लिया था। 21 अप्रैल, 2012 की शाम छत्तीसगढ़ के सबसे संवेदनशील सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र के माझीपारा गांव में नक्सलियों ने वहां के जिलाधिकारी एलेक्स पॉल मेनन (Alex Paul Menon) का अपहरण कर लिया था। वे 2006 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।

इस दौरान नक्सालियों ने उनके दो अंगरक्षकों को भी मार दिया था। यह घटना सुकमा के ही केरलापाल इलाके में हुई। जहां मांझीपाड़ा में प्रशासन के अधिकारियों नें ‘ग्राम सुराज अभियान’ के तहत ग्रामीणों से बातचीत कर रहे थे। हर साल होने वाले ग्राम सुराज अभियान के तहत राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और प्रशासनिक अधिकारी ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करते थे और ग्रामीणों की समस्याओं से रू-ब-रू होते थे।

इसी क्रम में जिलाधिकारी मेनन जब ग्रामीणों से बातचीत कर रहे थे, तभी एक नक्सली सभा में घुस गया। इसके बाद उसने वहां पर मौजूद जिलाधिकारी के एक अंगरक्षक की गला रेत कर हत्या कर दी। जवाबी कारवाई में सुरक्षा गार्डों ने उसे मार दिया। मगर इसी बीच नक्सालियों का एक बड़ा दल वहां पहुंच गया। अफरा तफरी मच गई, दोनों ओर से गोलीबारी हुई।

फिर नक्सली पूछने लगे कि कलेक्टर कौन है..। तब जिलाधिकारी मेनन (Alex Paul Menon) ने कहा कि मैं हूं..। उसके बाद नक्सली जिलाधिकारी को अपने साथ ले गए। रिहाई के लिए नक्सलियों ने 25 अप्रैल तक की समयसीमा रखी थी। बदले में माओवादियों ने सरकार के समक्ष ऑपरेशन ग्रीनहंट को बंद करने और उनके आठ सहयोगियों को रिहा करने की मांग रखी थी। बाद में सरकार की ओर से और नक्सलियों की ओर से दो-दो मध्यस्थों को रखा गया था।

मध्यस्थों के बीच हुई लंबी चर्चाओं के बाद एक समझौता हुआ था और माओवादियों ने कलेक्टर की रिहाई के लिए हामी भरी थी। नक्सलियों ने कहा था कि वे 3 मई को ताड़मेटला में जिलाधिकारी को रिहा कर देंगे। 13 दिनों तक नक्सियों के कब्जे में रखने के बाद उन्हें 3 मई को रिहा किया था। नक्सलियों ने मेनन को कुमडतुंग गांव में रखा था। मेनन तमिलनाडु के रहने वाले हैं।

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नक्सलियों ने जितनी भी हत्याएं और अपहरण किए, उन सब के पीछे उनका मकसद विकास को रोकना था। जहां भी प्रशासन के अधिकारी या जनप्रतिनिधि विकास के लिए कोई कदम उठाते हैं, ग्रामीण आदिवासियों की जागरूकता के लिए कोई अभियान चलाते हैं, नक्सली उन्हें अपने निशाने पर रखते।

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नक्सली (Naxalites) पहले भी विकास से डरते थे और आज भी विकास ही उनके डर का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि, पिछले लगभग एक दशक में सरकार और प्रशासन के अथक प्रयासों की वजह से उन क्षेत्रों में विकास हुआ जिन्हें कभी नक्सलियों ने अपने आतंक के जंजीर में जकड़ रखा था। आज इन क्षेत्रों में तरक्की होती दिख रही है। ग्रामीण आदिवासी आतंक के साए से निकलकर विकास की धूप देख पा रहे हैं।

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