उत्तराखंड: चमोली का यह गांव लिख रहा विकास की इबारत, जड़ी-बूटियों की खेती से गांव वाले कर रहे लाखों की कमाई

उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक का घेस गांव विकास की नई इबारत लिख रहा है। गांव के लोग तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। परंपरागत खेती करने वाले गांव वालों ने अब अपना पूरा ध्यान औषधीय पोधों की खेती पर लगा लिया है।

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फाइल फोटो।

उत्तराखंड (Uttarakhand) के इस गांव के लोगों ने पारंपरिक खेती को छोड़कर औषधीय पौधों की खेती करनी शुरू कर दी है। इससे उन्हें काफी मुनाफा हो रहा है।

उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले के देवाल ब्लॉक का घेस गांव विकास की नई इबारत लिख रहा है। गांव के लोग तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। परंपरागत खेती करने वाले गांव वालों ने अब अपना पूरा ध्यान औषधीय पौधों की खेती पर लगा लिया है। इससे गांव के लगभग 70 परिवार की लाखों की आमदनी हो रही है। इन लोगों में लॉकडाउन के दौरान गांव लौटे 80 प्रवासी भी शामिल हैं।

बता दें कि घेस गांव कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले की सीमा से लग कर है। इस गांव में लगभग 350 परिवार रहते हैं। वाले घेस गांव की आबादी 3,500 के करीब है। गांव में परंपरागत रूप से राजमा, चौलाई और फाफर का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता रहा है। इससे ग्रामीणों को अच्छा-खासा मुनाफा भी हो रहा था, लेकिन 10 साल पहले गांव के पूर्व प्रधान कैप्टन केसर सिंह ने नकदी फसलों की जगह जंगलों मे उगने वाली जड़ी-बूटियों की खेती का फैसला लिया।

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इससे उन्हें कहीं अधिक मुनाफा हुआ। केसर सिंह बताते हैं कि वर्तमान में जड़ी-बूटी उत्पादन से गांव का हर परिवार हर सीजन में एक लाख रुपये से अधिक तक की आमदनी कर लेता है, जबकि परंपरागत फसलों से 40 हजार रुपये तक की ही कमाई होती थी। ऊपर से जंगली जानवर भी फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते थे।

केसर सिंह बताते हैं कि कुटकी समेत अन्य जड़ी-बूटियों की खरीदारी के लिए बाहरी क्षेत्रों से ठेकेदार गांव में ही पहुंच जाते हैं। हर साल घेस से करीब 30 क्विंटल जड़ी-बूटियां बिकती हैं। खासकर कुटकी तो दो से ढाई हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में गांव के करीब 70 परिवार जड़ी-बूटी उत्पादन से जुड़े हुए हैं। इनमें लॉकडाउन के दौरान रोजगार छिनने से गांव वापस लौटे 80 प्रवासी भी अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं।

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गोवा के होटल में सालों से शेफ रहे दिनेश सिंह भंडारी जब लॉकडाउन के दौरान गांव वापस लौटे तो उनके पास कोई रोजगार नहीं था। लेकिन जड़ी-बूटी उत्पादन से जुड़कर वे अच्छी आमदनी करने लगे। अब तो उन्हें एडवांस में ऑर्डर भी मिलने लगे हैं। गोवा में ही होटल व्यवसाय से जुड़े देवेंद्र सिंह को भी गांव लौटकर जड़ी-बूटी की खेती से रोजगार मिला है। वह कहते हैं कि जड़ी-बूटी को जंगली जानवर भी नुकसान नहीं पहुंचाते। ऐसे में घाटे का तो सवाल ही नहीं उठता।

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