
बस्तर की महिलाएं ई-रिक्शा चलाकर क्षेत्र के विकास की गौरव गाथा लिख रही हैं।
छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर (Bastar) का जिला दंतेवाड़ा जो नक्सल हिंसा और जघन्य अपराध के लिए जाना जाता था, वहां आज सब कुछ बदलता हुआ दिख रहा है। जिस जगह लोग अपने ही वाहन से गुजरने से कतराते थे वहां आज महिलाएं ई-रिक्शा चलाकर क्षेत्र के विकास की गौरव गाथा लिख रही हैं। महिलाओं के स्वावलंबी बनने का यह कदम देश के बदलते परिवेश की एक मिसाल है। यह बदलाव बता रहा है कि अब बस्तर (Bastar) भी 21वीं सदी के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है।
चंद दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को रेडियो के माध्यम से “मन की बात” कार्यक्रम के दौरान दंतेवाड़ा की उन तमाम महिलाओं का ज़िक्र किया था और उन्हें बधाई भी दी थी। महिला सशक्तिकरण और उन्हें स्वावलंबी बनाने के लिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने कार्यकाल में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की 51 महिलाओं के बीच ई-रिक्शा का वितरण किया था। इतना ही नहीं तमाम लाभार्थी महिलाओं को ई-रिक्शा चलाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया था।
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प्रशिक्षण के बाद सभी महिलाएं ई-रिक्शा चलाने लगीं। सरकार की ओर से सभी महिलाओं को एक स्मार्टफोन भी दिया गया है। जिसमें सुरक्षा को लेकर एक ऐप भी है। इस ऐप के माध्यम से महिलाएं किसी भी मुसीबत में जरूरत पड़ने पर मदद लेने में सक्षम हैं। दंतेवाड़ा की ये महिलाएं अब सड़क पर ई-रिक्शा चलाकर अपने घर परिवार का भरण पोषण कर रही हैं। प्रतिदिन 400-500 कमाकर अपने परिवार की जरुरतों को पूरा करती हैं। नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र में जंगलों के बीच महिलाओं का ऑटो चलाना वाक़ई एक बदलाव का प्रतीक है।
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