इनामी नक्सली ने बताया, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, वर्नॉन गोंजाल्विस का नक्सल कनेक्शन!

संगठन में पहाड़ सिंह ने अपने नाम के मुताबिक ही काम किया। उसने कई संगीन नक्सली वारदातों को अंजाम दिए जिसमें हत्या, लेवी वसूली, अपहरण जैसे घिनौने काम शामिल हैं।

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15 साल तक वो छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश और इससे सटे अन्य राज्यों की बीहड़ों में खौफ का पर्याय बना रहा है।

सालों तक कई राज्यों की पुलिस उसकी तलाश में खाक छान रही थी। कभी वो घने बीहड़ों में पुलिस को छकाता तो कभी वेश बदलकर विदेश घूम आता। लेकिन क्या मजाल कि पुलिस उसे पकड़ पाने में कामयाब हो सके। अरसे तक उसके नहीं पकड़े जाने के पीछे एक वजह यह भी थी कि उसके कई नाम थे। कुमार साय कतलाम उर्फ अशोक उर्फ टीपू सुल्तान उर्फ बाबूराव तोफा उर्फ राम मोहम्मद सिंह उर्फ पहाड़ सिंह। अब अगर इतने सारे नाम एक ही शख्स के हों तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वो किस कदर शातिर रहा होगा। लेकिन नाम से भी बड़े हैं उसके अनगिनत कारनामे। हालांकि, इस शख्स ने खुद ही पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया लेकिन इसकी कहानी यह बताती है कि किस तरह कभी गांवों में पनपा नक्सलवाद आज शहर को अपनी आगोश में लेने के लिए बेकाबू हो चुका है। इतना ही नहीं सरेंडर के बाद पहाड़ सिंह ने नक्सलियों के शहरी सेल से जुड़े जिन बड़े नामों के बारे में खुलासा किया है वो भी बेहद चौंकाने वाले हैं।
 
कौन है पहाड़ सिंह? साल 2002 से पहले यह शख्स छत्तीसगढ़ के अपने गांव फाफामार में तेंदू पत्ता चुनने का काम करता था। इस शख्स ने देखा कि उसके गांव के एक स्कूल में एक भी शिक्षक नहीं हैं तब उस वक्त उसने पंचायत से 500 रुपए लिए और बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। बच्चों के शिक्षक का नाम था पहाड़ सिंह। कविता कहने में रुचि रखने वाला पहाड़ सिंह सरल कविता के माध्यम से बच्चों को पढ़ाता था। लेकिन उसी साल यानी 2002 में ही अचानक पहाड़ सिंह देवरी दलम का सदस्य बन गया। इसके बाद एक दिन अचानक हाथों में 8 एमएम की पिस्टल लेकर वो नक्सली बनने निकला पड़ा। दरअसल, इसके पीछे वजह यह थी कि वो नक्सली विचारधारा से काफी प्रभावित हो गया था। लेकिन एक बार जब नक्सवाद ने पहाड़ सिंह को जकड़ा तो फिर वो कभी अपने गांव और अपने स्कूल वापस नहीं लौट पाया।
 
 
सरकार ने रखा 47 लाख रुपए का इनाम: संगठन में पहाड़ सिंह ने अपने नाम के मुताबिक ही काम किया। उसने कई संगीन नक्सली वारदातों को अंजाम दिए जिसमें हत्या, लेवी वसूली, अपहरण जैसे घिनौने काम शामिल हैं। कई बार उसकी पुलिस से मुठभेड़ हुई। वो इन मुठभेड़ों में लीड रोल निभाता था। 15 साल तक वो छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश और इससे सटे अन्य राज्यों की बीहड़ों में खौफ का पर्याय बना रहा है। गंभीर बात यह भी है कि कविता प्रेमी पहाड़ सिंह नक्सलवाद का बखान करती हुई भ्रामक कविताएं युवाओं को सुनाता और क्रांति के लिए कविताओं के जरिए वह भावनात्मक रूप से युवाओं को प्रभावित करता था। एक समय ऐसा भी था जब ये नक्सली कमांडर किसी वीवीआईपी की तरह पूरे चौबीस घण्टे तीन–तीन गनमैन लेकर चलता था। जंगल में ऐश-ओ-आराम की जिंदगी गुजार रहे पहाड़ सिंह लाल आतंक का विशेष कमांडर था और अपने संगठन के शीर्ष नेताओं के हुक्म पर कुछ भी कर गुजरने से परहेज नहीं करता था। पुलिस के लिए नासूर बन चुके पहाड़ सिंह को पकड़ने के लिए सरकार ने उस पर 47 लाख रुपए का इनाम भी रख दिया था।
 
