देश के सामने एक बड़ी चुनौती है नक्सलवाद, नक्सली लगातार कर रहे नापाक मंसूबों को पूरा करने की कोशिश

आदिवासी, नक्सलियों (Naxalites)  की बातों में आ जाते हैं और उनके मददगार बन जाते हैं। नक्सलियों की ताकत जंगलों के भीतर और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोग ही हैं, जिनसे उन्हें सबसे अधिक सहयोग मिलता है।

Naxalites

नक्सलवाद (Naxalism) की समस्या पर काबू पाने के लिए नक्सलियों (Naxalites) के साथ कई बार बातचीत भी हुई, पर सब बेनतीजा रहा।

हाल ही में महाराष्ट्र (Maharashtra) के गढ़चिरौली (Gadchiroli) में हुई नक्सली मुठभेड़ (Naxal Encounter) में जवानों ने 13 नक्सलियों (Naxalites) को मार गिराया था। इस मुठभेड़ में हमारे जवानों को कोई नुकसान नहीं हुआ। पर, मुठभेड़ के बाद एक बार फिर नक्सलियों (Naxals) के खतरनाक मंसूबे सामने आए हैं। इससे पहले, पिछले महीने नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के सुकमा (Sukma) में नक्सलियों ने हमला (Naxal Attack) कर सुरक्षाबल के जवानों को बड़ा नुकसान पहुंचाया था।

दरअसल, इस तरह के हमले और मुठभेड़ के पीछे नक्सलियों का मंसूबा सरकारों और प्रशासन को चुनौती देना है। नक्सली ऐसे मौकों की तलाश करते रहते हैं। जब भी ऐसे नक्सली हमले (Naxal Attack) होते हैं, तो सरकारें अपनी रणनीति पर दोबारा विचार करती हैं और नक्सलियों के मंसूबे तोड़ने के लिए नए तरीके अपनाती हैं।

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नक्सलवाद (Naxalism) की समस्या पर काबू पाने के लिए नक्सलियों (Naxalites) के साथ कई बार बातचीत भी हुई, पर सब बेनतीजा रहा। इसके बाद सरकारों ने नक्सलियों को केंद्रीय सुरक्षाबलों की मदद से रोकने की रणनीति बनाई। नक्सलियों के सफाए के लिए व्यापक अभियान चलाए गए। इस रणनीति का असर तो हुआ है, नक्सली कमजोर हुए हैं, पर वे अभी भी पूरी तरह काबू में नहीं आए हैं।

अभी भी नक्सली समय-समय पर अपने नापाक मंसूबे दिखा ही देते हैं। उनका खूनी खेल सुरक्षाबलों के साथ-साथ आम लोगों के लिए भी परेशानी का सबब है। नक्सली सिर्फ हिंसा तक ही सीमित नहीं हैं, वे विकास के खिलाफ हैं। जिन इलाकों को विकास से जोड़ने की कोशिश की जाती है, नक्सली वहां भी किसी न किसी तरह अडंगे डाल देते हैं।

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नक्सली ज्यादातर देश के आदिवासी बहुल इलाकों में सक्रिय हैं। इन इलाकों में अभी विकास नहीं पहुंच पाया है। लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं। इसका फायदा उठाकर नक्सली स्थानीय लोगों को बरगलाते हैं और अपने पक्ष में कर लेते हैं। वे मासूम आदिवासियों के मन में सरकारों और प्रशासन के खिलाफ जहर भरते हैं। वे आदिवासियों से कहते हैं कि सरकारें उनके जल, जंगल और जमीन पर कब्जा करना चाहती हैं।

इसका असर ये होता है कि आदिवासी, नक्सलियों (Naxalites)  की बातों में आ जाते हैं और उनके मददगार बन जाते हैं। नक्सलियों की ताकत जंगलों के भीतर और पिछड़े इलाकों में रहने वाले लोग ही हैं, जिनसे उन्हें सहयोग मिलता है। नक्सली जंगलों में कई तरह के धंधे चलाने लगे हैं, उन्होंने जगह-जगह अपना साम्राज्य बना लिया है। उनके साम्राज्य को तोड़ने के लिए स्थानीय लोगों का समर्थन जरूरी है।

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इसलिए नक्सलियों पर लगाम लगाने के लिए सबसे पहले सरकारों और प्रशासन को स्थानीय लोगों का विश्वास हासिल करना जरूरी है। इसके लिए सरकारें आदवासी इलाकों में विकास पर काम कर रही है।आदिवासियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने, उनके शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के लिए योजनाएं चलाने पर लगातार जोर दिया जा रहा है।

साथ ही उनमें नक्सलियों (Naxalites) के असली मंसूबे को लेकर आदिवासियों को जागरूक भी किया जा रहा है ताकि वे सही-गलत में फर्क कर सकें। इसके अलावा नक्सलियों को सरकार की आत्मसमर्पण नीतियों से भी प्रभावित किया जा रहा है। नक्सलियों को सरेंडर के बाद मुख्यधारा में शामिल होने और सुकून का जीवन जीने के लिए आर्थिक मदद के साथ ही उनके रोजगार के इंतजाम भी किए जाते हैं।

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जिसका असर है कि नक्सलियों का सरेंडर लगातार हो रहा है। इससे नक्सली संगठनों (Naxal Organizations) में कैडर की संख्या घट रही है औक संगठन कमजोर हो रहे हैं। इसके साथ ही नक्सलियों की नकेल कसने, उनकी साजिशों का पता लगाने और उनके संसाधनों को खत्म करने के लिए हर स्तर पर प्रयास जारी हैं।

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