Chhattisgarh: बस्तर से नक्सलियों का होगा सफाया, फोर्स ने बनाया ये प्लान

सुरक्षाबल अब छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में लाल आतंक का गढ़ कहे जाने वाले बस्तर (Bastar) के सुदूर जंगलों तक पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं। क्योंकि बस्तर के उन जंगलों में अब भी नक्सली (Naxals) समानांतर सत्ता चला रहे हैं।

Bastar

बस्तर आई.जी.सुंदरराज पी। (फाइल फोटो)

बस्तर (Bastar) के इन इलाकों को नक्सलियों के चंगुल से मुक्त कराकर ही यहां का विकास संभव है और यह तभी मुमकिन है जब प्रशासन की पैठ उन इलाकों तक हो।

सुरक्षाबल अब छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में लाल आतंक का गढ़ कहे जाने वाले बस्तर (Bastar) के सुदूर जंगलों तक पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं। क्योंकि बस्तर के उन जंगलों में अब भी नक्सली (Naxals) समानांतर सत्ता चला रहे हैं। अबूझमाड़ समेत सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर और बस्तर के अन्य जिलों के पहुंचविहीन जंगलों में बसे गांवों में नक्सलियों की समानांतर व्यवस्था चल रही है, जिसे वे जनताना सरकार कहते हैं।

नक्सलियों की इस समानांतर व्यवस्था की वजह से इल इलाकों का विकास नहीं हो पा रहा। नक्सली यहां सरकार की विकास योजनाओं को लागू नहीं होने देते। नक्सलियों की इन हरकतों की वजह से इन इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंच पाई हैं। यहां के युवाओं को भी नक्सली जबरदस्ती या फिर बरगला कर संगठन में शामिल करने की कोशिश में लगे रहते हैं।

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बस्तर (Bastar) के इन इलाकों को नक्सलियों के चंगुल से मुक्त कराकर ही यहां का विकास संभव है और यह तभी मुमकिन है जब प्रशासन की पैठ उन इलाकों तक हो। यही वजह है कि अब सरकार और प्रशासन इन इलाकों तक पहुंचने का प्रयास कर रहा हैं।

बस्तर (Bastar) रेंज के आइजी सुंदरराज पी के अनुसार, बस्तर के जंगलों में कई ऐसे इलाके हैं जो पहुंचविहीन हैं। ऐसे इलाकों में जहां सरकार की पहुंच नहीं है, वहां नक्सली जनता को डरा रहे हैं। हम जानते हैं कि लोग उनके साथ नहीं रहना चाहते। सबको फोर्स में शामिल नहीं किया जा सकता। इसका समाधान विश्वास, सुरक्षा, विकास का मंत्र है। दंतेवाड़ा जिले के पोटाली इलाके में इसी तरह नक्सलियों की पैठ थी।

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आइजी सुंदरराज आगे बताते हैं कि नक्सली गांव में आते थे और अपने विभिन्न संगठनों की बैठक लेकर उन्हें सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए उकसाते थे। हमने वहां कैंप खोल दिया तो नक्सलियों का आना-जाना बंद हो गया और लोगों को समझ आने लगा कि बुनियादी सुविधाओं की उन्हें कितनी जरूरत है। जंगल में युवा अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं। धी-धीरे सरकार अंदरूनी इलाकों तक पहुंच रही है।

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