यूं किया सरेंडर: पहाड़ सिंह किसी के हाथ नहीं आ सका। लेकिन साल 2018 में अचानक इस दुर्दांत नक्सली ने दुर्ग पुलिस के सामने हथियार डाल दिए। उस वक्त यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई थीं। हर कोई यह जानना चाहता था कि आखिर इतने बड़े नक्सली ने क्यों सरेंडर किया? सरेंडर के बाद जो राज पहाड़ सिंह ने पुलिस के सामने उगले उसने सबको हैरान कर दिया। इस कुख्यात ने बताया कि किस तरह नक्सली अपनी विचारधारा से भटक कर आम लोगों और समाज के लिए कोढ़ बन चुके हैं। पहाड़ सिंह ने खुलासा किया कि जिस सिद्धांत के आधार पर नक्सली नेता नक्सलवादी विचारधारा की बात करते हैं, वह सिद्धांत ही खोखला पड़ चुका है। संगठन के चंद आका और बड़े स्तर के तस्कर किस्म के लोग इस खोखली विचारधारा का सहारा लेकर युवाओं को बहका रहे हैं और उन्हें नक्सलवाद की ओर धकेल रहे हैं। इस तरह के लोग नक्सलवाद के नाम पर केवल अपनी स्वार्थ सिद्धी में लिप्त हैं। सरेंडर के वक्त पहाड़ सिंह ने नक्सलियों की खोखली विचारधारा पर अपनी कविता के जरिए हमला किया।
 
 
माओवादी आदिवासी हितैषी नहीं
 
इनका विचार विदेशी है
 
शांति नहीं अशांति है, क्रांति नहीं भ्रांति है
 
माओवादियों की विचार, करो खून-खराबा अत्याचार
 
देश की अखंडता मानवता को कर रही शर्मसार
 
अब जागो मेरे यार….अब जागो मेरे यार
 
आदिवासी, दलित, किसान, जनता, देश की आत्मा
 
माओवाद का देश से करो खात्मा!!!
 
सुधा भारद्वाज, वरवरा राव की खोली पोल: नक्सलगढ़ के गलियारे में मशहूर पहाड़ सिंह ने ना सिर्फ नक्सलियों की घिनौनी विचारधारा को समाज में नंगा किया बल्कि उसने आगे यह भी बताया कि आज नक्सलवाद की पौध किस तरह गांवों से निकल कर शहरों में अपनी जड़ें जमा रही हैं। उसने शहरी नक्सवाद से जुड़े कुछ ऐसे नाम लिए जिनके चेहरे तब तक बेनकाब नहीं हुए थे। पहाड़ सिंह ने प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में गिरफ्तार सुधा भारद्वाज को शहरी नेटवर्क के रूप में पहचानने की जानकारी दी। इतना ही नहीं सुधा भारद्वाज के अलावा इस गंभीर साजिश में कथित तौर से शामिल अरुण फरेरा, वरवरा राव, वर्नॉन गोंजाल्विस और गौतम नवलखा को भी जानने-पहचानने की बात पहाड़ सिंह ने पुलिस को बताई। जब पुलिस ने उससे पूछा कि वो इन बड़ी हस्तियों को कैसे जानता है? तो पहाड़ सिंह ने इसका भी सिलसिलेवार ब्योरा दिया।
 
 
अरुण फरेरा: सेंट्रल कमेटी सदस्य स्तर का व्यक्ति है। वर्ष 2006 में कोरची में हुए नक्सलियों के अधिवेशन में भी शामिल हुआ था। पहाड़ सिंह इसी अधिवेशन में अरुण से मिला था।
गौतम नवलखा: नक्सली संगठन व पार्टी में होने वाली चर्चाओं के अनुसार नक्सलियों को सपोर्ट करने का काम गौतम नवलखा का है।
सुधा भारद्वाज: नक्सलियों का एक मजबूत शहरी नेटवर्क है। कानूनी मदद के लिए नक्सलियों के परिवार इनसे संपर्क करते हैं।
वरवरा राव: यह भी नक्सलियों के शहरी नेटवर्क के रूप में काम करता है।
वर्नॉन गोंजाल्विस: संगठन में होने वाली चर्चाओं से पहाड़ सिंह को मालूम चला कि यह शख्स भी नक्सलियों का समर्थन करता है, लेकिन इसकी पहाड़ सिंह से मुलाकात नहीं हुई।
 
यह 3 नाम भी हैं शामिल: इन सभी के अलावा पहाड़ सिंह ने तीन नए नामों का खुलासा भी किया। जिन तीन नए नामों की जानकारी मिली है उसमें दीपक तेलकुम्हड़े, उसकी पत्नी एंजिला तेलकुम्हड़े तथा मंजू शामिल हैं। पहाड़ सिंह के मुताबिक दीपक तेलकुम्हड़े सेंट्रल कमेटी मेंबर है। वो छत्तीसगढ़ में नक्सली विस्तार जोन एमएमसी (मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़) का सदस्य है और नक्सलियों के लिए शहरी नेटवर्क के रूप में काम करता है। वहीं एंजिला तेलकुम्हड़े के बारे में प्राप्त जानकारी के मुताबिक वो दीपक तेलकुम्हड़े की पत्नी है। पूर्व में नक्सलियों से मिलने जंगल में भी जाती थी, लेकिन एक बार पुलिस के हत्थे चढ़ने के बाद जंगल जाना छोड़ दिया। एंजिला अब शहरी नेटवर्क के रूप में सक्रिय है। नक्सलियों के सतत संपर्क में रहने वाली मंजू अभी मुंबई में नक्सली संगठन के लिए काम कर रही है। मंजू कहां की रहने वाली है, इसकी जानकारी पहाड़ सिंह को भी नहीं है।
 

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