सांकेतिक तस्वीर
सरेंडर करने वाले नक्सली (Naxalites) गोरिल्ला रणनीति को बखूबी जानते हैं, पुलिस ट्रेनिंग के बाद सरेंडर करने वाले नक्सली और भी ट्रेन्ड हो जाते हैं। ऐसे में ये नक्सली, नक्सल ऑपरेशन में पुलिस के लिए वरदान साबित हो रहे हैं। इनकी सहायता से पुलिस ने कई नक्सल ऑपरेशन में सफलता पाई है।
जगदलपुर: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान की वजह से नक्सलवाद की कमर टूट चुकी है। जो नक्सली कभी पुलिसकर्मियों के खून के प्यासे थे, वे अब मुख्यधारा से जुड़े हैं और पुलिसकर्मियों की मदद भी कर रहे हैं। यही वजह है कि पुलिस को नक्सलियों के खिलाफ जानकारी जुटाने में आसानी हो रही है।
बस्तर में बीते 4 दशकों से नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है। नक्सली स्थानीय आदिवासी ग्रामीणों को अपने संगठन से जोड़ते हैं और पुलिस-प्रशासन के खिलाफ खड़ा कर देते हैं। ऐसे में पुलिस, सरकार की मदद से इन लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने की लगातार कोशिश कर रही है।
यही कारण है कि सरकार पुनर्वास नीति में समय-समय पर बदलाव भी करती है। इसका पॉजिटव पक्ष ये है कि लाखों रुपए के इनामी नक्सली सरेंडर कर रहे हैं।
पुलिस इन नक्सलियों को मुख्यधारा से तो जोड़ ही रही है, साथ ही कई नक्सलियों को पुलिस फोर्स में भी भर्ती किया गया है, और ये नक्सली पुलिस के साथ मिलकर नक्सलवाद के खात्मे में लगे हैं।
दरअसल सरेंडर कर चुके नक्सलियों को बखूबी पता होता है कि किस जगह पर क्या स्थिति है। ऐसे में पुलिस को सरेंडर कर चुके नक्सलियों के साथ मिलकर ऑपरेशन करने में परेशानी नहीं होती है।
सरेंडर करने वाले नक्सली गोरिल्ला रणनीति को बखूबी जानते हैं, पुलिस ट्रेनिंग के बाद सरेंडर करने वाले नक्सली और भी ट्रेन्ड हो जाते हैं। ऐसे में ये नक्सली, नक्सल ऑपरेशन में पुलिस के लिए वरदान साबित हो रहे हैं। इनकी सहायता से पुलिस ने कई नक्सल ऑपरेशन में सफलता पाई है।
ऐसे में या तो नक्सली सरेंडर कर रहे हैं या पुलिस की गोली खा रहे हैं। नक्सलियों के सामने सिवाय मुख्यधारा से जुड़ने के कोई दूसरा विकल्प नहीं छोड़ा गया है। ऐसे में नक्सल संगठन और उनके नक्सलियों की कमर टूट चुकी है और वह बौखलाए हुए हैं।
कई ऐसे नक्सली हैं, जिनके ऊपर 2 से 8 लाख रुपए का इनाम था और अब वह सरेंडर कर चुके हैं। सरेंडर करने के बाद इन नक्सलियों का जीवन पूरी तरह से बदल गया है और वह एक खुशनुमा जिंदगी जी रहे हैं।
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