बस्तर: बदल रही इलाके की तस्वीर, लाल आतंक पर भारी पड़ रहा देशप्रेम का जज्बा

राष्ट्रीय त्योहारों पर पहले यहां के गांवों में लाला आतंक के खौफ से तिरंगे के बजाय नक्सलियों का काला झंडा फहराया जाता था। या फिर लोग डर के मारे न तो तिरंगा फहराते थे, न ही इस दिन खुशियां मना पाते थे।

Naxalism

फाइल फोटो।

एक वक्त था जब छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में लाल आतंक (Naxalism) की दहशत थी। 15 अगस्त आते ही नक्सली (Naxals) स्वतंत्रता दिवस ( Independence Day) मनाने और तिरंगा (Tricolor) न फहराने का फरमान जारी कर देते थे। राष्ट्रीय त्योहारों पर पहले यहां के गांवों में लाला आतंक के खौफ से तिरंगे के बजाय नक्सलियों का काला झंडा फहराया जाता था। या फिर लोग डर के मारे न तो तिरंगा फहराते थे, न ही इस दिन खुशियां मना पाते थे।

इन गांवों में नक्सली (Naxalites) काला झंडा फहराकर देश और सरकार के प्रति अपना विरोध दर्ज कराते थे और साथ ही लोगों को भी डरा-धमकाकर काला झंडा फहराने के लिए मजबूर करते थे। पर, सरकार और प्रशासन के प्रयासों से यहां अब तस्वीर काफी बदल गई है। यहां अब नक्सलियों का वर्चस्व कमजोर पड़ चुका है।

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सुरक्षाबलों के इन इलाकों में पहुंचने से लोगों का विश्वास भी बढ़ा है। बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर और कांकेर जिले के तमाम गांवों में ग्रामीण अब नक्सलियों के खिलाफ खुलकर सामने आ रहे हैं। उनके फरमान को पूरी तरह नकार कर राष्ट्रीय पर्वों पर तिरंगा फहराने लगे हैं।

अब ऐसे मौकों पर हाथों में तिरंगा लिए यहां के आदिवासी ग्रामीण नक्सलवाद (Naxalism) के खात्मे में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर रहे हैं। यह बदलाव इस इलाके में दशकों से नासूर बने नक्सलवाद के सफाये का संकेत है। लाल आतंक की वजह से यहां के मासूम आदिवासी लोगों ने सालों से न केवल हिंसा का दंश सहा है बल्कि वे विकास से भी वंचित रहे।

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लेकिन कुछ सालों में सरकार और प्रशासन की कोशिशों से यहां विकास की बयार बह रही है। लोग बेखौफ रहने लगे हैं और नक्सलवाद (Naxalism) को उखाड़ फेंकने में सरकार व प्रशासन की मदद भी कर रहे हैं। अब बस्तर के गांवों और स्कूलों में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ध्वजारोहण होने लगा है। लोग इस दिन खुशियां मनाने लगे हैं, गांवों में प्रभातफेरी भी निकाली जाने लगी है।

धुर नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण, कुआकोंडा, बीजापुर जिले के उसूर, भैरमगढ़, सुकमा जिले के कोंटा, छिंदगढ़, नारायणपुर जिले के ओरछा और कोंडागांव जिले के मर्दापाल इलाके के गांवों में अब राष्ट्रीय त्योहारों देशभक्ति के गीत सुनाई देते हैं।

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पुलिस प्रशासन और सुरक्षाबलों के इन इलाकों में पहुंचने से ग्रामीणों का हौसला बढ़ा है। अब जवान राष्ट्रीय त्योहार के मौके पर बैग में तिरंगा लेकर निकलते हैं और गांव-गांव में उसे फहराते हुए आगे बढ़ते हैं। गांव वाले भी उनका भरपूर साथ देते हैं और तिरंगे के सामले नक्सलवाद (Naxalism) की जड़ खोदने का संकल्प लेते हैं।

बस्तर के आइजी सुंदरराज पी के मुताबिक, नक्सली अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में बीते वर्षो में कहीं-कहीं काला झंडा फहराते रहे हैं। अब हालात वैसे नहीं रहे। अंदरूनी इलाकों में फोर्स की गश्त बढ़ी है। इससे ग्रामीणों का मनोबल बढ़ा है। राष्ट्रीय पर्वों को वे अब खुलकर मनाते हैं, यह उनके जज्बे को सामने ला रहा है।

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बता दें कि सुकमा जिले का गोमपाड़ इलाका अगस्त, 2016 में पहली बार सुर्खियों में तब आया था, जब यहां ग्रामीणों ने आजादी के बाद पहली बार तिरंगा फहराया था। वहीं, साल 2017 में बस्तर जिले के चांदामेटा और मुंडागढ़ में प्रतिबंधित नक्सली संगठन सीपीआइ माओवादी ने लोगों को स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) पर तिरंगा न फहराने की चेतावनी दी थी। इसके बावजूद ग्रामीणों ने नक्सली धमकियों की परवाह न करते हुए इस दिन तिरंगा लहराया था।

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